आंध्र पेपर प्लेट फैक्ट्री में आग लगने से तीन मज़दूर जिंदा जले, दर्दनाक मौत
आंध्र प्रदेश के चित्तूर स्थित एक फैक्टरी में बुधवार देर रात आग लगाने से तीन मज़दूरों की मौत हो गई। बता दें कि फैक्ट्री में पेपर प्लेट का निर्माण किया जाता था। मामले में छानबीन जारी है। पुलिस ने संदेह जताया है कि यह आग शार्ट सर्किट की वजह से लगी। मामला दर्ज कर लिया गया है और पूरे मामले की जांच जारी है।
मृतकों की पहचान भास्कर (65), दिल्ली बाबू (35) और बालाजी (25) के रूप में हुई है, जब शॉर्ट सर्किट के कारण लगने वाली आग लगने के कारण दो मंजिला इमारत के अंदर फंस गए थे।
ये भी पढ़ें-
- गुड़गांव मानेसर में पिछले एक साल में 42 प्रवासी मजदूरों की मौत
- मैनेजमेंट की जबरदस्ती का एक और मजदूर शिकार, रिको बावल में ठेका मजदूर की दर्दनाक मौत
दिल्ली बाबू साफ्टवेयर इंजीनियर था और वहां यूनिट में अपने पिता की मदद करने गया था। जन्मदिन के दिन ही पिता के साथ दिल्ली बाबू आग की चपेट में आ गया। पूरा परिवार शोकाकुल है।
इंडियन एक्सप्रेस से मिली जानकर के मुताबिक घटना स्थल पर मौजूद सीआई यतेंद्र ने बताया कि “घटना मंगलवार रात करीब 11:30 बजे हुई। उन्मत्त पीड़ितों ने अपने रिश्तेदारों को फोन किया और उन्हें आग लगने की सूचना दी और मदद मांगी।
पीड़ितों ने पुलिस और दमकल कर्मियों को भी फोन किया। तब तक हम मौके पर पहुंच सकते थे। आग पूरी इमारत में फैल गई थी और दो दमकल गाड़ियों के लिए भी आग पर काबू पाना मुश्किल हो गया था।”
सीआई ने कहा कि पुलिस उनकी इमारत के समानांतर एक दीवार तोड़कर इमारत में दाखिल हुई और तीन मज़दूरों को इमारत से बाहर ले आई। पुलिस कर्मियों ने तीनों मज़दूरों को लगभग 1 बजे चित्तूर के सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया, जहां डॉक्टरों ने तीनों को मृत घोषित कर दिया।
ये भी पढ़ें-
- काम के दौरान सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय कानून मानने का भारत पर दबाव बढ़ा
- गुड़गांव में 17वें माले से गिर कर 4 मज़दूरों की दर्दनाक मौत
गौतलब है कि कार्य स्थल पर सुरक्षा इंतजामों का नामों निशान नहीं है। कम्पनी मालिक केवल अपने प्रोडक्शन को बढ़ने की ओर ध्यान दे रहा है, जिसके कारण कार्यस्थल पर मज़दूरों के मौत के मामले लगातार बढ़ते ही जारहे है।
भारत में काम के दौरन मज़दूरों की मौत के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। फ़ैक्ट्रिय़ों में होने वाली दुर्घटनाओं में हर साल सैंकड़ों मज़दूरों की मौत हो जाती है और हज़ारों मज़दूर विकलांग हो जाते हैं।
संसद में साल 2021 में सरकार की दी गई जानकारी के मुताबिक पांच सालों में कम से कम 6500 मज़दूर फ़ैक्ट्रियों, पोर्ट, माइनों और कन्स्ट्रक्शन साइटों पर मारे गए हैं।
हालांकि इस क्षेत्र में काम करने वाले समाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह संख्या इससे बहुत ज़्यादा हो सकती है, क्योंकि कई मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते या उनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता है।
वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें
(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)