पश्चिम बंगाल: गरीबी के कारण बीड़ी मजदूरों का जीना मुश्किल, वहीं कंपनियों को दिया जा रहा भारी मुनाफा
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में 17 लाख बीड़ी मज़दूर काम करते हैं जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है। आइये इस रिपोर्ट में जानते हैं कि किन परिस्तिथिओं में बीड़ी मज़दूर काम करते है।
पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद जिले के सुती थाना क्षेत्र में जरदा गांव की बीड़ी मजदूर और पांच बच्चों की मां, रूलेखा बीबी (35) के लिए कम वतन के कारण घर का खर्च चलना काफी मुशिकल हो रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा दिन-प्रतिदिन शोषण किया जाता है।”
एक दिन में 1000 बीड़ी बांधने के लिए, उन्हें 178 रुपये मिलते हैं। जिसमे से मुंशी या बिचौलिया दो मुट्ठी बीड़ी ‘पट्टी (घूस)’ के रूप में ले लेते हैं। कारखानों में मुंशी (बिचौलिए) द्वारा ली जाने वाली रिश्वत का प्रचलन काफी सालों से चला आ रहा है।
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पश्चिम बंगाल में बीड़ी को भारी मात्रा में अन्य राज्यों में निर्यात किया जाता है। बीबी ने बताया कि इसके बाद भी उन्हें हफ्ते में केवल तीन ही दिन काम मिलता है। केंदू के पत्ते, जिससे बीड़ी बांधी जाती है, उन्हें सप्ताह में केवल तीन बार ही दिया जाता है।
बीबी ने बताया, “हमें एक दिन में 1000 बीड़ी बनानी होती है जिसके हिसाब से मुंशी द्वारा कम पत्ते दिए जाते है जिसमें केवल 900 बीड़ियां ही बन पाती हैं।”
“बीड़ियों की संख्या कम होगी तो हमको वेतन भी कम दिया जाता है। इसलिए हम को बाजार से पत्ते खरीदने पड़ते हैं।” साथ ही उनका कहना है कि बीड़ी पर लपेटे जाने वाले धागे के साथ भी मुंशी और ठेकेदार यही चालाकी करते हैं।
12 घंटों में 1000 बीड़ी बांधने के 130 रुपए
बीबी ने बताया कि उन्हें एक दिन में 1000 बीड़ी बांधने के लिए वेतन के तौर पर मात्र 130 रुपये ही दिए जाते हैं।
“इस काम के लिए हमें 12 घंटों का समय दिया जाता है और यह तभी संभव है जब हाथों को बीड़ी बनाने का अच्छा कौशल हो और आंखों की रोशनी भी अच्छी होनी चाहिए।”
गौरतलब है कि बाजार में 20 बीड़ी वाला एक पैकेट 12 रुपये में बिकता है, जिसके अनुसार 1000 बीड़ी की कीमत सबसे कम 600 रुपये आंकी जाती है।
मुर्शिदाबाद में 17 लाख बीड़ी मज़दूर काम करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 2011 की जनगणना के अनुसार जिले के निवासियों की कुल संख्या 71.04 लाख बताई गयी थी, जिसमें से 17 लाख पुरषों व महिलाओं आबादी बीड़ी व्यापार से जुड़े हुए पाए गए थे।
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बीड़ी कंपनियों के अधिकांश मालिक करोड़पति हैं और सीधे तौर पर सांसद और विधायक के रूप में सत्ताधारी दल से जुड़े हैं। विधायक की तरह स्थानीय सांसद भी बीड़ी कंपनी के मालिक हैं।
मुर्शिदाबाद जिले के जिला अध्यक्ष भी एक बीड़ी निर्माण फैक्ट्री के मालिक हैं।
बीड़ी बनाने वाली फैक्ट्रियों में ‘पताका बीड़ी’ का सबसे ज्यादा निर्यात है। पताका बीड़ी का मुख्यालय कोलकाता में है जो देखने में बिलकुल हवेली की तरह दिखता है। साथ ही पताका बीड़ी का निर्यात खाड़ी देशों में भी किया जाता है।
सरकार की अनदेखी बनी शोषण का कारण
मुर्शिदाबाद जिले की रहने वाली शिरीन खातून (28) का तलाक काफी साल पहले हो गया था। शिरीन की एक सात साल की बेटी भी है। शिरीन अपनी माँ के साथ एक जर्जर मकान में रहती हैं। उसकी बेटी भी कभी-कभी उनकी काम में मदद करती है।
करीब 60 साल की शिरीन की मां भी बीड़ी बनाने का काम करती हैं। मां-बेटी की जोड़ी करीब 17 घंटे काम करने के बाद करीब 1500 बीड़ी बांध पाती हैं। दोनों हर महीने करीब 6500 रुपये कमाती हैं, जिससे परिवार के तीन लोगों को रोटी मिल पाती है।
नम आंखों से शिरीन बताती है कि जब मैंने एक बेटी को जन्म दिया तो, मेरे पति ने बच्ची को फेक दिया था। अब बस मैं यही कोशिश कर रही हूं की मेरी बेटी का स्थानीय सरकारी प्राथमिक स्कूल में दाखिला हो जाये।”
उसने आगे शिकायत की, “हम जीने में असमर्थ हैं, यहां तक कि सरकार ने हमें अपने घर के पुनर्निर्माण के लिए इंदिरा आवास योजना से पैसा नहीं दिया है, जबकि इलाके के अन्य लोगों को वह मिल गया है।”
शिरीन और उनकी मां का भविष्य निधि खाता नहीं है। मुर्शिदाबाद में 17 लाख बीड़ी मजदूरों में से केवल तीन लाख के नाम भविष्य निधि पंजीकरण है। बाकी के मज़दूरों को इस योजन कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
हफ्ते में सातों दिन काम
शिरीन ने कहा, “भले ही मुझे तेज बुखार हो या मैं बेहद अस्वस्थ हूं, फिर भी मुझे कंपनी से जो भी पत्ते मिल सकते हैं, उसके साथ सप्ताह में सात दिन बीड़ी बांधने का काम करना पड़ता है।” शिरीन नूर कंपनी के एक ठेकेदार के लिए बीड़ी बांधती है, जिसके मालिक खलीलुर रहमान, जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र के स्थानीय सांसद हैं।
रजिया बीबी (56) पिछले 43 साल से अधिक समय से इस काम को कर रही हैं। सुती द्वितीय थाना क्षेत्र की रहने वाली शिरीन के पास अभी भी भविष्य निधि खाता नहीं है।
रजिया का वेतन 125 रुपये है। रजिया का कहना है, “मैं पताका बीड़ी फैक्ट्री के लिए काम करती हूँ। मुझे मुंशी को चार मुट्ठी ‘पट्टी’ (घूस) देनी पड़ती है, जिसके कारण मेरी बनाई गयी बिडियों की संख्या 1000 में से 900 ही रह जाती है, जिसका प्रभाव वेतन पर दिखता है।”
रजिया के ससुर कहना है कि “हमारा शोषण किया जाता है। मैं प्रति माह लगभग 4500 रुपये ही कमा पाता हूँ। हमारे घर में नौ सदस्य हैं, मेरी बहू और बेटियां भी बीड़ी बांधती हैं, लेकिन हम सब का वेतन मिला कर हमारी आय 10,000 रुपये से ज्यादा नहीं हो पाती है।”
“इतने रुपयों में हम लोगों से महीने भर का राशन और घर की मूलभूत सुविधाओं का भी इंजताम नहीं हो पाता है।” लंबे समय तक बीड़ी की धूल में काम करने के कारण रजिया अस्थमा से पीड़ित हैं जिसका इलाज का खर्चा भी इसमें से किया जाता है।
केंद्र और राज्य सरकार की मिलीभगत
अखिल भारतीय बीड़ी मजदूर संघ (AIBWF) के नेता और मुर्शिदाबाद इकाई के अध्यक्ष एमडी आजाद ने कहा कि बीड़ी निर्माताओं द्वारा मज़दूरों का शोषण किया जा रहा है। इसमें केंद्र और राज्य सरकार दोनों शामिल हैं। इससे राज्य में बीड़ी मजदूरों की परेशानी और बढ़ गई है।
साथ ही उन्होंने बताया की बीड़ी कंपनी के मालिक तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता हैं। यही कारण है कि राज्य सरकार भी उन्हीं की बात पर ध्यान देती है और बीड़ी बनाने वाले मज़दूरों की सुनने वाला कोई नहीं है।
आजाद ने कहा कि सरकार के पास इस क्षेत्र में वेतन समझौतों पर हस्ताक्षर करने का एक लंबा इतिहास है, क्योंकि सरकारी नियमों के अनुसार न्यूनतम वेतन 276 रुपये होना चाहिए।
मुर्शिदाबाद जिले में, न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये तय की गई है। हालांकि, पट्टी जैसी रिश्वत और बीड़ी मज़दूरों छुट्टी ने देने के कारण काम की रफ़्तार में कमी आती है जिसके कारण मज़दूरों की वास्तविक मजदूरी 130 रुपये से 140 रुपये के बीच में ही अटक जाती है।
आजाद ने कहा, “हम इनके खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है।”
अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं
देश में बीड़ी मजदूरों के इलाज के लिए दस बड़े अस्पताल हैं, जिनमें से सबसे बड़ा मुर्शिदाबाद जिले के तारापुर में स्थित है। हालांकि, अस्पताल में इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं।
अस्पतालों में ईसीजी और यूएसजी मशीनें तो है लेकिन उनको चलाने वाला कोई नहीं है जिसके कारण से सभी मशीनों को तालाबंद कर दिया गया है। मुर्शिदाबाद के धूलियां प्रखंड के तारापुर में 70 बीघा जमीन पर स्थित अस्पताल में डॉक्टर और नर्स की संख्या भी बहुत कम है।
देश के 292 कल्याणकारी औषधालयों में से कई मुर्शिदाबाद में स्थित हैं, लेकिन दवाओं के स्टॉक की कमी है।
AIBWF का 10वां सम्मेलन
इन परिस्थितियों में, AIBWF की पश्चिम बंगाल इकाई ने मालदा जिले के वैष्णबनगर में अपना 10वां सम्मेलन आयोजित किया।
इसने राज्य के सभी जिलों में न्यूनतम वेतन के रूप में 178 रुपये और बीड़ी मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क को पुनर्जीवित करने की मांगों के साथ 5 जुलाई को कोलकाता में ‘राजभवन अभियान’ के प्रस्ताव को अपनाया।
AIBWF राज्य सचिव देबाशीष रॉय के अलावा, जो फेडरेशन के महासचिव भी हैं, AIBWF के उपाध्यक्ष किंकर पोशक और CITU पश्चिम बंगाल समिति के महासचिव अनादी साहू ने सम्मेलन के शुरुआत में शहीदों के स्तंभ पर माला पहनाई।
सम्मेलन को साहू ने संबोधित किया, जिन्होंने अपने भाषण में देश भर में चार लेबर कोड को लागू करने की कोशिश के लिए केंद्र सरकार पर कटाक्ष किया।
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(Newsclickसे साभार)