अब 10% पदों पर प्रोफेसरों की मनमानी भर्ती, PHD की भी जरूरत नहीं
शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाने वालों के लिए UGC की ओर से एक बड़ी खबर आई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा शुक्रवार को नए दिशा-निर्देशों जारी किये हैं जिसके अनुसार “प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस” नियम को लागू कर दिया गया है।
प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस का फायदा यह होगा कि छात्र अब बिना किसी एकेडमिक डिग्री के भी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में प्रोफेसर बन सकेंगे। इस योजना के अनुसार अब अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ दो साल तक क्लास ले सकेंगे वो भी बिना नेट पीएडी किए बिना।
15 साल की सेवा का अनुभव जरूरी
नए नियम के अनुसार उच्च शिक्षा संस्थान में प्रैक्टिस प्रोफेसर के लिए 10 फीसदी सीटें आरक्षित की गयीं हैं। इतना ही नहीं नियम के अनुसार आवेदन करने करने वाले उम्मीदवारों को अपने विषयों जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी और सामाजिक विज्ञान से लेकर मीडिया और सशस्त्र बलों में कम से कम 15 साल की सेवा का अनुभव होना जरूर हैं।
वहीं पहले नियमों के मुताबिक नियमित प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए पीएचडी की आवश्यकता होती है।
इंडियन एक्सप्रेस से मिली जानकारी के मुताबिक UGC का कहना है कि यह कदम विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में “संकाय संसाधनों को बढ़ाने” में मदद करेगा, साथ ही कक्षाओं में वास्तविक दुनिया के अभ्यास और अनुभव को पेश करेगा जो स्नातक पैदा कर रहे हैं “जिनके पास आवश्यक कौशल की कमी है।”
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दिशानिर्देशों में कहा गया है कि “कई उद्योग अब स्नातकों को काम पर रखते हैं और उन्हें काम पर रखने से पहले पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। शिक्षण में उद्योग के विशेषज्ञों को शामिल करने से उद्योग और उच्च शिक्षा संस्थानों दोनों को लाभ होगा।”
गौरतलब है कि सरकार द्वारा जुलाई में लोकसभा में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6,549 फैकल्टी के पद खाली हैं।
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