निजीकरण, पुराने औज़ार, 1 लाख खाली पदों के बीच रेल कर्मचारी यात्री सुरक्षा के लिए जान जोखिम में डालने को मजबूर
भारतीय रेल ने सोमवार को अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से विडिओ डाला जिसमें एक “रेलसेवक” अपनी जान पर खेलते हुए ब्रिज पर खड़ी ट्रेन के नीचे घुसकर पटरी पर रेंगते हुए एक गैस लीकेज को ठीक कर रहे हैं।
ट्वीट में लिखा है कि यात्रियों की सेवा और सुरक्षा में समर्पित रेलवे कर्मचारी ALP गणेश घोष ने बिना अपनी जान की परवाह करते हुए बहती नदी के ऊपर ब्रिज पर अटके ट्रेन में गड़बड़ी को तुरंत ठीक करने नीचे घुसे।
सोशल मीडिया पर उनकी हजारों लोगों ने प्रशंसा की और रेलसेवकों के समर्पण को सलाम किया।
लेकिन क्या अपनी जान को जोखिम में डालने को मजबूर कर्मचारियों के इन कृत्यों का महिमामंडन काफी है?
वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें
रेलवे में सीनियर टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत और पूर्वोत्तर रेलवे कार्मिक यूनियन (PRKU) के जनरल सेक्रेटरी, राकेश मिश्रा का कहना है कि रेल मजदूरों के पेशे की तासीर ही ऐसी है कि उन्हें अपनी जान जोखिम में डाल कर काम करना पड़ता है।
ऐसे काम के लिए उन्हें कोई खास पुरस्कार या प्रमोशन देने का कोई प्रावधान नहीं है।
उनके मुताबिक रेल मजदूरों का कोई भी काम असाधारण श्रेणी में नहीं आता क्यूंकि उनके सारे ही काम बहुत मुश्किल होते हैं।
इनके दम पर ही रेल चलती है और लोग सुरक्षित यात्रा कर पाते हैं।
यात्रियों की सेवा और सुरक्षा में समर्पित।
Railsevaks are committed to serve its passengers 24×7. An exemplary display of courage by Ganesh Ghosh, ALP who crawled under the coaches of halted train on a bridge & rectified air leakage issue that helped resume the journey. pic.twitter.com/9ZdkXBYacY
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) June 20, 2022
लेकिन इन खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर कर्मचारियों का बखान करने के बजाय अगर इन्हें बेहतर और आधुनिक औज़ार दिए जाएँ तो इनकी ज़िंदगी आसान हो सकती है।
वे कहते हैं कि मसलन ट्रैक मेन्टेनर, जो पटरी के किनारे पैदल चल कर एक-एक कदम पर चेक करते हैं कि कहीं ट्रैक में कोई गड़बड़ी तो नहीं।
अत्यधिक ठंड से कभी कभी पटरियां क्रैक हो जाती हैं, जो पता लगाना इनकी जिम्मेदारी है।
दिन रात बोझा ढोने पर मजबूर
कड़ाके की सर्दी में, घने कोहरे में वे लोग 16-16 किलो वजनी अपने औजार का बस्ता उठा कर रात भर पैदल चलते हैं।
कड़ी धूप में भी उन्हें इतना भारी सामान उठा कर चलना पड़ता है।
उनके मुताबिक एक साल में गिरी से गिरी हालत में 500 बार ट्रैक फेल होते हैं, जिसे पता लगाना और मरम्मत, मजदूरों के जिम्मे होता है।
- भारत गौरव के नाम पर ट्रेन का प्राइवेट संचालन, प्रोडक्शन यूनिटों को भी निजी कब्जे में देने की तैयारी में सरकार
- आगजनी से रेल को 300 करोड़ का नुकसान, लेकिन खरबों की संपत्ति कौड़ियों के भाव पूंजीपतियों को देने पर कितना नुकसान?
लेकिन इस तरह के मजदूरों की मदद करने का सही तरीका यह होगा कि अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों का पालन हो।
उन्हें आधुनिक औजार देने से वे इतना भारी बस्ता उठाने को मजबूर नहीं होंगे और काम में भी आसानी होगी।
ऐसा करना अंततः रेलवे के लिए ही लाभदायक होगा और व्यय यानि कुल खर्च कम होगा।
एक लाख पोस्ट खाली
कर्मचारियों का बोझ कम करने के लिए रिक्त पदों पर भर्ती की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अभी भी देश भर में रेल की एक लाख पोस्ट खाली हैं, जिन में भर्ती करने पर रेल के संचालन में भी सुधार आएगा।
फिलहाल स्थिति यह है कि आठ लोगों के काम को पांच लोग करने को बाध्य हैं।
साथ ही साथ रेल निजीकरण का आखिरकार कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, आदि पर असर दिखने लगा है।
ऐसे हालात में बिना सुविधाएं दिए कर्मचारियों का मनोबल बनाए रखने के लिए उनके द्वारा जान पर खेलकर किये काम का महिमामंडन जरूरी हो जाता है।
(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)