यूपी इफ़को प्लांट में मज़दूरों की जान इतनी सस्ती क्यों है?

यूपी इफ़को प्लांट में मज़दूरों की जान इतनी सस्ती क्यों है?

By सुशील मानव

बीते 23 मार्च को इफको प्लांट में बॉयलर फटा था और उसमें दर्जनों मज़दूर दब गए थे। जिस दिन घटना हुई पास के ही पाली गांव के करीब 40-50 लोग इफको कारखाने में काम करने गए थे। हालांकि कारखाने में उस दिन 3 हजार से ज़्यादा लोग काम पर थे। इफको कारखाने की सरहद गांव की सरहद से सटी हुई है।

गांव के कई लोगों की ज़मीन भी इफको कारखाने में गई है। जिसके एवज में लैंडलूजर्स को कुछ आर्थिक मुआवजा और एक घर से एक नौकरी दी गई थी। जबकि 1 बीघे से कम ज़मीन वालों को संविदा पर नौकरी दी गई थी।

यूपी के फूलपुर स्थित इस इफ़को प्लांट में घटनाओं का एक लंबा इतिहास है। स्थानीय लोगों का दावा है कि अगर मैनेजमेंट की लापरवाही इसी तरह बदस्तूर जारी रही तो एक दिन भोपाल गैस कांड जैसा हादसा हो सकता है।

ताज़ा हादसे में जिन तीन मज़दूरों की मौत हुई थी उसमें इस गांव के छठ्ठू का नाम भी शामिल है।

छठ्ठू के साथ काम करने वाले राज सिंह बताते हैं कि ‘लंच का समय था। हम लोगों ने साथ में ही खाना खाया खाना खाने के बाद हम लोग ठंडा पानी पीने के लिए कंपनी में लगे नलकूप की ओर चले गये थे जबकि छठ्ठू वहीं ब्वॉयलर केे नीचे ही ज़मीन पर लेट गया था। इतने में ही जोरदार आवाज़ के साथ ब्वॉयलर फटा। उसके आवाज़ किसी बम फटने जितनी तेज थी।’

ब्वॉयलर फटने की आवाज़ आस पास के 2- 3 किलोमीटर दूरी के गांवों में सुनी गई थी। राज आगे बताते हैं कि ब्वॉयलर फटने से करीब डेढ़ कुंटल का एक एंगल पॉवर प्लांट से करीब 200 मीटर की हवाई दूरी तय करके अमोनिया प्लांट में जाकर गिरा था।

उस वजनदार एंगल से अमोनिया प्लांट के दो मजदूर गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। वो भी उस समय ज़मीन पर बैठकर लंच कर रहे थे जब आफत की तरह वो एंगल उड़कर उन पर जा गिरा था।

राज सिंह कहते हैं कि चार में से सिर्फ़ वही एक ब्वॉयलर उस समय चालू था। उसके फटने से छठ्ठू ब्वॉयलर से निकले लाल  राख की चपेट में आ गये थे। उस राख से छठ्ठू के कपड़ों के चीथड़े हो गये थे। उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी।उस घटना के बाद इफको कारखाने में मजदूरों की भगदड़ मच गई।

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हादसों के पीछे लापरवाही

पूर्व प्रधान राकेश यादव के चचेरे भाई भी घटना वाले दिन इफको में संविदा मजदूर के तौर पर काम कर रहे थे। और वो भी हादसे की चपेट में आने पर गंभीर रूप से घायल हो गये थे। उनका इलाज अब भी चल रहा है। राकेश के पिता लैंडलूजर्स थे और उन्हें इफको में नौकरी भी मिली थी।

राकेश यादव कहते हैं – “इफको में लगातार हादसे हो रहे हैं। कभी ब्वॉयलर फटता है तो कभी अमोनिया गैस लीक होती है। कारखाने में मशीनों और पाइपलाइन के मेंटिनेंस का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है। इसी के चलते कारखाने में आये दिन हादसे हो रहे हैं।”01

गौरतलब है कि 22 दिसंबर 2020 को अमोनिया गैस लीक होने से कारखाने में 2 अधिकारियों की मौत हो गई थी।

राकेश यादव बताते हैं कि पहले हर साल डेढ़ से दो महीने का शटडाउन होता था, सैकडों मजदूर रखे जाते थे। लेकिन अब तो साल में सप्ताह भर का ब्रेकडाउन से काम निपटा दिया जाता है।

महाजन पटेल इलेक्ट्रिशियन फिटर के तौर पर इफको के तमाम कारखानो में संविदा पर काम कर चुके हैं। वो पहले केवल शटडाउन में इफको की फूलपुर, बरेली, कलोल कांडला और आंवला यूनिट में काम करते आये हैं। लेकिन इफको में शटडाउन की जगह ब्रेकडाउन कल्चर के आने के बाद उन्हें काम मिलना बंद हो गया।

महाजन पटेल बताते हैं कि 23 दिसंबर की रात अगर धुंध और कोहरा न होता, और ठंड की बजाय गर्मी के दिन होते तो 23 दिसंबर की रात हुई अमोनिया गैस रिसाव भोपाल गैस त्रासदी जितना भयानक हो सकता था।

महाजन भविष्य में बड़ी घटना घटित होने की आशंका जताते हुए कहते हैं, “जिस तरह की लापरवाही इफको कारखाने में मशीनों और तमाम पाइपलाइन व कलपुर्जों की मरम्मत व रख रखाव को लेकर बरती जा रही है भविष्य में भोपाल गैस त्रासदी जैसी बड़ी घटना घट सकती है।”

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मरने वाले मज़दूरों के साथ कैसा है बर्ताव

महाजन पटेल की आशंका को बल 23-24 दिसंबर को इफको की हादसे वाले साइट पर काम करने वाले एक मजदूर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अमोनिया गैस लीक में सिर्फ़ दो अधिकारियों के मरने की बात बताई गई जबकि सफाई कर्मियों ने कई दर्जन मरे हुए बंदरों और सैंकडो मरे हुए पंछियों को उनकी आंखों के सामने बटोरकर फेंका था।

गौरतलब है कि पिछले सात आठ सालों में इफको में अमोनिया गैस रिसाव की कई छोटी बड़ी घटनायें  हो चुकी हैं।

करीब 15 साल पहले पॉवर प्लांट में मजदूरों से चालू स्टीम पाइप खुलवा दिया गया था। जिससे हाईप्रेशर स्टीम निकलने से 6 मजदूर झुलस गये थे। तिसौरा गांव के भोला भारतीया और एक कर्मचारी राजेंद्र मौर्या की मौके पर ही मौत हो गई थी।

प्रदीप यादव (छठ्ठू) से पहले गांव के एक कुशल मजदूर (सुभाष भारतीया) और एक लैंडलूजर जगदीश यादव की मौत इफको कारखाने में ही हुई थी। सुभाष भारतीय की मौत होने के बाद उसकी लाश कारखाने से बाहर रखकर लावारिश घोषित कर किया गया और दावा किया गया कि कारखाने के बाहर उसकी मौत हुई है।

हालांकि उसके साथ उस शिफ्ट में काम करने वाले मजदूर साथियों ने जब दावा किया कि सुभाष उनके साथ शिफ्ट में काम खत्म करके निकलने लगा तभी उसकी मौत कारखाने के अंदर हुई है।

ठेकेदार की हत्या के बाद यूनियन खत्म

29 नवंबर 2007 को वेतन बढ़ोत्तरी की मांग लेकर आंदोलन कर रहे मजदूरों ने एक ठेकेदार एल पी मिश्रा और उसके बेटे पर हमला कर दिया था।

एल पी मिश्रा की मौके पर ही मौत हो गई जबकि बेटा बच गया। वैगन प्लांट का ठेका अब एल. पी. मिश्रा का बेटा चला रहा है। उस घटना के बाद ही मजदूर यूनियन को खत्म कर दिया गया।

उस हादसे के बाद करीब 800 अस्थायी मजदूरों को कंपनी से बाहर कर दिया गया। 150 से अधिक मजदूर वर्षों जेल में सड़ते रहे। देवापुर गांव के दो मजदूर आज भी जेल में ही हैं। कई निष्कासित मजदूर उम्र की ढलान पर मुंबई, गुजरात जाकर काम करते हैं।

लेकिन कोरोना ने वहां से भागने के लिए भी बाध्य कर दिया। जबकि एक समय में फूलपुर स्थित इफकों कंपनी में आस पास के गांव पाली, सरैंया, कनेहटी, झंझरी, गिरधरपुर, अंटवा, कनौजा, भुलईपुरा, फूलपुर, सरनामगंज, धोकरी, छिबैंया, तिसौरा, चनौकी, सिकंदरा, मनेथू, बेलवा, बीरकाजी, हैबतपुर, भरौटी, चनौहा, चकमाली आदि के हजारों मजदूर काम करते थे।

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Workers Unity Team

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