खोरी गांव पर संयुक्त राष्ट्र की टिप्पणी ”दुर्भाग्यपूर्ण” और ”पद का दुरुपयोग”: भारतीय अधिकारी
फरीदाबाद के अधिकारियों ने खोरी गांव में घरों को गिराने का काम फिर से शुरू कर दिया है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए बयान के इस कार्यवाही को रोक दिया गया था।
यूएन के बयान के एक दिन बाद भारतीय अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को उसके छह विशेष दूतों द्वारा जारी एक बयान पर जवाब दिया।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों के एक समूह द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के जवाब में, जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विशेष प्रतिवेदकों ने संयुक्त संदेश भेजने के दो दिन बाद ही एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का विकल्प चुना है और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा नहीं की है।
जवाब में आगे कहा गया, यह भी उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि विशेष प्रतिवेदकों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है। यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है और विशेष प्रतिवेदकों की स्थिति का दुरुपयोग है जो विशेष प्रतिवेदकों की संस्था की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है,।
मिशन ने कहा, “भारत को उम्मीद है कि विशेष प्रतिवेदक किसी भी लोकतांत्रिक समाज में ‘कानून के शासन’ को बनाए रखने के महत्व को समझने के लिए वास्तविक प्रयास करेंगे और इसे कम करने से बचेंगे।”
गौरतलब है कि एक बयान में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने कहा था, “हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वह बेघर लोगों को घर दिलाने और उसे हासिल करने के अपने ही लक्ष्यों और कानूनों का पालन करे।”
बयान के अनुसार, “भारत सरकार ने 2022 तक बेघर स्थिति के पूर्णतया उन्मूलन का लक्ष्य रखा है जबकि दूसरी तरफ़ वो खुद एक लाख लोगों को बेघर कर रही है जिनमें अधिकांश अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आते हैं।”
बयान में कहा गया था, “यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि निवासियों को महामारी के दौरान सुरक्षित रखा जाए। वे पहले ही कोरोना महामारी की चपेट में आ चुके हैं, और बेदखली का आदेश उन्हें अधिक ख़तरे में डाल देगा और क़रीब 20,000 बच्चों की ज़िंदगी मुश्किल में डाल देगा। इनमें से कई बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हो सकते हैं। इसके अलावा 5,000 गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएं हैं जिनके लिए ये मुसीबत का पहाड़ टूटने जैसा होगा।”
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक्सपर्ट कमेटी ने लिखा था कि ये लोग हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित खोरी गांव में रहते हैं। इसे 1992 में संरक्षित वन के रूप में नामित किया गया था, जबकि यहां कोई जंगल नहीं था।
यूएन एक्सपर्ट ने कहा था कि “हम बेहद चिंतित हैं कि भारत का सुप्रीम कोर्ट, जिसने अतीत में लोगों के आवास अधिकारों की रक्षा की है, वो अब बेदखली की अगुवाई कर रहा है जिसका परिणाम भारी संख्या में लोगों का आंतरिक विस्थापन और यहां तक कि बेघर की स्थिति होगी।
यूएन एक्सपर्ट ने कहा था, “सुप्रीम कोर्ट की भूमिका क़ानून का संरक्षण करने और उन्हें मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों की रोशनी में व्याख्यायित करना है, उन्हें नज़रअंदाज़ करना नहीं है। इस मामले में अन्य घरेलू क़ानूनी प्रावधानों के अलावा भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 की मूल भावना और उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया।”
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