निजी कंपनियां करती हैं मुस्लिम महिला वर्करों के साथ भेदभाव, क्या कहती है LedBy Foundation की रिपोर्ट

निजी कंपनियां करती हैं मुस्लिम महिला वर्करों के साथ भेदभाव, क्या कहती है LedBy Foundation की रिपोर्ट

भारत में मुस्लिम समुदय के साथ भेदभाव और आर्थिक बहिष्कार के मामले ने हाल ही काफी तूल पकड़ा। इन सभी बातों को ध्यान में रख कर LedBy Foundation ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं के नौकरी के मुद्दे पर एक सर्वे किया है।

सर्वे में मुख्य रूप से नौकरी के बाजार में मुस्लिम महिलाओं को आने वाली परेशानियों पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है।

The Diplomat में आई खबर के अनुसार रिपोर्ट में एक हिंदू महिला और एक मुस्लमान महिला ने कुछ कंपनियों में नौकरी के आवेदन दिए। जिसमें पाया गया कि हिन्दू महिला को सभी आवेदनों के लिए कंपनियों से कॉल-बैक आया। वहीं दूसरी तरफ मुस्लमान महिला को मात्र एक ही संसथान से कॉल बैक आया।

अध्ययन में कहा गया है, “हिंदू महिलाओं की तुलना में भारतीय मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव दर 47.1 फीसदी मापा गया। जो साबित करती है कि मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ एक महत्वपूर्ण भर्ती पूर्वाग्रह भारतीय समाज में मौजूद है।”

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अध्ययन के उद्देश्य के लिए एक काल्पनिक मुस्लिम महिला हबीबा अली और एक काल्पनिक हिंदू महिला प्रियंका शर्मा के लिए दो समान रिज्यूमे बनाए गए थे। प्रोफाइल में कोई तस्वीर नहीं थी।

दस महीने की अवधि में, प्रत्येक प्रोफ़ाइल से 1,000 नौकरियों के लिए आवेदन LinkedIn और Naukri.com जैसे ऑनलाइन जॉब पोर्टल्स पर अपलोड किए गए ।

जिन 1,000 नौकरियों के लिए आवेदन किया गया, उनमें से प्रियंका को 208 कंपनियों के तरफ से जवाब मिलीं, जबकि हबीबा को 103 कंपनियों की तरफ से ही पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलीं। अध्ययन के अनुसार दोनों ही महिलाएं समान योग्यताओं और क्षमताओं की थी इसके बावजूद भी, हबीबा के प्रोफाइल को कम रिस्पॉन्स मिले।

दोनों को एक ही कंपनी से 88 अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं, लेकिन प्रियंका को अलग कंपनियों से 120 रिस्पॉन्स मिले, जबकि हबीबा को केवल 15 ही मिले।

प्रियंका से उनके ऑनलाइन प्रोफाइल पर अधिक सक्रिय रूप से संपर्क किया गया। हबीबा को अपने ऑनलाइन जॉब प्रोफाइल पर आने वाले रिक्रूटर्स से केवल एक पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिली, जबकि प्रियंका को ऐसी 15 पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिले।

रिपोर्ट में कहा गया हैं कि यदि इन सभी आंकड़ों पैर गौर किया जाए तो ये साफ साफ दिखता है कि कंपनियां धार्मिक भेदभाव के आधार पर अपने वर्कर्स का चयन करते हैं।

आप को बता दें कि हाल ही में गुरुग्राम में एक हिन्दू पंचायत ने मानेसर में मुस्लिम दुकानदारों और विक्रेताओं के आर्थिक बहिष्कर करने का आह्वान किया था।

LedBy Foundation का शोध केवल इस बात की पुष्टि करता है कि यह क्रूर मुस्लिम विरोधी भावना निजी क्षेत्र में भी व्यापक है। भर्ती करने वाले मुस्लिम महिलाओं को उन नौकरियों के लिए कम सक्षम मानते हैं जबकि वह भी पूरी तरह से योग्य हैं।

नई दिल्ली के पास गुरुग्राम में स्थित एक मानव संसाधन पेशेवर, मृणाल मिश्रा ने LedBy के रिपोर्ट के निष्कर्षों को खारिज किया है। यह एक “सुविधाजनक” रिपोर्ट है, उसने कहा, जहां भर्ती करने वालों को खलनायक बनाया जा रहा है। वो दावा करते कि हैं उन्होंने कभी किसी आवेदक के साथ भेदभाव नहीं किया, और साथ ही यह भी स्वीकार किया कि उसकी कंपनी के 118 कर्मचारियों में से केवल नौ मुस्लिम हैं।

भारतीय मुसलमान कई तरह की दैनिक अस्तित्व संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। हर दिन उनके लिए नई चुनौतियां लेकर आता है।

LedBy Foundation का अध्ययन इस तथ्य पर जोर डालता है कि इस्लामोफोबिया भारत के निजी क्षेत्र में फैल गया है।

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WU Team

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