मज़दूरों और यूनियनों की मांगों को दरकिनार कर नए लेबर कोड को लागू करने की जल्दी में मोदी सरकार
By शशिकला सिंह
देशभर की ट्रेड यूनियनों ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए नए लेबर कोडों का तीखा विरोध किया है।
यूनियनों का कहना है कि नए लेबर कोड के आने से मज़दूरों के लगभग सभी अधिकारों को छीन लिया जायेगा।
लकिन मोदी सरकार इन सभी बातों को नजरअंदाज कर बड़े बड़े सम्मेलनों का आयोजन करके नए लेबर कोड को लागू करने की तैयारियां कर रही है।
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शुक्रवार को एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘अब चौथी औद्योगिक क्रांति के समय भारत को भी तेजी से फैसले लेने होंगे और उन्हें तेजी से लागू भी करना होगा।
लेबर कोड में किये जाने वाले बदलाव
गौरतलब है कि सरकार ने 29 श्रम कानूनों के बदले इसे चार हिस्सों पारिश्रमिक संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, पेशागत सुरक्षा संहिता में विभाजित करने का फैसला किया है।
इनमें पारिश्रमिक संहिता को लेकर 31 राज्यों में, सामाजिक सुरक्षा संहिता पर 27 राज्यों, औद्योगिक संबंध संहिता पर 25 तो पेशागत सुरक्षा संहिता पर 24 राज्यों ने नए श्रम कानूनों के तहत अपना नियम तैयार कर लिया है।
श्रम मंत्रियों के सम्मेलन में कुछ मुद्दों पर राज्यों की असहमतियों पर विमर्श के बाद नए श्रम कानूनों को लागू करने की तारीख पर सहमति बन सकती है। नए श्रम कानूनों को पहले एक जुलाई से लागू करने की योजना थी।
मज़दूर विरोधी है नया लेबर कोड
आप को बता दें कि गुरुवार को तिरुपति में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसके बाद मोदी सरकार ने ट्विटर के मध्यम से अपनी तारीफों के पल बांधने शुरू किया। इन सभी पर मज़दूरों और ट्रेड यूनियनों की प्रतिक्रियाएं दी हैं।
यूनियन के सदस्यों का कहना हैं कि जितना काम मोदी सरकार ने अंबानी अडानी के लिए किया है यह देश में निजीकरण के तौर पर साफ देखने को मिलता है।
लेकिन मज़दूरों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया और तो और उनके पास जो अधिकार हैं उनको भी छीनने की तैयारी कर रही है।
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देशव्यापी यूनियनों का आरोप है नए लेबर कोड के माध्यम से मज़दूरों को कमज़ोर बनाया जा रह है। कोड में लाये गए सभी नियम कंपनी प्रबंधन के फेवर में हैं और मज़दूरों के खिलाफ हैं।
देश में आज भी कई ऐसे मज़दूर हैं, जिनको न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता और जो मिलता भी वो भी समय पर नहीं मिलता है। मज़दूर वर्ग का कहना है कि इतने काम वेतन में मज़दूरों को अपने परिवार का लालनपालन करना मुश्किल है।
मज़दूरों के हाथ काटने की तैयारी में सरकार
जहां एक तरफ मोदी अमृतकाल में विकसित भारत के निर्माण कि बात करते हैं और कहते हैं कि इसमें भारत के मज़दूर वर्ग का बड़ा योगदान है। लेकिन यह सब बातें ही हैं।
यह बात बिलकुल ठीक है कि देश के निर्माण और विकास में मज़दूरों का सब से बड़ा हाथ है, तो फिर नए लेबर कोड को लागू कर सरकार मज़दूरों के हाथ काटने की तैयारी क्यों कर रही है।
जहां एक तरफ मोदी का कहना है कि आज़ादी के बाद भी देश आज़ाद नहीं हुआ था लेकिन अब आठ वर्षों में हमने देश में गुलामी पूरी तहा से बंद हो गए है, तो वह शायद यह भूल गए हैं कि आज भी देश गुलामी का शिकार है।
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वर्तमान में पूरा देश अंबानी अडानी की गुलामी निजीकरण के रूप में करने को मज़बूर है और ये गुलाब देश में बीते आठ सालों में आयी है। देशभर के मज़दूरों को ठेकेदारी प्रथा का शिकार होना पड़ रहा है यह कहना की आज़ादी है।
देश में महंगाई दर इतनी बढ़ गई है कि मज़दूरों का खाना पीना भी मुश्किल है। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा अमृत काल कहकर महंगाई का विष पिला रही है। अब देखने वाली बात यह है कि इतनी आलोचनाओं के बाद भी मोदी सरकार मज़दूरों और यूनियनों की बात मानती है या नहीं।
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