16 लाख कर्मचारियों व शिक्षकों के भत्ते पर रोक के योगी सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती
By अजित सिंह यादव
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा 16 लाख राज्य कर्मचारियों व शिक्षकों के मंहगाई भत्ते पर रोक के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
लोकमोर्चा के प्रवक्ता , शिक्षक कर्मचारी नेता अनिल कुमार यादव ने मंहगाई भत्ते पर रोक के आदेश को रद्द करने को इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका संख्या 4445 / 2020 पर 18 जून को जस्टिस सूर्य प्रकाश केशरवानी की कोर्ट में सुनवाई होगी।
उक्त जानकारी देते हुए याचिका कर्ता अनिल कुमार यादव ने बताया कि कोरोना महामारी से उत्पन्न आपात स्थिति का हवाला देकर योगी सरकार ने 24 अप्रैल को मंहगाई भत्ते पर रोक लगा दी थी।
शासनादेश में 01 जनवरी 2020 , 01 जुलाई 2020 व 01 जनवरी 2021 से देय मंहगाई भत्ता व मंहगाई राहत के भुगतान पर रोक लगा दी गई है । वेतन में मंहगाई भत्ता व राहत से एक बड़ा हिस्सा जुड़ता है।
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साशनादेश ग़ैरक़ानूनी
सरकार के इस फैसले से 16 लाख से अधिक राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों और पेंशन भोगी रिटायर्ड कर्मचारियों को कोरोना संकट से समय भारी आर्थिक नुकसान हुआ है।
उनके हितों की रक्षा के लिए लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव के निर्देश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्णय लिया गया।
उन्होंने बताया कि याचिका में कहा गया है कि योगी सरकार का मंहगाई भत्ता रोकने का शासनादेश असंवैधानिक है।
मंहगाई भत्ता कर्मचारियों के वेतन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। चौथे वेतन आयोग की रिपोर्ट में मंहगाई भत्ते पर अलग से चैप्टर दिया गया है ।संविधान में भी वेतन के साथ भत्तों का भी जिक्र है।
इससे समझा जा सकता है कि संविधान निर्माताओं ने वेतन के साथ भत्तों को महत्वपूर्ण माना था।
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बिना आपातकाल भत्ता नहीं रोक सकती सरकार
बिना आर्थिक आपातकाल लगाए सरकार मंहगाई भत्ते को नहीं रोक सकती। कोरोना महामारी के संकट के समय में जबकि ज्यादातर कर्मचारी कोरोना वारियर की भूमिका में जीवन का रिस्क लेकर जनता के लिए काम कर रहे हैं।
ऐसे समय में कर्मचारियों व उनके परिजनों को आर्थिक सहयोग व प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
पेंशन भोगियों के पास तो आय का कोई और जरिया भी नहीं है। सभी साठ वर्ष से अधिक उम्र के हैं जो कोरोना काल के दौरान हाई रिस्क के दायरे में आते हैं। उनकी पेंशन से कटौती करना कोरोना काल में उन्हें संकट में डालना है।
शिक्षक कर्मचारी नेता ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि माननीय उच्चन्यायालय कर्मचारियों शिक्षकों को न्याय देगा और सरकार के शासनादेश को रद्द कर देगा।
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