सूरत में हज़ारों मज़दूरों और पुलिस के बीच पथराव, लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले
मोदी सरकार के पल पल फैसलों ने मज़दूरों के सब्र का बांध एक बार फिर तोड़ दिया। गुजरात के सूरत में सोमवार को हज़ारों मज़दूर घर भेजे जाने की मांग करते सड़क पर उतर आए।
मज़दूरों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं और आंसू गैस के गोले दागे। जवाबी कार्रवाई में मज़दूरों ने पुलिस पर पत्थरबाज़ी की।
ये घटना सूरत के कडोदरा इलाके की है।
तीसरे चरण के लॉकडाउन की घोषणा के साथ, मज़दूर सड़क पर आ गए और घर लौटने की अनुमति देने की मांग की।
एक मई को ट्रेन चलाने का आदेश देने के तीसरी दिन ही सरकार पीछे हट गई और एक नया आदेश जारी कर कहा कि बाहरी राज्यों में फंसे लोग वापस जा सकते हैं लेकिन मज़दूर नहीं।
जबकि एक मई को जो स्पेशल ट्रेन चली उसे बीजेपी नेताओं ने अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया और बीजेपी का झंडा लहराकर ट्रेन को विदा किया।
लेकिन उसके बाद कोई और ट्रेन नहीं चली।
क़रीब 40 दिन के लॉकडाउऩ में दाने दाने को तरह रहे मज़दूरों ने सूरत में बड़े पैमाने पर रैली निकाल कर प्रदर्शन किया।
उनकी मांग है कि सरकार को तुरंत उन्हें उनके गांव पहुंचाए।
इतनी भारी संख्या में मज़दूरों के प्रदर्शन से पुलिस के हाथ पांव फूल गए और उसने लाठी चार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े।
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि गुजरात की रुपानी सरकार कामगारों को सुविधा देने में असफल है और केंद्र सरकार सिर्फ विस्फ़ोट का इंतज़ार कर रही है।
हालांकि सूरत में यात्रा पास दिए जा रहे हैं लेकिन वो बहुत गिने चुने लोगों को मिल रहे हैं।
जब मज़दूर घर जाने देने का नारा लगाते हुए मार्च कर रहे थे तभी पुलिस पहुंची और उन्हें रोकने का प्रयास किया।
इसी दौरान दोनों तरफ़ से पत्थरबाज़ी शुरू हो गई।
वर्कर्स यूनिटी में लगातार ये मुद्दा उठाया जा रहा है कि अगर केंद्र सरकार जल्द ही मज़दूरों को घर पहुंचाने के लिए कोई निर्णय नहीं लेती है, हालात और बदतर होंगे।
उधर बीबीसी की एक ख़बर के अनुसार, देर रात सूरत से ओडिशा जा रहे मजदूरों से भरी बस दुर्घटनाग्रस्त होई जिसमें एक मज़दूर की मौत हो गई और एक घायल हो गया।
समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूरत से ओडिशा के प्रवासी कामगारों को ले जा रही एक बस ओडिशा के कलिंगा घाट और बेरहामपुर के बीच सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
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