नीतियों में खामी का नतीजा थी सूरत में 15 प्रवासी मजदूरों की मौत
सूरत में मारे गए 15 प्रवासी मजदूरों की मौत के लिए सरकारी नीतियों को ज़िम्मेदार बताते हुए यूनियनें और सामाजिक संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है।
प्रवासी मजदूरों के लिए काम करने वाले एनजीओ, आजीविका ब्यूरो ने इस घटना के पीछे सरकार की नीतियों की खामी बताया है।
स्क्रॅाल के मुताबिक, एनीजओ ने मजदूरों की मौत पर दुख जताकर राज्य सरकार से मांग की है कि वह प्रवासी मजूदरों के आवास के लिए पर्याप्त इंतजाम करे।
इन मजदूरों को मंगलवार रात को उस वक्त एक ट्रक ने रौंद डाला था, जब वे सडक के किनारे सो रहे थे। मारे गए सभी 15 मजदूर राजस्थान के रहने वाले थे।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अषोक गहलोत ने मरने वाले मजदूरों के परिवारों को दो लाख और घायलों को 50,000 की राहत का एलान किया था।
राजस्थान, गुजरात और महारास्ट्र में प्रवासी मजदूरों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन आजीविका ब्यूरो के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के निर्देषों के बावजूद राज्य सरकारों ने प्रवासी मजदूरों के रहने के लिए घरों का इंतजाम नहीं किया है।
आजीविका ब्यूरो के अलावा प्रवासी सुरक्षा मंच, बंधकाम मजदूर विकासा संघ, श्रमिक सुरक्षा संघ और हमाल सुरक्षा संघ जैसे गैर सरकारी संगठनों मजदूरों की मौत के बाद ने संयुक्त बयान जारी किया।
सभी संगठनों ने मजूदरों की मौत को सरकारी बदइंतजामी का भयावह नतीजा बताया।
उन्होंने कहा कि यह कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि नीतियों में खामी की परिणाम थी।
उनके मुताबिक, यह घटना हमें याद दिलाती है कि बाहर से आकर शहरों में काम करने वाले मजदूरों के वहां ठहराने के लिए राज्य सरकारों के पास कोई नीति नहीं है।
गैर सरकारी संगठनों ने कहा कि शहरों में घरों के किराये इतने ज्यादा है कि प्रवासी मजदूरों को सडक के किनारे सोने पर मजबूर होना पडता है।
उनके मुताबिक, राज्य सरकारों की जो हाउसिंग स्कीमें हैं, उनमें इन गरीब मजदूरों के लिए कोई जगह नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में राज्यों को निर्देश दिया था कि वे गरीबों के रहने के लिए षेल्टर का इंतजाम करें।
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