उलझी आवेदन प्रकिया के कारण महिलाएं नहीं करना चाहती मनरेगा में काम: रिपोर्ट
केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में महिला मज़दूरों को काम मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार जागरूकता की कमी और उलझी हुई आवेदन प्रक्रिया के कारण ग्रामीण मज़दूर महिलाएं मनरेगा में आवेदन ही नहीं करना चाहती है।
रिपोर्ट में पाया गया है कि मनरेगा में काम करने के लिए महिलाओं को नामांकन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। साथ ही पाया गया है कि मनरेगा में नामांकन करना एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है।
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ग्रामीण रोजगार की स्थिति: भारत के 5 राज्यों में मनरेगा पर एक नज़र शीर्षक वाली रिपोर्ट डालबर्ग एसोसिएट्स – एक सामाजिक प्रभाव सलाहकार समूह द्वारा जारी की गई थी। रिपोर्ट उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के आंकड़ों पर आधारित है।
प्रबंधन सूचना प्रणाली पोर्टल के अनुसार, 2022 में मनरेगा योजना के तहत काम पाने वाले लगभग 50 फीसदी लाभार्थी महिलाएं हैं।
डाउन टू अर्थ से मिली जानकारी के मुताबिक सर्वे में पाया गया है कि करीब 26 फीसदी महिलाएं ही मनरेगा में काम चाहती थीं। लेकिन जटिल आवेदन प्रक्रिया होने के कारण उन्होंने कुछ और काम तलाश लिए। यह संख्या चौंका देने वाली 4.2 मिलियन है।
काम की तलाश करने वाले लोगों के लिए उपलब्ध काम की कमी एक और बड़ी बाधा है। लगभग 28 फीसदी या 1.5 मिलियन महिलाओं ने काम के लिए आवेदन करने की कोशिश की है।
करना पड़ता है भेदभाव का सामना
रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं मनरेगा में काम करना चाहती थी उनमें से केवल 6 फीसदी महिलाओं के पास ही जॉब कार्ड्स थे। इसके अलावा, महिलाओं को काम की तलाश में फील्ड स्टाफ द्वारा भेदभाव का सामना करने की की घटनाये सामने आयी हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि मनरेगा ने COVID-19 महामारी के दौरान शहरों से पलायन करने वाले मज़दूरों के जीवनयापन करने में बहुत मददगार साबित हुआ। लेकिन अब बिना जॉब कार्ड वाले लगभग 29 फीसदी मज़दूरों का कहा है कि उन्हें काम की जरूरत है।
वहीं लगभग 70 फीसदी सक्रिय जॉब कार्ड धारकों का कहना है की उनको केवल एक बार ही काम मिला है और 18 फीसदी कैसे मज़दूर हैं जिनका कहना है कि काम के दोर्णा होने वाले भेदभाव के कारण उन्होंने आवेदन ही नहीं किया।
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सर्वे में पाया गया है कि 100 दिनों का रोज़गार देने वाली मनरेगा में मज़दूरों को मात्र 66 दिनों का ही रोज़गार मिलता है। जिसमें से केवल 95 फीसदी जॉब कार्ड धारकों को ही मजदूरी मिली। और उनमें से भी केवल 37 फीसदी मज़दूर ऐसे हैं जिनको मज़दूरी मिली है।
जारी रिपोर्ट के अनुसार सर्वे का हिस्सा भी सभी राज्यों में काम की कमी देखने को मिली है।
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