मशीन में ठेका मजदूर का हाथ कुचला, ठेकेदार ने छोड़ा तो बेलसोनिका यूनियन ने की आर्थिक मदद
By शशिकला सिंह
हरियाणा में मानेसर स्थित मारुति की कंपोनेंट मेकर कंपनी बेलसोनिका में हुए एक हादसे में ठेका मज़दूर का हाथ पिस गया।
बीते चार मई को कैंटीन में काम करने वाले करन परमार का हाथ आंटा गूंथने वाली मशीन में आ गया था जिसके बाद उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
शुरुआत में उसे ठेकेदार ने निजी अस्पताल में दाखिला दिला दिया लेकिन कुछ दिन बाद ही उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया। न तो कंपनी और न ही ठेकेदार ने उसकी ज़िम्मेदारी ली।
करन का आरोप है कि कंपनी के एचआर मैनेजर और कैंटीन के मैनेजर उसे वापस घर जा कर खुद इलाज करवाने के बारे में दबाव डाल रहे हैं।
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यूनियन ने की आर्थिक मदद
बीते रविवार की बेलसोनिक कर्मचारी यूनियन ने चंदा करके ठेका मज़दूर की 94,250 रुपये की आर्थिक मदद की।
हालांकि करन ने बताया कि ठेकेदार और प्रबंधन ने यूनियन से दी गई आर्थिक मदद को स्वीकार न करने को कहा था और यूनियन की ओर से दिए गए लेटर को हासिल करने की कोशिश की गई।
यूनियन के नेता अजीत सिंह ने बताया कि 4 मई को सी शिफ्ट के दौरान फैक्ट्री की कैंटीन में काम करने वाले करन परमार दांया हाथ आटा गूथनेवाली मशीन में फंस गया और कई जगह फ्रैक्चर हो गया।
पहले इसका इलाज एक प्राईवेट अस्पताल में कराया गया लेकिन बाद में यूनियन के हस्तक्षेप के बाद उसका ESI में इलाज शुरू करवाया गया है।
यूनियन से सदस्यों ने इस मामले की शिकायत औद्योगिक सुरक्षा विभाग में भी दर्ज करवा दी है, लेकिन पहले ही ठेकेदार ने सादे कागज पर साइन करा कर समझौतानामा बना लिया है।
यूनियन प्रधान मोहिंदर कपूर ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि, “इस घटना के बाद से ही यूनियन करन की हर प्रकार से मदद कर रही थी। लेकिन एक महीने बाद भी मजदूर की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है।”
कपूर ने बताया कि करन के हाथ का एक बार ऑपरेशन हो चुका है लेकिन उसमें किसी किस्म की हरकत नहीं हो रही है। डॉक्टर का कहना है कि एक बार ऑपरेशन और करना होगा।
ठेकेदार ने मुंह फेरा
करन परमार का कहना है कि डॉक्टर ने कहा है कि “अभी एक ऑपरेशन और होगा उसके बाद हाथ ठीक हो जायेगा। लेकिन कंपनी या ठेकेदार की ओर से कोई मदद नहीं की जा रही है।”
परमार के अनुसार, ‘जब दुर्घटना हुई तो शुरुआती इलाज का खर्च ठेकेदार ने उठाया। अप्रैल महीने की सैलरी भी दी, साथ ही गांव से मां बाप और करन के दो वक़्त का कैंटीन में खाने का भी इंतज़ाम कराया। लेकिन अब वे चाहते हैं कि करन घर चला जाए।’
कारन का कहना है कि “इस घटना के बाद से ही परिवार के सभी लोग बहुत परेशान हैं। अभी हाथ भी पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है। लेकिन उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया है।”
करन ने ऐसे मुश्किल हाल में यूनियन के साथ खड़े होने पर संतुष्टि जताई और यूनियन का धन्यवाद दिया, “मैं इन लोगों का धन्यवाद करता हूं कि इस परेशानी के समय में सभी मज़दूर भाई मेरे साथ खड़े हैं।”
मुआवज़े तक पर कोई बात नहीं
मात्र 19 वर्ष की आयु वाले करन उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले हैं। वह अपने घर में कमाने वाले अकेले सदस्य हैं।
लेकिन इस घटना के बाद से परिवार काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले एक महीने से उसके माता-पिता उसके साथ ही अस्पताल में ही हैं।
ठेकेदार इस मामले को किसी तरह रफा दफा करने की फिराक में है और इसीलिए ठेका मजदूर से पहले ही हस्ताक्षर करा लिए गए हैं ताकि कोई दावा न बन सके।
हालांकि बहला फुसला कर या दबाव डाल कर ली गई सहमति क़ानून के नज़र में अवैध होती है, फिर भी मजबूरी में मज़दूर ऐसा करते हैं।
गौरतलब है कि हरियाणा के इस औद्योगिक बेल्ट में रोज़ाना ही नौजवान मज़दूर किसी न किसी औद्योगिक दुर्घटना के शिकार होते हैं लेकिन कंपनी और ठेकेदार उन्हें प्राथमिक उपचार करके छोड़ देते हैं।
यहां तक कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत ऐसे घायल मज़दूरों को मुआवज़ा तक नहीं दिया जाता।
(Shashikala Singh is a reporting fellow at Workers Unity and this story is supported by Notes to Academy)
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