WHO ने दिया अवॉर्ड, आशा वर्कर्स ने कहा सिर्फ सम्मान नहीं अधिकार चाहिए
By शशिकला सिंह
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत की लाखों महिला आशा (ASHA Workers) कार्यकर्ताओं को कोरोना महामारी के दौरान पूरे समर्पण से काम करने के लिए ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया।
कोरोना महामारी में फ्रंटलाइन वर्कर्स रहीं आशा कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर कोरोना संक्रमित का पता लगाया और प्राथमिक उपचार देने का काम किया था।
लेकिन आशा वर्कर्स का कहना है कि उन्हें केवल अवॉर्ड नहीं बल्कि मजदूर का दर्जा चाहिए।
दरअसल, आशा वर्कर्स के केवल नाम में वर्कर्स है और इन्हें सरकार मजदूर का दर्जा ना देकर स्वयंसेवक मानती हैं।
इस कारण से आशा वर्कर्स श्रम कानून के दायरे में नहीं आते हैं और सरकार उन्हें कोई संरक्षण या न्यूनतम वेतन देने को बाध्य नहीं है।
लेकिन आशा कार्यकर्ताओं को किन किन परेशनियों और परस्थितियों का सामना करना पड़ता यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं।
जानिए कितनी खुश है आशा वर्कर्स !
वर्कर्स यूनिटी से बातचीत के दौरान छत्तीसग़ढ में आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाली मुक्ता ने बताया कि, “कोरोना काल के दौरान हम सभी ने बहुत मेहनत की मगर सरकार की तरफ से हमें महीने में मात्र 1000 रुपए मिलते थे और वो भी कभी समय पर नहीं मिले।”
“जिस समय सभी लोग अपने-अपने घरों में थे उस वक्त हम लोग अपनी जान की परवाह किये बिना काम कर रहे थे और आज भी करते हैं। WHO ने जो हमको सम्मान दिया है हम उससे खुश हैं, लेकिन हमारी सरकार ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया।”
औसतन एक आशा वर्कर की मासिक आय 2000 रुपये प्रति माह से लेकर 5000 रुपये प्रति माह तक होती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस राज्य में काम कर रही हैं।
उनकी अधिकांश आय प्रोत्साहन राशि के रूप में है। उन्हें पूर्ण टीकाकरण के लिए 75 रुपये, बच्चे की मृत्यु की सूचना देने के लिए 40 रुपये और गर्भवती महिला के साथ अस्पताल जाने के लिए 600 रुपये मिलते हैं।
छत्तीसग़ढ के जन स्वस्थ अभियान से जुड़ी संगीता का कहना है कि, “कोरोना के समय में आशा वर्कर्स ने अपनी पूरी जान लगा कर काम किया। जब इस काम के शुरुआत में मितानिनों (आशा वर्कर ) को स्वयंसेवकों के रूप में काम करने को कहा गया था जिसका मतलब था कि आशा वर्कर्स अपने खाली समय में गावं या कस्बों में जागरूकता फैलाने का काम करेंगी।”
“लेकिन धीरे-धीरे स्वयंसेवक आशाओं से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लिया जाने लगा। जहां एक तरफ WHO हमें सम्मनित कर रही है वहीं कोरोना काल के समय सरकार की तरफ से आशा वर्कर्स को मास्क, पीपीई किट और सेनिटाइज़र जैसी मूलभूत चीज़ भी नहीं दी गई थी।”
सालों से पर्मानेंट किए जाने की मांग
“साथ ही कोरोना काल के समय मितानिनों ने बिना किसी मांग के अपनी पूरी बहुत मेहनत से काम को पूरा किया फिर भी हमारी सरकार हमारे विषय में बिलकुल नहीं सोच रही है। पिछले कई सालों से आशा वर्कर्स की मांगें है कि हम को परमानेंट किया जाये।”
उनका कहना है कि जितना काम उनसे करवाया जाता है उस हिसाब से उन्हें बहुत कम वेतन मिलता है, मगर इस विषय में मोदी सरकार कुछ भी नहीं बोलना चाहती है।
“हमें सरकार से कहना है कि आशा वर्कर्स को सम्मान की नहीं, रोज़गार की जरुरत है। सभी आशा वर्कर्स को समय पर उनका वेतन दिया जाये जैसा की कोरोना काल के समय बिलकुल नहीं हुआ।”
उन्होंने कहा, “सब से बड़ी समस्या है कि विभाग के सभी लोग हर काम हमारे सिर मढ़ देते हैं। कुछ भी चाहिए हो तो सीधा आशा को फोन कर देते हैं और अगर आशा वर्कर वो काम नहीं करती है तो उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है।”
वे बताती हैं, “कई आशाएं हैं जिन्होंने वेतन बढ़ने के इंतजार में 15-15 साल तक काम किया। आज बढ़ेगा, कल बढ़ेगा सुनते सुनते कई आशा इस दुनिया से चली गईं।”
सिर्फ काम लेने के लिए कर्मचारी
हरियाणा में आशा वर्कर के रूप में काम करने वाली सुरेखा का कहना है कि, “कोरोना काल में हमें हमारी क्षमता से ज्यादा काम करवाया गया जो हमारे लिए करना बहुत ही मुश्किल था।”
वे कहती हैं, “इसके बावजूद सरकार हमलोगों को न्यूनतम वेतन भी नहीं दे रही है और ना ही हमें एक कर्मचारी के रूप में नियुक्त कर रही है।”
उन्होंने बताया कि जब काम करवाने की बारी आती है, तो आशाओं से एक कर्मचारी के तौर पर काम करवाया जाता है और यदि हम काम पूरा करने से मना करते हैं तो हमारे इंसेंटिव में कटौती की जाती है।
देश में आशाओं ने बहुत बार अपनी मांगों को पूरा करने के लिए प्रदर्शन किये हैं, लेकिन सरकार हमारी किसे भी मांग को सुनने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है।
सुरेखा ने कहा की हमें इस बात का गर्व है कि कोरोना काल में हमने देश को सुरक्षित रखा।
दिल्ली में आशा वर्कर शोभा कोरोना काल को याद नहीं करना चाहती हैं। कहती हैं, “काम से वापस आने के बाद रोज़ डर लगता था।”
“हमने अपने बच्चों को कितनी परिस्थितियों में सुरक्षित किया है ये शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है। साथ ही जब रोज़ हज़ारों लोगों के मौत कोरोना के कारण हो रही थी।”
उनका कहना है, “WHO से जो सम्मान मिला है उससे हम केवल खुश हो सकते हैं मगर अपने परिवार का पालन पोषण नहीं कर सकते। सरकार को हमारा रोज़गार सुनिश्चित करना चाहिए।”
आशा कार्यकर्ता की परिभाषा
आशा कार्यकर्ता को आशा दीदी भी कहा जाता है। भारत सरकार से संबध्द मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा कार्यकर्ता होती हैं।
जिनका काम ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य से जुड़ी समास्या का प्राथमिक सुझाव देने का काम होता है।
कोरोना महामारी में आशा कार्यकर्ता ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डब्लूएचओ ने कहा कि सम्मानित लोगों में आशा कार्यकर्ता भी हैं, आशा का मतलब हिंदी में ‘उम्मीद’ है।
भारत में 10 लाख से ज्यादा महिला कार्यकर्ता को स्वास्थ्य प्रणाली से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सम्मानित किया गया।
2019 में हुई थी पुरस्कार की स्थापना
डब्ल्यूएचओ डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने कहा कि जब दुनिया आसामानता, महामारी, संघर्ष, जलवायु संकट और खाद्य सुरक्षा से जूझ रही है ऐसे समय में ये पुरस्कार उनके सम्मान के लिए है।
ये पुरस्कार उन लोगों के लिए जिनका दुनिया भर में स्वास्थ्य के प्रति उत्कृष्ट योगदान रहा है।
75वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के उच्च स्तरीय उद्घाटन कार्यक्रम में पुरस्कार समारोह को जोड़ा गया।
इन पुरस्कारों की स्थापना 2019 में की गई थी। ‘ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’ विजेताओं का सेलेक्शन डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने किया।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)