RBI की रिपोर्ट: भाजपा शासित MP और गुजरात के खेतिहर मज़दूरों को मिलती है सबसे काम मजदूरी
रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि भाजपा शासित राज्यों में खेतिहर मजदूरों सबसे कम भुगतान किया जा रहा है जिससे मोदी सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा एक बार फिर खोखला साबित हो गया है। आरबीआई की इस रिपोर्ट से एक बार फिर साफ़ हो गया है कि यह भाजपा को किसान और मजदूर की कोई परवाह नहीं है।
वर्तमान में देश के खेतिहर मजदूरों के हालात अच्छे नहीं है। इसी संबंध में 22 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बड़ा खुलासा किया है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में खेतिहर मजदूरों को राज्यों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में सबसे अधिक मजदूरी केरल में मिलती है, जबकि सबसे कम मजदूरी मध्य प्रदेश और गुजरात के खेतिहर मजदूरों को मिलती है।
रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि बीजेपी शासित राज्य गुजरात और मध्य प्रदेश में खेतिहर मजदूरों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इन दोनों राज्यों के ग्रामीण इलाकों में खेतिहर मजदूरों को देश में सबसे कम मजदूरी दी जा रही है।
खास बात यह है कि केरल में खेतिहर मजदूरों को सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूरी मिलती है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरों को केवल 217.8 रुपये रोज की दिहाड़ी मिलती है।
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राष्ट्रीय औसत वेतन से काम का भुगतान
वहीं, गुजरात में यह आंकड़ा महज 220.3 रुपये ही है। मुख्य बात यह है कि दोनों ही राज्यों में दैनिक मजदूरी राष्ट्रीय औसत 323.2 रुपये से कम है।
केरल में खेतिहर मजदूरों की स्थिति अच्छी है। आंकड़ों में देखा गया है कि केरल के खेतिहर मजदूरों को देशभर में सबसे अधिक 726.8 रुपये दिहाड़ी मजदूरी के रूप भुगतान किया जा रहा है।
ऐसे में अगर गुजरात में एक मजदूर को महीने में 25 दिन काम मिलता है, तो उसकी मासिक कमाई लगभग 5,500 रुपये होगी, जो 4 या 5 लोगों के परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
वहीं अगर केरल का एक मजदूर महीने में 25 दिन भी काम करता है, तो वह 18,170 रुपये कमा लेगा, जो कि गुजरात और मध्य प्रदेश के खेतिहर मजदूरों की मजदूरी से काफी ज्यादा है।
द इंडियन एक्सप्रेस से मिली जानकारी के मुताबिक, केरल में उच्च मजदूरी होने के कारण अन्य राज्यों के खेतिहर मजदूर को आकर्षित किया है। केरल में लगभग 25 लाख प्रवासी खेतिहर व अन्य शतों के दिहाड़ी मजदूर काम कर रहे हैं।
RBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में एक खेतिहर मजदूर का मासिक वेतन लगभग 5,445 रुपये है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी खेतिहर मजदूरों के हालात अच्छे नहीं हैं। यहां पर 2021-22 में औसत दैनिक मजदूरी 270 रुपये थी।
जबकि, महाराष्ट्र में 284.2 रुपये और ओडिशा में 269.5 रुपये खेतिहर मजदूरों को दिहाड़ी मिलती है। वहीं, अगर देश के ऊपरी राज्यों की बात करें तो जम्मू और कश्मीर में खेतिहर मजदूरों को प्रति व्यक्ति औसतन 524.6 रुपये दिहाड़ी मिल रही है।
हिमाचल प्रदेश में यह आंकड़ा 457.6 रुपये है। जबकि केरल के आसपास वाले राज्यों जैसे तमिलनाडु में 445.6 रुपये प्रति दिन मजदूरी है।
अन्य राज्यों की बात की जाए तो, बिहार में खेतिहर मजदूरों का दैनिक वेतन 290.3 है। वहीं उत्तर प्रदेश में 288 रुपये और महाराष्ट्र में 284.2 रुपये दैनिक मजदूरी मिलती है।
RBI ने जिन राज्यों को ऊंचे पायदान पर रखा है, उसमें हरियाणा और हिमाचल प्रदेश भी आते हैं। इसमें हिमाचल प्रदेश में 457.6 रुपए और हरियाणा में 395 रुपए प्रति दिन की मजदूरी मिलती है।
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गैर-कृषि मज़दूरों स्थिति
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार देश में जो मजदूर गैर-कृषि श्रमिकों के तौर पर काम करते हैं, उनमें मध्य प्रदेश में सबसे कम 230.3 रुपये रोजाना औसत वेतन है।
वहीं, गुजरात के मजदूरों को 252.5 रुपये औसत दैनिक मजदूरी मिलती है। जबकि, त्रिपुरा में 250 रुपये का दैनिक वेतन मिल रहा है। इन सभी राज्यों में मजदूरी राष्ट्रीय औसत 326.6 रुपये से भी कम है।
दूसरी ओर केरल फिर से गैर-कृषि श्रमिकों के वेतन में 681.8 रुपये प्रति व्यक्ति के साथ सबसे आगे हैं।
जारी आंकड़ों में पाया गया कि मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिए केरल के बाद जम्मू-कश्मीर में 500.8 रुपये, तमिलनाडु में 462.3 रुपये और हरियाणा में 409.3 रुपये रोजाना की औसत मजदूरी थी।
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कम मजदूरी चिंता का मुद्दा
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण निर्माण मजदूरों के लिए दैनिक वेतन केरल में 837.7 रुपये, जम्मू-कश्मीर में 519.8 रुपये, तमिलनाडु में 478.6 रुपये और हिमाचल प्रदेश में 462.7 रुपये था।
क्रिसिल के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण आय की संभावनाएं मौसम की अनिश्चितताओं पर निर्भर रहती हैं। जबकि मनरेगा नौकरियों की मांग में कमी नौकरी के नजरिए से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक उत्साहजनक संकेत है, कम मजदूरी ग्रामीण मांग के लिए चिंता का विषय है।
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