दिल्ली में कंस्ट्रक्शन साइटों पर मजदूरों का हेल्थ चेकअप, बच्चों के लिए क्रेच की सुविधा
दिल्ली सरकार ने निर्माण मज़दूरों के लिए डॉक्टर ऑन व्हील योजना शुरू करने का फैसला किया है। स्वास्थ्यकर्मियों की टीम निर्माण स्थल पर जाकर मज़दूरों की स्वास्थ्य जांच करेगी।
इसके साथ ही वहां परिवार के साथ रहने वाले मज़दूरों के बच्चों की देखभाल के लिए मोबाइल क्रेच की शुरुआत भी की जाएगी।
गौरतलब है कि दिल्ली में दिल्ली भवन और अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड को 2002-2019 तक टैक्स के रूप में 3,273.64 करोड़ रुपये मिले थे जिसमें केवल पौने दो सौ करोड़ रुपये ही सरकार खर्च कर पाई, जिसे लेकर मजदूर अधिकार कार्यकर्ताओं और यूनियनों में भारी आक्रोश रहा है।
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आप उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता में दिल्ली निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की 39वीं बैठक में सोमवार को यह फैसला लिया गया। बैठक में निर्माण मज़दूरों के लिए चल रही 17 कल्याणकारी योजनाओं की प्रगति की समीक्षा भी की गई।
इंडियन एक्सप्रेस में आई खबर के मुताबिक, बैठक में तय हुआ कि मज़दूरों के साथ आसानी से जुड़ने के लिए बोर्ड अपनी वेबसाइट को भी अपग्रेड कर रहा है। इससे मज़दूरों को योजनाओं के बारे में आसानी से जानकारी मिल सकेगी। सिसोदिया ने कहा कि जो फैसले हुए हैं, उसे जल्द अमल में लाने का काम शुरू किया जाएगा।
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सरकार के मुताबिक, हर जिले में स्वास्थ्य जांच शिविर निर्माण स्थलों पर लगाई जाएगी। मां-बाप दोनों काम कर रहे होते हैं तो बच्चे अक्सर निर्माण स्थलों पर दिखाई देते हैं। क्रेच की सुविधा में उन्हें बेहतरीन डे केयर उपलब्ध कराया जाएगा।
अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान में बोर्ड के पास लेबर कार्ड बनवाने के लिए 17 लाख आवेदन आ चुके हैं। जांच के बाद सभी को लेबर कार्ड जारी किया जा रहा है।
इस पर सिसोदिया ने कहा कि वह स्वतंत्र एजेंसी से सोशल ऑडिट करवाएं, जिससे पता चले कि लाभ पात्र लोगों को मिल रहा है या नहीं।
मज़दूरों का हक देने का दावा और हकीकत
बोर्ड की बैठक में अधिकारियों ने बताया कि डेढ़ साल में मज़दूरों को कुल 611 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद अलग-अलग मदों में दी गई हैं। जिसे लेकर केजरीवाल सरकार विवादों के घेरे में भी रही है।
हाल ही में कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, “मजदूरों के पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले ही पहचान पत्र जारी किए जा चुके थे। इनमें से सात मामलों में, जिनमें 6.60 लाख रुपये का भुगतान किया गया था, पंजीकरण के लिए आवेदन की तारीख मजदूर की मौत की तारीख के बाद की थी, हालांकि आवेदन पर मृतक मजदूर के दस्तखत थे और कंस्ट्रक्शन वर्कर्स यूनियन द्वारा जारी किया गया रोजगार प्रमाण पत्र भी शामिल था।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मुद्दे “योजना के तहत लाभ प्राप्त करने वाले अपात्र दावेदारों की संभावना” का संकेत देते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, “वर्ष 2002-19 के दौरान, दिल्ली भवन और अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड को सेस के रूप में 3,273.64 करोड़ रुपये मिले, सेस और पंजीकरण शुल्क पर ब्याज, जिसमें से उसने निर्माण कार्य में जुड़े मजदूरों के कल्याण पर केवल 182.88 करोड़ रुपये (5.59 प्रतिशत) खर्च किए।”
हालांकि केजरीवाल सरकार का दावा है कि-
● निर्माण बंद होने पर पंजीकृत 1.18 लाख निर्माण श्रमिकों को 118 करोड़ रुपये सहायता राशि के रूप में दिए गए।
● श्रमिकों के बच्चों को 12.35 करोड़ रुपये स्कॉलरशिप भी दी गई। इसके अलावा अलग-अलग योजनाओं में सहायता राशि दी।
● कोरोना की दूसरी लहर में 5-5 हजार के हिसाब से 3.17 लाख श्रमिकों को 158 करोड़ दिए गए।
● पिछले साल सर्दियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई थी। इस दौरान 6.17 लाख निर्माण श्रमिकों को सरकार ने 309 करोड़ दिए।
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