पिछले साल 42000 दिहाड़ी मजदूरों ने की आत्महत्या, हर चौथी आत्महत्या दिहाड़ी मजदूर की

पिछले साल 42000 दिहाड़ी मजदूरों ने की आत्महत्या, हर चौथी आत्महत्या दिहाड़ी मजदूर की

काम छोटा हो या बड़ा दिहाडी मजदूरों के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसके बावजूद भारत में दिहाड़ी मजदूर ही सबसे ज्यादा हाशिए पर हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं।

साल 2021 में कुल आत्महत्या करने वालों में अकेले दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने की संख्या एक चौथाई है, जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। इसका खुलासा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़ो से हुआ है।

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प्रधानसेवक के राज में खतरे में दैनिक मजदूरों की जान राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है।

इंडियन एक्सप्रेस से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2021 के दौरान दर्ज किए गए 1,64,033 आत्महत्या के मामले सामने आये।

इनमें 41 हजार से अधिक मामले दिहाड़ी मजदूरों से जुड़े हैं। कुल आत्महत्या के मामलों में 25.6 प्रतिशत मौतों की संख्या दिहाड़ी मजदूरों के नाम दर्ज हैं।

दैनिक समस्याओं के कारण कर रहे आत्महत्या

यानि देश में दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी सबसे ज्यादा खतरे में है। अपनी दैनिक समस्याओं से परेशान होकर वो पहले से ज्यादा संख्या में आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं।

इससे पहले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की आत्महत्या 2019 की वार्षिक रिपोर्ट में भी ये खुलासा हुआ था कि किसानों की आत्महत्या में हल्की गिरावट आई है लेकिन दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का प्रतिशत पिछले आठ वर्षों में 12 प्रतिशत बढ़ा है।

2019 के के आंकड़े को देखें तो आत्महत्या से मरने वालों की कुल संख्या 1,39,123 में से 32,559 दिहाड़ी मज़दूर थे और प्रतिशत में इसे 23.4 आंका गया था। यानी दो साल पहले ही कि लगभग खुद को मारने वाला हर चौथा इंसान दिहाड़ी मजदूर बन गया था अब यह दर बढ़कर हर चौथे से ज्यादा हो गया है।

2020 में दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या दर 24.6 फीसदी यानि 37,666 हो गई थी। NCRB के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि आत्महत्या या खुदखुशी करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही हैं। इनमें पुरुषों की संख्या अधिक है।

साल 2015 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों का फीसदी 17 यानि 23,779 था जो वर्ष 2016 में बढ़कर 19 यानि 21,902 हो गया। 2017 में 22.1 यानि 28,737 और 2018 में 22.4 यानि 30,124 हो गया था।

डिस्क्रिट श्रेणी में दर्ज होता है दैनिक मजदूरों का मामला बता दें कि NCRB ने 2014 में पहली बार अपनी रिपोर्ट में केवल दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को डिस्क्रिट श्रेणी के रूप में शामिल करना शुरू किया था।

मोदी सरकार के शासनकाल में बढ़े आंकड़े

2014 में दिहाड़ मजदूरों की आत्महत्या दर कुल आत्महत्या की 12 प्रतिशत हुआ करती जो बढ़कर मोदी सरकार के आठ साल के शासनकाल में 25 फीसदी से ज्यादा हो गई है।

अनदेखी की बड़ी वजह ये तो नहीं अब अहम सवाल यह है कि आखिर दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या क्यों कर रहे हैं, इसकी वजह क्या है।

दरअसल, दिहाड़ी मज़दूरों का आत्महया करना कोई नई समस्या नहीं है जो अचानक से उभर कर आ गई है। यह तो बहुत पहले से चला आ रहा है, जो अब देश की अर्थव्यवस्था के लिए घोर संकट बन गया है। इस समस्या की शुरुआत वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी और नोटेबंदी से हुई थी।

मोदी सरकार के दौर में दिहाड़ी मजदूरों की पूरी अनदेखी हुई। मजदूर अपना श्रम लगाता है। उसी श्रम पर उसका हर रोज का भोजन टिका होता है और उन्हीं पैसों में से दो पैसे की बचत भी करता है।

सरकार इन्हें इनका उचित मेहनताना नहीं देती। कोविड-19 का कहर मानो दिहाड़ी मज़दूरों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। हताश मजदूरों के पास खुद की जिंदगी खत्म करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया।

अगर आत्महत्या का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो एक दिन देश की शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी। दिहाड़ी मज़दूरों के हित में उनका उचित मेहनताना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। विविध क्षेत्रों से मिलने वाले अनुदान मुहैया कराना चाहिए।

जब इन मजदूरों को उनके हिस्से का भी अधिकार उन्हें नहीं मिलेगा तो थक हार के वे ऐसे भयावह कदम उठाने को मज़बूर तो होंगे ही।

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WU Team

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