हल्द्वानी साम्प्रदायिक घटना के विरोध में उत्तराखंड सरकार का पुतला दहन, पुलिस प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में 8 फरवरी को फैली हिंसा ने राज्य में तनाव और भय का माहौल बना दिया है. इस हिंसा में 200-300 लोगों के घायल होने और 5-6 लोगों के मारे जाने की खबरें सामने आई थी.
3-4 फरवरी को जब पहली बार नगर निगम की टीम वनभूलपुरा स्थित मलिक के बगीचे पर कब्जे व वहां स्थित मस्जिद-मदरसे को ढहाने गयी तो भी वहां की जनता ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर प्रशासन की इस कार्यवाही का विरोध किया था.
तब प्रशासन की टीम उक्त स्थल को सील कर वापस लौट गयी थी. प्रशासन द्वारा हटाये जा रहे इस अतिक्रमण के विरोध में कुछ स्थानीय लोग अदालत में गये जहां 14 फरवरी को इस मामले की सुनवाई होनी थी.
पर प्रशासन ने उक्त तारीख तक इंतजार करने के बजाय 8 फरवरी को बगैर किसी खास तैयारी के मस्जिद-मदरसा ढहाने की घटना अंजाम दे दी. प्रशासन ने इस बात का भी ख्याल नहीं किया कि धार्मिक स्थल ढहाने से लोग आक्रोशित हो सकते हैं.
सभा में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के नासिर अहमद ने कहा कि ‘धामी सरकार की अतिक्रमण हटाने के नाम पर वर्षों से बसी आबादी को उजाड़ने की जिद पर अड़ी है. बीते एक वर्ष से पूरे प्रदेश में जनता को परेशान कर रखा है. आये दिन बुलडोजर से बस्ती उजाड़ना इस सरकार का प्रिय खेल बन चुका है. प्रदेश में कई बस्तियां उजाड़ हजारों लोगों के सिर से छत छीनी जा चुकी है और लाखों लोग कभी भी सिर से छत छीने जाने की आशंका में जी रहे हैं’.
सभा में भेल मजदूर ट्रेड यूनियन के महामंत्री अवधेश कुमार ने कहा कि ‘अतिक्रमण के नाम पर लालकुंआ में उजाड़ी गयी नगीना कालोनी के ज्यादातर निवासी गरीब मजदूर-मेहनतकश ही थे. इसी के साथ संघ-भाजपा की फासीवादी मंसूबों से लैस सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रिहायश-पूजा स्थलों को विशेष तौर पर निशाने पर ले रही है. आये दिन अवैध अतिक्रमण के नाम पर मजारें ध्वस्त करने की खबरें प्रसारित कर हिन्दू फासीवादी यह प्रचारित करने में जुटे हैं कि मुस्लिम ही ज्यादातर अतिक्रमणकारी हैं. इस तरह सरकार प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत बनाना चाहती है’.
वही प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की नीता ने कहा कि ‘उत्तराखंड जैसे प्रदेश में जहां एक बड़ी आबादी वर्षों से वन भूमि-नजूल भूमि पर काबिज है. जहां वक्त-वक्त पर सरकारें, नेता, ठेकेदार ऐसी जगहों पर लोगों को बसाते रहे हैं और भारी कमाई करते रहे हैं. वहां होना तो यह चाहिए था कि सरकार कोई नीति घोषित कर इन जगहों पर लोगों को मालिकाना हक दे देती. पर धामी सरकार पूरे प्रदेश की बड़ी आबादी खासकर अल्पसंख्यकों के सिर से छत छीनने का तुगलकी कारनामा करने में जुटी है. प्रदेश के न्यायालय भी लोगों के सर से छत उजाड़ने की सरकारी मुहिम में सरकार के साथ खड़े हैं.’
मौके पर मौजूद एक वक्ता ने बताया कि ‘इस तरह की हिंसा को न तो जायज ठहराया जा सकता है और न ही इसका पक्ष लिया जा सकता है. ऐसी हिंसा दोनों धर्मों के कट्टरपंथी ताकतों को वैमनस्य बढ़ाने का मौका दे देती है. पर साथ ही इस हिंसा के लिए सरकार व स्थानीय प्रशासन जिस तरह स्थानीय लोगों को ही एकतरफा तौर पर बगैर जांच किये दोषी ठहरा रहे हैं और जिस तरह से अपनी अतिक्रमण हटाओ नीति और इरादों को पाक साफ घोषित कर रहे हैं, उस पर भी सवाल खड़े किये जाने चाहिए’.
“सवाल उठता है कि प्रशासन को उक्त धार्मिक स्थल को ढहाने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी कि उसने 14 फरवरी की अदालती कार्यवाही का इंतजार तक नहीं किया. सवाल यह भी उठता है कि गौशाला प्रकरण में अनर्गल बयानबाजी करने वाले अफसर पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई. एकतरफा तौर पर स्थानीय लोगों पर ही मुकदमा लिखने व रासुका सरीखी धारायें लगाने की कार्यवाही क्यों की जा रही है जबकि घटना में प्रशासन-पुलिस की भूमिका की जांच तक नहीं करायी गयी. सवाल सरकार की अतिक्रमण हटाने के नाम पर अपने साम्प्रदायिक एजेण्डे को आगे बढ़ाने की नीति पर भी उठता है”.
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया “हल्द्वानी में हुई हिंसा में सरकार व स्थानीय प्रशासन कहीं से भी पाक-साफ नहीं हैं. संघ-भाजपा के साम्प्रदायिक एजेण्डे को बढ़ाने की खातिर ही सरकार इस तरह की कार्यवाहियां कर प्रदेश में साम्प्रदायिक वैमनस्य का माहौल बनाना चाहती है. सरकार के इन कुत्सित मंसूबों के खिलाफ खड़े होकर ही प्रदेश के साम्प्रदायिक सौहार्द को बचाया जा सकता है”.
सभा के अंत में सभी ने एक स्वर में कहा कि ‘ इस घटना में सरकार-प्रशासन से लेकर स्थानीय कट्टरपंथी नेताओं की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो. घायलों व मृतकों को मुआवजा दिया जाये. पुलिस प्रशासन को जनता पर बदले की कार्यवाही थोपने से रोका जाए’.
( प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर)
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