एक ओर भुखमरी, दूसरी ओर सरकारी गोदामों में सड़ रहा 10.4 करोड़ टन अनाज
एक ओर देश में मजदूर व मेहनतकश जनता भोजन के अभाव में तड़प रही है, वैश्विक भूख सूचकांक में देश नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका से भी नीचे 103वें स्थान पर पहुंच चुका है, करोड़ों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
वहीं एक जून 2020 को फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के पास गेहूं, धान और चावल का 10 करोड़ 40 लाख टन का भंडार पड़ा था।
इसमें से बहुत सा भंडार खुले में है, धूप बरसात में खराब होकर सड़ जाता है या दुपाये व चौपाये दोनों किस्म के चूहों के द्वारा कुतर लिया जाता है।
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लेकिन पूंजीवादी सरकार इसको मजदूरों को, मुफ्त छोड़िए, सस्ते दाम पर भी बांटने के लिए राजी नहीं होती।
यही वजह है कि अन्न की भारी उपज और भंडार के बावजूद खाद्य पदार्थों के दामों में महंगाई कम होने के बजाय बढ़ती ही जाती है।
हालांकि 30 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि पिछले 3 महीने से 80 करोड़ गरीब लोगों को प्रति व्यक्ति 225/- रु की खाद्य सामग्री बांटी जा रही है।
लेकिन इसके दो दिन बाद ही अखबारों में रिपोर्ट आई कि खुद सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मात्र 13% व्यक्तियों तक ही इसका लाभ पहुँचा है।
यानी 80 करोड़ में से 10 करोड़ को ही इसका लाभ मिला, वह भी तब अगर हम सरकारी आंकड़ों को पूरी तरह भरोसेमंद मानें तब।
(मज़दूर मुद्दों पर केंद्रित ‘यथार्थ’ पत्रिका के अंक तीन, 2020 से साभार)
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