उत्तर प्रदेश: ओबरा में निर्मित पॉवर प्लांट में 12 घंटे ज्यादा लिया जा रहा मजदूरों से काम, न्यूनतम मजदूरी का भी नहीं हो रहा भुगतान
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला स्थित ओबरा में ओबरा सी तापीय परियोजना का निर्माण कार्य जोर शोर से चल रहा है.
मालूम हो कि 660 मेगावाट की दो इकाइयों का काम 22 दिसंबर 2016 में शुरू किया गया था.
प्रदेश सरकार का मानना है कि इस परियोजना से बिजली उत्पादन के बाद प्रदेश को बिजली संकट से निजात मिल जाएगी.
परियोजना का निर्माण अपने अंतिम दौर में है, जिसकी वजह से ठेकेदारों द्वारा काम की गति काफी तेज कर दी गई है.
जिसके बाद कई मज़दूर संगठनों ने आरोप लगाया है कि ओबरा सी परियोजना में मज़दूरों से गुलामी कराई जा रही है.
मज़दूरों से गुलामों की तरह लिया जा रहा काम
यू. पी. वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व श्रम बंधु दिनकर कपूर का कहना है कि ” तमाम कंस्ट्रक्शन कंपनियों में मजदूरों से गैर कानूनी ढंग से 12 घंटे काम कराया जा रहा है और न्यूनतम मजदूरी का भी भुगतान नहीं किया जा रहा है. हालत इतनी बुरी है कि मज़दूरों की कई-कई महीनों की मज़दूरी बकाया है. यह मजदूरों की जीवन सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा कर रहा है”.
उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि ‘ मज़दूरों के इस तरह के शोषण के खिलाफ हम अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे. ठेका मजदूर यूनियन के 18 फरवरी को पिपरी में आयोजित सम्मेलन में इस पर रणनीति बनाई जाएगी’.
कपूर ने आगे बताया कि ” कोरोना काल में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा काम के घंटे 12 करने की कोशिश की गई थी. जिसे हाईकोर्ट में हमारे हस्तक्षेप के बाद सरकार को वापस लेना पड़ा था. मोदी सरकार संसद से पारित किए गए लेबर कोड के जरिए काम के घंटे 12 करने की कोशिश कर रही है. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे विरोध के कारण अभी लागू नहीं कर पाई है. इसके लागू न होने के बावजूद ओबरा सी में तमाम कंपनियों में 12 घंटे काम कराया जा रहा है”.
मज़दूरों कि स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि ” कुशल मजदूरों तक को 350 रूपए मजदूरी देकर काम कराया जा रहा है. इस व्यवस्था के कारण मजदूर महज 6 से 7 घंटा ही सो पा रहे हैं जिससे उनके जीवन का भीषण नुकसान हो रहा है. यह और कुछ नहीं रोजगार संकट के इस दौर में मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाकर कराई जा रही आधुनिक गुलामी है. इसके खिलाफ श्रम विभाग को पत्र भेजा जाएगा और जांच कराने की मांग की जाएगी”.
उन्होंने कहा कि ” प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन ना होने के कारण मजदूरी बेहद कम है और इस महंगाई में मजदूरों के लिए अपना जीवन यापन करना कठिन होता जा रहा है. कल विधान परिषद में श्रम मंत्री ने भी स्वीकार किया कि शीघ्र ही प्रदेश में वेज बोर्ड का गठन किया जाएगा. यह हमारे आंदोलन की जीत है. अब सरकार को प्रदेश में 26000 रूपए मासिक न्यूनतम वेतन करना चाहिए”.
मालूम हो कि इससे पहले बिहार के बक्सर में निर्मित थर्मल पावर प्लांट में भी मज़दूरों के ऐसी प्रकार के शोषण की शिकायत मज़दूर संगठनों ने की थी. देखने वाली बात होगी कि मज़दूर संगठनों के शिकायत का सरकार और श्रम विभाग पर कितना असर पड़ता है.
(ठेका मजदूर यूनियन, सोनभद्र द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर)
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