एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर जानकारी साझा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से चुनाव के बाद का वक़्त माँगा, लग रहे भ्रष्टाचार छिपाने के आरोप

एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर जानकारी साझा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से चुनाव के बाद का वक़्त माँगा, लग रहे भ्रष्टाचार छिपाने के आरोप

बीते महीने की 15 तारीख को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एक निर्णय लेते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जो इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है, उसे निर्देश दिया था कि वह छह मार्च 2024 तक 12 अप्रैल, 2019 से लेकर अब तक ख़रीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में ये कहा था कि ‘इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है’.

कोर्ट के आदेशानुसार चुनाव आयोग को ये जानकारी 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जारी करनी थी.

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है.

यह एक वचन पत्र की तरह है, जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.

मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानून बना कर लागू कर दिया था.

एसबीआई का क्या कहना है

इसी बीच बीते सोमवार को एसबीआई ने इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका डाली है.

एसबीआई ने कहा कि ‘ वह अदालत के निर्देशों का “पूरी तरह से पालन करने करना चाहता है. हालांकि, डेटा को डिकोड करना और इसके लिए तय की गई समय सीमा के साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां है. इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए कड़े उपायों का पालन किया गया है. अब इसके डोनर और उन्होंने कितने का इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है, इस जानकारी का मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है.”

बैंक ने कहा कि दो जनवरी, 2018 को इसे लेकर “अधिसूचना जारी की गई थी.” यह अधिसूचना केंद्र सरकार की ओर से साल 2018 में तैयार की गई इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना पर थी.

इसके क्लॉज़ 7 (4) में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अधिकृत बैंक हर सूरत में इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदार की जानकारी को गोपनीय रखे.

अगर कोई अदालत इसकी जानकारी को मांगती है या जांच एजेंसियां किसी आपराधिक मामले में इस जानकारी को मांगती है, तभी ख़रीदार की पहचान साझा की जा सकती है.

बैंक ने अपनी याचिका में कहा है, ”इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदारों की पहचान को गोपनीय रखने के लिए बैंक ने बॉन्ड कि बिक्री और इसे भुनाने के लिए एक विस्तृत प्रकिया तैयार की है जो बैंक की देशभर में फैली 29 अधिकृत शाखाओं में फॉलो की जाती है.”

एसबीआई ने कहा, ”हमारी एसओपी के सेक्शन 7.1.2 में साफ़ कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने वाले की केवाईसी जानकारी को सीबीएस (कोर बैंकिंग सिस्टम) में ना डाला जाए. ऐसे में ब्रांच में जो इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं, उनका कोई सेंट्रल डेटा एक जगह पर नहीं है. जैसे ख़रीदार का का नाम, बॉन्ड ख़रीदने की तारीख, जारी करने की शाखा, बॉन्ड की क़ीमत और बॉन्ड की संख्या. ये डेटा किसी सेंट्रल सिस्टम में नहीं हैं. ”

“बॉन्ड ख़रीदने वालों की पहचान गोपनीय ही रहे यह सुनिश्चित करने के लिए बॉन्ड जारी करने से संबंधित डेटा और बॉन्ड को भुनाने से संबंधित डेटा दोनों को को दो अलग-अलग जगहों में रखा गया है और कोई सेंट्रल डेटाबेस नहीं रखा गया.”

एसबीआई ने कहा, “हर राजनीतिक दल को 29 अधिकृत शाखाओं में से किसी में एक में अकाउंट बनाए रखना ज़रूरी था. केवल इसी अकाउंट में उस पार्टी को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड जमा किये जा सकते थे और भुनाये जा सकते थे. भुनाने के समय मूल बॉन्ड, पे-इन स्लिप को एक सीलबंद कवर में एसबीआई मुंबई मुख्य शाखा को भेजा जाता था.”

“ऐसे में यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जानकारी के दोनों सेट एक दूसरे से अलग-अलग स्टोर किए जा रहे थे. अब उनका मिलान करना एक ऐसा काम होगा जिसके लिए काफ़ी समय की ज़रूरत होगी. बॉन्ड ख़रीदने वाला कौन है, ये जानकारी उपलब्ध कराने के लिए हर बॉन्ड के जारी होने की तारीख़ को को डोनर के ख़रीदने की तारीख़ से मिलाना होगा.”

”ये एक जगह की जानकारी होगी. यानी बॉन्ड जारी हुआ और किसने ख़रीदा इसकी जानकारी होगी. फिर जानकारी का दूसरा सेट आएगा, जहाँ ये बॉन्ड राजनीति दल ने अपने अधिकृत खाते में भुनाया होगा. फिर हमें ख़रीदे गए बॉन्ड की जानकारी भुनाए गए बॉन्ड की जानकारी से मिलाना होगा.”

एसबीआई ने समय बढ़ाने के पक्ष में दलील देते हुए कहा, “हर जगह से जानकारी प्राप्त करना और एक जगह की जानकारी को दूसरे जगह से मिलाने की प्रक्रिया एक समय लेने वाली प्रक्रिया होगी. जानकारियां अगल-अलग जगहों पर स्टोर की गई हैं.”

“कुछ जानकारी जैसे बॉन्ड की संख्या आदि को डिज़िटल रूप से स्टोर किया गया है जबकि अन्य विवरण जैसे ख़रीदार का नाम, केवाईसी आदि को फ़िजिकल रूप में स्टोर किया गया है. ऐसा करने के पीछे हमारा उद्देश्य था कि योजना के तहत किसी भी तरह से बॉन्ड ख़रीदने वालों की पहचान ज़ाहिर ना हो.”

बैंक ने कहा है कि 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड को राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए ख़रीदा गया.

बैंक ने बताया, “हर चरण के अंत में भुनाए गए बॉन्ड को सीलबंद लिफाफे में अधिकृत शाखाओं की ओर से मुंबई मुख्य शाखा में जमा किया जाता था. चूंकि डेटा के दो अलग-अलग सेट हैं, ऐसे में हमें 44,434 जानकारियों के सेट डिकोट करना होगा, मिलाना होगा और उनकी तुलना करनी होगी.”

एसबीआई ने कहा, ”इसलिए यह अदालत से दरख़्वास्त करते हैं कि 15.02.2024 के फ़ैसले में तय की गई तीन सप्ताह की समय-सीमा पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी और हमें आदेश पालन करने के लिए और वक़्त दिया जाए.”

एसबीआई की ओर ये दाखिल की गई इस याचिका में जून तक का समय मांगने की कुछ लोग आलोचना कर रहे हैं. उनका तर्क है कि देश में आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए ऐसा किया जा रहा है.

चुनाव से पहले भ्रष्टाचार छुपाने की कोशिश

वही सामाजिक कार्यकर्त्ता और विपक्षी दल एसबीआई द्वारा समय सीमा को बढ़ने की मांग पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं.

आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने इसे लेकर एक्स पर लिखा, “बॉन्ड ख़रीदने और इसे भुनाने की जानकारी दोनों एसबीआई के मुंबई ब्रांच में सीलबंद लिफाफे में हैं ये बात एसबीआई का हलफ़नामा कह रहा है तो फिर क्यों बैंक ये जानकारी तुरंत जारी नहीं कर देता. 22,217 बॉन्ड की के ख़रीदार और भुनाने की जानकारी मिलाने के लिए चार महीने का समय चाहिए, बकवास है ये.”

कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा ” एसबीआई को आदेश दिया गया था कि 6 मार्च तक सारे इलेक्टोरल बॉन्ड डोनर के नाम सार्वजानिक किये जाएं. अब एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का वक़्त माँगा है. ये सिर्फ भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए किया जा रहा है”.

उन्होंने आगे कहा कि ” एसबीआई जिसके पास 48 करोड़ अकाउंट धारक है, 66 हज़ार के करीब एटीएम हैं, लगभग 23 हज़ार ब्रांच है. और इन सब की जानकारी डिजिटल बैंकिंग के युग में कंप्यूटर की एक क्लीक पर 5 मिनट में निकाली जा सकती है. उस एसबीआई को सिर्फ 22,217 इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा निकालने के लिए 136 दिनों का वक़्त क्यों चाहिए. तस्वीर साफ़ है कि इस महालूट में किसी को बचाने की कोशिश की जा रही है”.

इसे पर राहुल गांधी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है, “नरेंद्र मोदी ने चंदे के धंधे को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब एसबीआई क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले ये जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?”

राहुल गांधी ने लिखा, “एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है.”

( बीबीसी की खबर से साभार)

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Abhinav Kumar

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