असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की संख्या पता करने के लिए दो हफ़्ते का समय
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों से जल्द से जल्द असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का रजिस्ट्रेशन करने के लिए कहा है जिन्हें पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान अपने गांव जाना पड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ मजदूरों तक पहुंचाने के लिए दिया है।
न्यायाधीश अशोक भूषण और एम.आर शाह की बेंच ने कहा कि सभी राज्यों के संगठित मजदूरों का एक डेटाबेस होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट को जब अवगत कराया गया कि इस तरह के डेटाबेस बनाने का काम शुरू हो चुका है तो उसपर टिप्पणी करते हुए बेंच ने कहा कि राज्य सरकारों के सहयोग से यह काफी पहले ही हो जाना चाहिए था।
कोर्ट ने कहा है कि सरकार को असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को राष्ट्रीय पहचान पत्र देने की दिशा में भी काम करना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को इस काम का ब्यौरा देने के लिए 2 हफ्ते का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कोरोना और लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों को हो रही आर्थिक दिक्कतों पर सुनवाई करते हुए कही।
कोर्ट ने राज्यों से कहा कि वह मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करें। इस बारे में जुटाया गया आंकड़ा केंद्र सरकार को भी उपलब्ध करवाएं। इससे मजदूरों का राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जा सकेगा।
बेंच ने यह भी कहा, ”प्रवासी मजदूरों को राशन उपलब्ध करवाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। इसके लिए वह केंद्र सरकार की आत्मनिर्भर योजना या किसी भी और योजना का इस्तेमाल कर सकते हैं। कोई मजदूर भले ही उस राज्य के निवासी न हो, लेकिन उसे राशन देने से मना न किया जाए। उस पर कोई पहचान पत्र दिखाने का दबाव भी न बनाया जाए।”
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