यूक्रेनः ज़ेलेंस्की सरकार ने मज़दूरों के सारे अधिकार खत्म किए, श्रम कानून बना रद्दी

यूक्रेनः ज़ेलेंस्की सरकार ने मज़दूरों के सारे अधिकार खत्म किए, श्रम कानून बना रद्दी

लंबा युद्ध झेल रहा पूर्व सोवियत संघ के देश यूक्रेन में ट्रेड यूनियनें और मज़दूर संगठन सरकार के एक फैसले का विरोध कर रहे हैं, जिससे मज़दूरों के दो तिहाई अधिकार छिन जाएंगे।

यूक्रेन की ज़ेलेंस्की सरकार ने बीते हफ्ते संसद में मज़दूर विरोधी कानून को मंजूरी दे दी है। इस कानून के पारित होने से यूक्रेन में सारे श्रम कानून अब रद्दी का कागज बन कर रह गए हैं।

सोमवार और मंगलवार को संसद में दो कानून पारित किये गए हैं, जिसमें शून्य-घंटे के अनुबंधों (zero-hours contracts) और मज़दूरों को कार्यस्थल में मिलने वाली 70 फीसदी छूट को खत्म कर दिया गया है।

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सरकार में राष्ट्रीय श्रम कानून द्वारा गारंटीकृत सुरक्षा से इन दोनों कानूनों को हटाने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया है।

मसौदा कानून 5371 के तहत, संसद में इन कानूनों के पारित होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, यूक्रेनी और यूरोपीय ट्रेड यूनियनों ने इस कानून के कड़ी आलोचना की है।

यूक्रेन की सभी ट्रेड यूनियनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। साथ ही सभी ट्रेड यूनियनों का कहना है की इस तरह के कानूनों को लाना मतलब अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन करना है।

ज़ीरो आवर कांट्रैक्ट क्या है?

शून्य-घंटे अनुबंध मालिक और वर्कर के बीच एक प्रकार के रोजगार अनुबंध है, जिसके तहत कंपनी वर्कर को काम के घंटे की न्यूनतम गारंटी देने के लिए बाध्य नहीं है। शब्द ‘शून्य घंटे का अनुबंध’ मुख्य रूप से ब्रिटेन में प्रयोग किया जाता है।

2015 में, यूके में नियोक्ताओं को शून्य-घंटे के अनुबंध को प्रतिबंधित कर दिया गया था, जो वर्करों को एक ही समय में अलग अलग नियोक्ता के लिए काम करने से रोकता था।

सितंबर 2017 में, यूके ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने अनुमान लगाया कि शून्य-घंटे के अनुबंध पर 900,000 से अधिक वर्कर काम कर रहे हैं, यानी कुल मज़दूरों का 2.9 प्रतिशत।

यूके में, शून्य-घंटे के अनुबंध विवादास्पद हैं। ट्रेड यूनियनों, अन्य श्रमिक निकायों और समाचार पत्रों ने उन्हें श्रम के शोषण के रूप में बताया है। शून्य घंटे के अनुबंध का उपयोग करने वाले नियोक्ताओं में स्पोर्ट्स डायरेक्ट, मैकडॉनल्ड्स और बूट्स शामिल हैं।

नए क़ानून से क्या बदल जाएगा

इन कानूनों में मुख्य रूप से सभी मज़दूर यूनियनों से एक मुख्य अधिकारों  की छीन लिया है। कानून पारित न होने से पहले मज़दूर यूनियनों को अधिकार था कि वो संस्थान में से किसी मज़दूर की बर्खास्तगी को रोक सकते थे।

साथ ही प्रबधन इनकी अनुमति के बिना मज़दूर सम्बन्धी नियम पारित नहीं कर सकता था लेकिन नए कानून के आ जाने के बाद इस तरह के 70 फीसदी अधिकारों को सभी ट्रेड यूनियनों से छीन लिया गया है।

दूसरा नियम जिसको zero-hours contracts कहा गया है इसमें मज़दूरों के काम करने के घंटे पहले से निर्धारित होते थे। लेकिन अब इस नियम को भी ख़त्म कर दिया गया है। कहा जाये तो अब कोई भी कंपनी मज़दूरों से अपनी मर्ज़ी के अनुसार काम करा सकती है।

यूक्रेनी सांसद वादिम इवचेंको ने बताया की यूक्रेन की ट्रेड यूनियनों का संघ अब राष्ट्रपति ब्लादीमीर ज़ेलेंस्की से मसौदा कानून 5371 पर दोबारा वोटिंग करने की बात पर बैठक करेंगे।

यूक्रेन रूस युद्ध

उल्लेखनीय है कि यूक्रेन में बीते तीन महीने से रूस के साथ युद्ध चल रहा है। इसमें भारी जन धन की हानि हो रही है। रूस चाहता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों का पिट्ठू ज़ेलेंस्की, सत्ता से बाहर हटे और रूसी भाषा बोलने वाले लोगों का नरसंहार बंद हो।

साथ ही रूस की शर्त है कि यूक्रेन नाटो देशों के संघ में शामिल होकर पश्चिमी देशों द्वारा रूस की घेरेबंदी में साथ न दे। लेकिन राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की जोकि पहले एक कॉमेडियन थे, अड़े हुए हैं और पश्चिमी देशों को रूस पर हमला करने के लिए लगातार उकसा रहे हैं, जिससे यह युद्ध ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

पुतिन अपनी विस्तारवादी नीति की मंशा 2014 में ही ज़ाहिर कर दी थी जब उन्होंने यूक्रेन के एक हिस्से क्रीमिया को काट कर रूस में मिला लिया था। तब भी रूस पर काफी प्रतिबंध लगाए गए थे।

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WU Team

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