सीवर में मौत और 2 लाख रु. मुआवज़ाः 2 साल से इंसाफ की उम्मीद में जीवन काट रहा परिवार
By शशिकला सिंह
दिल्ली में 80 गज के मकान में अपने दो बच्चों के साथ रहने वाली नीलम की रुह आज भी कांप जाती है जब उनकी आंखों के सामने डॉक्टरों द्वारा उनके पति की जान बचाने के लिए हार्ट को पंप किया जा रहा था।
नीलम दिल्ली के तिलक विहार में पिछले 15 सालों रह रही हैं। पति की मौत के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गयी है।
उनके पति 38 वर्षीय अनिल दिल्ली जल बोर्ड में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते थे। 31 जनवरी 2020 को दिल्ली के सुल्तानपुरी इलाके में सीवर सफाई का काम चल रहा था।
अनिल वहां पर सीवर सफाई के दिल्ली जल बोर्ड दी गाड़ी लेकर पहुंचे थे। सीवर सफाई कर्मी की काफी कोशिशों के बाद भी जब सीवर का ढकन नहीं खुला, तो उन्होंने अनिल को मदद के बुलाया।
सीवर का ढक्कन खोलने के समय उनको टॉक्सिस गैस ने हिट कर दिया और वह घटना स्थल पर ही बेहोश हो गए।
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इस दौरान बाकी दो सफाई मज़दूरों ने मास्क पहना हुआ था लेकिन अनिल ने मास्क नहीं पहना था जिसकी वजह से ये हादसा हुआ।
साथ में काम कर रहे मज़दूरों ने स्थनीय लोगों की मदद से अनिल को नज़दीकी संजय गाँधी अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां पूरी रात अनिल को होश नहीं आया।
अगले दिन (1 फरवरी 2020 ) की सुबह डॉक्टरों ने उनको मृत घोषित कर दिया।
नीलम कहती हैं कि ‘डॉक्टरों का कहना था कि हार्ट अटैक आने के कारण अनिल घटना स्थल पर ही बेहोश हो गए थे, जिसके कारण उनकी जान चली गयी। डॉक्टरों का कहना था कि अनिल शायद पिछले कुछ दिनों से बीमार भी थे।’
नीलम सवाल करती हैं कि ‘यह बात ज्यादा हैरान करने वाली थी कि मेरे पति अगर पिछले कुछ दिनों से बीमार थे तो वो लगातार काम पर कैसे जा रहे थे? साथ ही उन्होंने कहा कि यदि कोई मज़दूर बीमार है तो उसके लिए रोज़ काम पर जाना संभव नहीं होता है।’
बयान बदलने से हुआ केस कमजोर
नीलम ने वर्कर्स यूनिट को बताया कि ‘उनके पति की मौत सीवर से निकलने आने वाली जहरीली गैस के कारण हुई थी। लेकिन साथ में काम करने वाले मज़दूरों ने अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में बयान को बदल दिया था। जिसके कारण आज तक मेरे पति को इंसाफ नहीं मिल पाया है।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पति एक प्राइवेट कम्पनी डिकी में ठेका मज़दूर के तौर पर ड्राइवर के पद पर काम करते थे। उन्होंने केवल 8 महीने पहले ही कंपनी में काम करना शुरू किया था। इससे पहले वह स्कूल में कैब ड्राइवर के तौर पर काम करते थे। उनके किसी जानकार ने उनको इस वैकेन्सी की जानकारी दी थी।’
नीलम दावा करती हैं कि कम्पनी ने शुरुआत में उन्हें 10 लाख रुपए मुआवज़ा और कंपनी में रोज़गार देने का वादा किया था। लेकिन केस बदल जाने के बाद उन्होंने सिर्फ 2 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर दिए।
हालांकि कंपनी में नीलम को चपरासी की नौकरी पर भर्ती किया गया है। और वो पिछले ढाई सालों से कम्पनी में काम कर रही हैं।
वो कहती हैं, “मुझे एक महीने के 14 हज़ार रुपए वेतन मिलता है। इतने कम वेतन में बच्चों को पढ़ाना और पालना बहुत मुश्किल है।”
नीलम लॉकडाउन के समय को याद करते हुए कहती हैं, “मेरे पति की मौत के बाद मैं काफी बीमार हो गयी थी। तो मेरे लिए नौकरी कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था।”
“उसके बाद कोरोना के कारण लॉक डाउन लग गया जिसके बाद बिना किसी आर्थिक मदद के बच्चों को समलना बहुत मुश्किल हो गया था। इस परेशानी के समय में मेरे ससुराल वालों ने भी बिलकुल साथ नहीं दिया और मुझे और मेरे बच्चों को परेशानी कि हालत में ही छोड़ दिया। इसके बाद 14 मई को मैने डिकी कंपनी में काम करना शुरू किया था।”
कंपनी दिल्ली जल बोर्ड को ठेके पर मज़दूर उपलब्थ करवाती है। इसमें सीवर सफाई के लिए मज़दूर और दिल्ली जलबोर्ड की सीवर सफाई में इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों के ड्राइवर उपलब्ध कराए जाते हैं।
अनिल की मौत के मामले की छानबीन सुल्तानपुरी कोतवाली द्वारा की जा रही थी। नीलम ने बताया कि ‘घटना स्थल पर मौजूद दोनों मज़दूरों ने नौकरी जाने के डर से अपने बयान बदल दिए। और डॉक्टरों की रिपोर्ट ने मेरे पति के केस को बिलकुल पलट दिया जिसकी वजह से पुलिस ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।’
नीलम ने अभी भी इंसाफ की उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्होंने बताया कि वो आज भी उन दो मज़दूरों से मिलने की कोशिश करती हैं, जिन्होंने अपना बयान बदल दिया था।
वो कहती हैं, “शायद अब उनके विचार बदल गए हों और अब मेरे पति को इंसाफ मिल जाये।”
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