ऑस्ट्रेलिया में नए श्रम कानून, मजदूरों की महत्त्वपूर्ण जीत
By रविंद्र गोयल
हाल ही में इनफ़ोसिस के को- फाउंडर नारायणमूर्ति का एक बयान की युवाओं को हर हफ्ते 70 घंटे काम करना चाहिए. भारत में जहां नारायणमूर्ति जैसे धनकुबेर 70 घंटे हर हफ्ते काम कि वकालत कर रही है ,वही देश की सत्ता पर काबिज़ मोदी सरकार ‘धंधा करने की आसानी’ (ease of doing business) के नाम पर मजदूरों को 12 घंटे रोज़ काम करने पर मजबूर करने का अधिकार देने का कानून बनाने की तैयारी में है.
वही ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने हाल ही में अपने देश ऐसे कानून बनाये है जो मज़दूरों को काम के घंटों के बाहर अपने नियोक्ताओं के अनुचित कॉल और मेल को बिना दंड के अनदेखा करने का अधिकार देगा साथ ही इस नियम के उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के लिए संभावित जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया में मजदूर सम्बंधित कानूनों में किये गए हालिया बदलाव के चलते मजदूरों के कुछ नये अधिकारों को भी मान्यता दी गयी है:-
– मजदूर काम के समय के अलावा दफ्तर के फ़ोन या ईमेल का जवाब देने से इंकार कर सकता है.
– गिग वर्कर्स काम के लिए उचित मजदूरी और अन्य अधिकारों की कानूनी रूप से मांग कर सकता है’
– टेम्परोरी मजदूर या ठेका मजदूर नियमित होने की मांग कर सकते हैं और उनका नियमित होना खाली मालिक की मर्ज़ी पर नहीं निर्भर होगा
नए कानूनों के तहत मज़दूरों को ” डिस्कनेक्ट करने का अधिकार” भी दिया गया है. यह कानून वैसे लोगों की मदद करेगा जो शिफ्ट ख़तम होने के बाद भी ऑफिस कॉल्स और मीटिंग में उलझे रहते हैं.
कई लोगों को तो घर जाने के बाद भी बॉस के मेल या कॉल्स का रिस्पॉन्स करना पड़ता है. भारत में ऐसे लेकर भले ही कोई कानून न हो लेकिन आस्ट्रेलिया की संसद में कर्मचारियों/ मज़दूरों के हितों की रक्षा के लिए नया कानून लाया गया है.
इस कानून के तहत कर्मचारी/मज़दूर अपनी ड्यूटी के बाद ऑफिस का काम करने के लिए बाध्य नहीं रहेगा. इतना ही नहीं अगर ऑफिस के बाद कोई बॉस/ मालिक अपने एम्प्लॉई से काम कराता है तो उसपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. जुर्माने की रकम एक पैनल तय करेगा. एम्पलॉई के पास शिकायत करने का भी अधिकार होगा.
यह नया कानून मज़दूरों को अनपेड ओवर टाइम करने रोकता है और ” डिस्कनेक्ट करने का अधिकार” देता है.
मालूम हो ऑस्ट्रेलिया में वर्क -लाइफ बैलेंस और ऐसे कानून की मांग लम्बे समय से उठ रही थी. इस तरह के कानून फ्रांस,स्पेन और यूरोपियन संघ के अन्य देशों में पहले से ही मौजूद है.
नया कानून ऍप बेस्ड गिग वर्कर्स के काम के लिए उचित मजदूरी और उनके अन्य अधिकारों की भी वकालत करता है.
इसके साथ ही कानून टेम्परोरी मजदूर या ठेका मज़दूरों को ये अधिकार देगा कि वो अपने नियोक्ता से नियमित होने की मांग कर सके. कानून कहता है कि नियमित नौकरी मज़दूर का अधिकार है और यह सिर्फ मालिक की मर्ज़ी पर नहीं निर्भर होगा.
नए कानून में अस्थाई से स्थाई काम तक का स्पष्ट मार्ग और अस्थाई मज़दूरों और ट्रक ड्राइवरों के लिए न्यूनतम मानक जैसे अन्य प्रावधान भी शामिल है.
हालांकि कुछ पार्टियों , नियोक्ता समूहों और कॉर्पोरेट घरानों ने इस कानून को लेकर चेतावनी दी कि ‘ नए कानून लचीले कामकाज की दिशा में कदम को कमजोर करेगा और प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करेगा’.
इसके बावजूद वामपंथी ग्रीन्स पार्टी,लेबर पार्टी और दूसरी कई छोटी पार्टी के दबाव और समर्थन के कारण सरकार को इस नए कानून के लिए मज़बूर होना पड़ा.
बेशक भारत में अभी भी मजदूर संघर्ष कमजोर हैं. वर्तमान में बेरोजगारी और दमन का डर इस खास वर्ग के बीच गहरे बैठा है. ये वर्ग फिलहाल रक्षात्मक रूप में हैं और अपने जैसे लोगों को इकट्ठा कर अपनी वाजिब मांगों के लिए उनका कोई मज़बूत आन्दोलन नहीं है. लेकिन जिस गति से देश में मज़दूर वर्ग के लिए स्थिति बदतर होती जा रही है आने वाले दिनों में यह गुस्सा ज़रूर फूटेगा.
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