घर में काम करने वाली महिला कामगार से दरिंदगी, मारपीट के बाद बाल काटे
पिछले सप्ताह दिल्ली के राजौरी गार्डन इलाके में घरेलू कामगार (48) महिला को मालिक द्वारा बेरहमी से मारपीट करने और उसके बाल काटने का मामला सामने आया है।
टाइम्स नाउ की खबर के अनुसार, पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की रहने वाली रजनी राजौरी गार्डन में अभिनीत और उसकी पत्नी सोनू कौर के घर में काम करती थी। पिछले साल ही उसने यहाँ काम करना शुरू किया था।
प्लेसमेंट एजेंसी के मालिक प्रवीण कुमार में बताया कि “घर के मालिक ने फोन पर कहा कि रजनी की तबियत खराब है उसे ले जाओ। लेकिन वे रजनी को बुरी हालत में एजेंसी कार्यालय के बाहर छोड़ गए।”
प्रवीण ने बताया कि रजनी को जब उन्होंने देखा तो वो अपने पेशाब में ही लथपथ और बेसुध थी। महिला के सर पर, एक पैर और हाथों पर गहरी चोट आई है और पूरे शरीर पर खरोचों के निशान है।
रजनी को जल्द ही अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसका इलाज चल रहा है।
पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) घनश्याम बंसल ने बताया कि पीड़िता की शिकायत के आधार पर घटना के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है साथ ही घायल महिला का इलाज सफदरजंग अस्पताल में चल रहा है।
हालांकि दोषियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
डीसीपी बंसल ने बताया कि सफदरजंग अस्पताल के मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) से 17 मई को यह जानकारी मिली कि 48 वर्षीय घरेलू कामगार महिला के साथ हिंसा हुई है।
क्या कहते हैं आंकड़े
महिला बाल विकास विभाग द्वारा 2014 में संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2010 से 2012 के बीच देश में घरेलू कामगारों के प्रति अपराध के 10,503 केस दर्ज हुए थे।
इनकी दिनचर्या बहुत लंबी और थकाउ होती है साथ ही उन्हें छुट्टी भी नहींं मिलती है, काम के अत्यधिक बोझ के कारण अक्सर उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
47 लाख कामगार
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत में करीब 47 लाख लोग घरेलू कामगार हैं, जिसमे करीब 30 लाख महिलाएं हैं।
इनमें से अधिकतर घरेलू कामगार शहरी इलाकों में काम करते हैं। घरेलू कामगार मुख्य रूप से वंचित समुदायों और निम्न आय वर्ग से होते हैं, इनमें से अधिकतर ऐसे है जो रोजगार की तलाश में पलायन करके शहर आते हैं।
घरेलू कामगारों को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है, पार्ट टाइम, फुल टाइम और कार्यस्थल में रह कर काम करने वाले।
घरेलू कामगार मुख्य रूप से बागवानी, बच्चों को संभालना, खाना पकाना, घर की साफ-सफाई, कपड़े-बर्तन धोना, बीमार व वृद्धों की देखभाल आदि काम करते हैं।
घरेलू कामगार महिलाओं की बात करें तो उनमें से कई महिलाएं परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य होती हैं।
दयनीय हालत
भारत में घरेलू कामगारों के कामकाज के हालात भी बहुत खराब हैं और जरूरी कानूनों के अभाव में वे बदतर हालातों में काम करने को मजबूर हैं।
पिछले कुछ वषों के दौरान सरकार द्वारा घरेलू कामगारों को कानूनी व सामाजिक सुरक्षा देने के लिए कदम उठाए हैं।
इसके अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के कामगारों की सामाजिक सुरक्षा कानून 2008, राष्ट्रीय स्वस्थ बीमा योजना और सेक्शुअल हरासमेंट ऑफ विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन,प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) कानून 2013 में घरेलू कामगारों को भी शामिल किया गया है।
पिछले कई वर्षों से केंद्र सरकार के स्तर पर घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय नीति लाने की बात की जा रही है लेकिन कई वर्गों के विरोध के चलते इस दिशा में अभी तक सफलता नहीं मिली है।
साल 2019 में केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार द्वारा संसद में जानकारी दी गयी थी कि सरकार घरेलू कामगारों को सभी प्रकार के शोषणों से बचाने के लिए घरेलू कामगार नीति बनाने की दिशा में कार्य कर रही है।
लेकिन हालात बहुत सुधरते नजर नहीं आ रहे।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)