कतर : मृत मज़दूरों की बॉडी वापस करने के लिए परिजनों से मांगे जा रहे हैं 5 लाख रुपए
नवंबर में होने वाले कतर फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए दोहा में तैयारियां जारी हैं, लेकिन इस आयोजन ने कई भारतीय मजदूरों की जान ले ली। निर्माण एजेंसियों न तो परिवार को मुआवजा दिया और न ही मौत की सही वजह बताई।
इतना ही नहीं मजदूरों की भर्ती करने वाली कंपनी ने उनकी मौत के बाद परिजनों से 5 लाख रुपये की मांग तक कर डाली। कहा गया कि 5 लाख रुपये नहीं मिलेंगे तो बॉडी नहीं मिलेगी।
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यह उन 9 भारतीय मजदूरों में से एक की कहानी है जो कतर में निर्माण के लिए पहुंचे, लेकिन वापस जिंदा नहीं लौट पाए। 40 साल के राजेंद्र प्रभु तेलंगाना के रहने वाले थे। 2016 में कतर पहुंचे थे और बतौर कारपेंटर काम करना शुरू किया था।
कर्ज चुकाने का वादा करके कतर पहुंचे
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में भारत छोड़ने से पहले राजेंद्र ने परिवार वालों को बताया था कि उन्हें 2500 कतरी रियाल यानी 55 हजार रुपये (करंट वैल्यू) देने का वादा किया गया है। राजेंद्र पर कर्ज था, जिसे चुकाने के लिए उन्होंने कतर जाने का फैसला किया।
उनकी पत्नी सुचैत्रा का कहना है, दोहा पहुंचने के बाद काफी अजीब सा लगा। उन्हें लेने के लिए न तो दोहा एयरपोर्ट पर कोई मौजूद था और न ही उन्हें लाने के लिए कोई व्यवस्था की गई थी। जिस अनुबंध के तहत वो वहां गए थे, वहां वैसा कुछ भी नहीं था। फिर उन्हें नए अनुबंध की जानकारी दी गई, जिसमें उसके काम के बदले मात्र 22 हजार रुपये देने की बात कही गई।
55 हजार बताया पर दिए 22 हजार रुपये
राजेंद्र की भर्ती करने वाली एजेंसी ने पहले मेहनताने के लिए 55 हजार रुपये देने का वादा किया था जो बाद में घटाकर 22 हजार कर दिया। उन्होंने जब धोखाधड़ी के बारे में पूछताछ की तो बताया गया कि यह अनुबंध का हिस्सा है। हालांकि घरवालों को कभी भी उस एजेंसी का नाम नहीं पता चल पाया।
सुचैत्रा कहती हैं, पति के लिए यह बड़ा झटका था, लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद थी वो वहां कमाई करके लाखों का कर्ज उतार पाएंगे। इसके अलावा न तो उनके पास कोई दूसरा विकल्प था और न ही बेहतर नौकरी पाने का अवसर। वो बहुत परेशान थे। वो अपने भाग्य को दोष देते रहे और कहते थे एक बार कर्ज उतर जाए तो तुरंत वापस आ जाएंगे। हाड़तोड़ मेहनत, नाम का मेहनताना और कर्ज का दबाव उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रहा था।
वो कॉल जिसने सब कुछ बदल दिया
सुचैत्रा कहती हैं, एक दिन मेरे पास कॉल आई। वो कॉल उनके साथ काम करने वाले एक मजदूर ने की थी। उसने बताया कि मेरे पति से आत्महत्या कर ली है। उनकी भर्ती करने वाली एजेंसी ने बॉडी भेजने के बदले में 5 लाख रुपये की मांग की है। तमाम कोशिशों के बाद भी जब कोई हल नहीं निकला तो भारतीय एम्बेसी के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा।
मौत के करीब 10 दिन बाद उनका शरीर तेलंगाना पहुंचा। साथ ही 30 हजार रुपये उनका मेहनताना भी आया। सुचैत्रा अब गांव में सिलाई का काम कर रही हैं। अपनी 7 साल की बच्ची को पाल रही हैं और कर्ज भी अदा कर रही हैं। एजेंसी की तरफ से मामले को सुसाइड बताया गया और कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया।
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गौरतलब है कि 2010 में क़तर को फुटबाल के विश्व कप आयोजित करने का ऐलान हुआ था। तब से इंडिया- 2711, पाकिस्तान- 824, बांग्लादेश- 1018, नेपाल- 1641 और श्रीलंका- 557 से गए कुल 6750 मज़दूर अपने प्राण गंवा चुके हैं।
इन 5 देशों के औसतन 12 मज़दूरों ने वहां 50 डिग्री तक तापमान में ज़मीन के अन्दर या सैकड़ों फूट ऊपर काम करते समय अपनी जानें गंवाई है। इनके आलावा, अफ़्रीकी और अन्य देशों से गए मज़दूरों को जोड़ा जाए तो 10,000 से भी अधिक मज़दूरों की लाशें वहां से उठी हैं।
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