मनरेगा: आधार आधारित पेमेंट सिस्टम से 1.70 करोड़ मजदूरों का छिना रोजगार, बजट भी हो रहा लगातार कम
मनरेगा को दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजना में से एक माना जाता है. ये भारत सरकार की एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसकी शुरुआत साल फरवरी 2006 में हुई थी.
इस योजना के तहत एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है. मगर नए साल की शुरुआत से इसमें एक बड़ा बदलाव हो गया है.
केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2024 से मनरेगा मजदूरी के भुगतान के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (ABPS) अनिवार्य कर दिया है. इस नए पेमेंट सिस्टम के लागू होने के बाद डेढ़ करोड़ से ज्यादा मजदूरों से यह रोजगार छिन गया है.
1.70 करोड़ मजदूरों का रोजगार छिना
11 जनवरी को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत 25 करोड़ से ज्यादा मजदूर रजिस्टर्ड हैं. इनमें से कुल 14.32 करोड़ सक्रिय मजदूर (Active Workers) हैं. एक्टिव वर्कर वह होता है जिसने बीते 3 साल में कम से कम एक दिन काम किया है.
अब आधार सिस्टम लागू होने के बाद 12 फीसदी यानी कि एक करोड़ 70 लाख 68 हजार 632 एक्टिव वर्कर्स एबीपीएस के लिए अयोग्य हो गए हैं. इन मजदूरों को काम की गारंटी मिलना बंद हो गई. यह मजदूर सरकार के वोटर भी हैं. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.
हालांकि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एबीपीएस मामले में कुछ तकनीकी दिक्कत होने पर छूट देने की बात कही है. कहा है कि अगर किसी ग्राम पंचायत में तकनीकी कारण से जॉब कार्ड आधार से लिंक नहीं हो पा रहा है तो उन्हें छूट दी जा सकती है.
क्या है आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम
ग्रामीण मजदूरों के सीधे बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने के लिए केंद्र ने मनरेगा योजना के सभी लाभार्थियों के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम अनिवार्य किया है. इसके तहत आधार कार्ड को जॉब कार्ड से लिंक कराना होता है. ये प्रक्रिया पंचायत सचिव या वार्ड सदस्य पूरी करते हैं.
साथ ही आधार को लाभार्थी मजदूर के बैंक खाते से भी जुड़ा होना चाहिए. इसके बाद नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन (NPCI) आधार को मैप कर लेता है. सरकार का कहना है कि इस सिस्टम से मजदूरों को भुगतान में देरी नहीं होगी और फर्जीवाड़ा रुकेगा.
एबीपीएस अनिवार्य करने के लिए जनवरी 2023 में एक आदेश जारी किया गया था और एक फरवरी की समय सीमा तय की थी. इसके बाद पहले समय सीमा को 31 मार्च तक बढ़ाया गया. फिर 30 जून तक, इसके बाद 31 अगस्त तक और आखिरी समय सीमा 31 दिसंबर 2023 रखी.
मजदूरों के लिए ये बहुत ही खराब फैसला?
मनरेगा मजदूरों के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम को अनिवार्य करने के फैसले को कांग्रेस पार्टी गलत बता रही है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा कि ‘केंद्र सरकार ने नए साल पर देश के सबसे गरीब परिवारों को सबसे क्रूर तोहफा दिया. उन्होंने मनरेगा के तहत काम करके परिवार चलाने वाले करोड़ों गरीबों से उनका अधिकार छीन लिया. कांग्रेस उनके इस तोहफे की निंदा करती है.’
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, ‘हम अपनी 30 अगस्त 2023 की उस मांग को दोहराते हैं. मोदी सरकार को कमजोर भारतीयों को उनके सामाजिक कल्याण के लाभ से वंचित करने के लिए टेक्नोलॉजी और आधार को हथियार बनाना बंद करना चाहिए.’
क्या है 100 दिन रोजगार की गारंटी वाली योजना
मनरेगा योजना का मकसद देश के गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है. खास बात ये है कि ग्रामीणों को उनके गांव या निवास स्थान के आसपास ही रोजगार उपलब्ध कराया जाता है. उन्हें अपने गांव से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती.
मनरेगा के तहत नागरिकों को गारंटी से 100 दिन का रोजगार दिया जाता है. अगर जॉब कार्ड धारकों को 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं मिलता है तो उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिए जाने का प्रावधान है. ये योजना हर राज्य की सरकार ने लागू कर रखी है. अब तक करोड़ों नागरिक योजना का फायदा उठा चुके हैं.
मनरेगा का बजट लगातार कम कर रही केंद्र सरकार
पिछले 3- 4 साल से और खासकर कोविड महामारी के बाद ये लगातार देखने को मिल रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार मनरेगा का बजट कम कर रही है.
2020 – 21 में जहाँ मनरेगा के लिए 1 ,11 ,500 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया था. वही वर्ष 21 – 22 में बजट को कम कर के 89 , 400 करोड़ कर दिया गया. वित्तीय वर्ष 23 -24 में तो इसे कम करते हुए 60 हज़ार करोड़ कर दिया गया.
सबसे ज्यादा मजदूर कहां अयोग्य
1.70 करोड़ में से सबसे ज्यादा नगालैंड के 4 लाख 82 हजार 492 मजदूर (80%) मनरेगा योजना के तहत एबीपीएस से पेमेंट के लिए अयोग्य हैं.
इसके बाद मेघालय, असम, लक्षद्वीप, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के सबसे ज्यादा मजदूर अयोग्य हैं. केरल एक मात्र राज्य है जहां 100 फीसदी मजदूर एबीपीएस के लिए योग्य हैं.
एक्टिव वर्कर्स की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में है. 14 राज्य ऐसे हैं जहां 90 फीसदी से ज्यादा मजदूर योग्य घोषित हो चुके हैं. 15 राज्यों में 60 से 90 फीसदी मजदूर पेमेंट के लिए योग्य हैं.
कैसे मनरेगा का यह डेटा मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाएगा?
करीब दो करोड़ मजदूरों का अचानक सिस्टम से बाहर जाना आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार की मुश्किल बढ़ा सकता है. मनरेगा योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करती है और ग्रामीण गरीबी को कम करने में मदद करती है.
2019 लोकसभा चुनाव के बाद सर्वे एजेंसी सीएसडीएस ने एक पोस्ट पोल रिपोर्ट जारी की थी. इसके अनुसार, 11 फीसदी लोगों ने रोजगार को बड़ा मुद्दा माना. 20 फीसदी लोगों ने कहा कि मनरेगा से उनके परिवार को लाभ मिला है. 45.6 फीसदी लोगों का कहना था कि उनके इलाके में मनरेगा से नौकरी घटी है.
मनरेगा के लिए 2023-2024 का केंद्रीय बजट एक बड़ा धक्का था, जब योजना के लिए सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए. इससे पहले वित्त वर्ष में 89 हजार 400 करोड़ आवंटित किए गए थे. यही नहीं, 2020-2021 में एक लाख 11 हजार 500 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया था.
अगर केंद्र मनरेगा योजना के तहत काम करने वाले मजदूरों को अयोग्य ही रखता है तो इससे सरकार की छवि को नुकसान हो सकता है. इससे सरकार के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष बढ़ सकता है.
(ABP की खबर से साभार )
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