कोरोना की तैयारियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 10 सवाल

कोरोना की तैयारियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 10 सवाल

By डॉ. सिद्धार्थ

आज प्रधानमंत्री ने करीब 10 मिनट का एक प्रवचन दिया है। एक काबिल प्रवचनकर्ता की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि वह जिनकों संबोधित करता है उनकों सम्मोहित कर लेता है, अपनी भावात्मक भाव-भंगिमा और भाषा के साथ उपदेश देता है और खुद को एक महान आत्मा की तरह प्रस्तुत करता है।

इस उपदेश में वह सुनने वालों को यह बताता है कि आपको क्या करना है और क्या नहीं करना है, लेकिन प्रवचनकर्ता यह नहीं बताता है कि वह क्या करेगा और कैसे करेगा।

भक्तों को भी केवल वही काम बताता है, जिससे करने में एक भी पैसा खर्च न हो, न ही कोई रिस्क हो, जैसे थाली एवं ताली बजाना, मोमबत्ती जलाना।

कोरोना संकट पर पहली बार के भाषण में प्रधानमंत्री जी ने थाली और ताली बचाने जैसा प्रहसन करने की सलाह दी और यह प्रहसन बखूबी संपन्न भी हुआ।

इस बार प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल को 9 बजे रात को 9 मिनट के लिए घर में अंधकार करके वालकनी में उजाला करने की सलाह दी।

यह प्रहसन भी पूरी तरह सफल होगा, क्योंकि ऐसा करने वालों को एक झूठा अहसास होगा कि उन्होंने कोरोना से लड़ने में भरपूर सहयोग दिया है।

जहां दुनिया भर के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री अपने राष्ट्रीय संबोधन में यह बता रहा है कि उन्होंने अब तक कोरोना से लड़ने के लिए क्या किया है, आगे क्या करने जा रहे हैं और देश के सामने कोरोना से लड़ने के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयां इस समय मौजूद हैं और कौन-कौन सी कठिनाइयां और चुनौतियां भविष्य में मुंह बाए खड़ी हैं।

यह सब बताने की जगह हमारे प्रधानमंत्री जनता को प्रवचन में उलझा रहे हैं। क्या करना है यह बता रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने अपने प्रवचन में इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया है कि सभी भारतीय एक हैं और बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि 1 अरब 30 करोड़ भारतीय एक हैं और उन्हें मिलकर एक साथ कोरोना से लड़ना चाहिए।

प्रधानमंत्री यदि 1 अरब 30 करोड़ भारतीय एक हैं, तो सारे संसाधनों पर भी उनका समान हक होना चाहिए, तो फिर आप निम्न कार्य क्यों नहीं कर देते?

सफ़ाई कर्मचारियों को नहीं दिए जा रहे सैनेटाइज़र, मास्क, दस्ताने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल

1- प्रधानमंत्री जी इस देश में 6 करोड़ शहरों में बेघर लोग हैं, यदि सभी भारतीय एक हैं तो आप क्यों नहीं अमीरों के खाली पड़े फार्म हाउस, मकान, बिकने के इंतजार में खाली पड़े लाखों फ्लैट्स, किराएदार के बिना खाली पड़े मकान, लाखों धर्मशालाएं, निजी-सरकारी होटल, स्पोर्ट काम्पलेक्स, हास्टल, विद्यालय भवन, मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों और गिरिजा घरों के विशालकाय प्रांगणों एवं भवनों, देशभर में फैले पार्टियों-संगठनों के कार्यलायों-मुख्यलयों पर सरकारी नियंत्रण की घोषणा क्यों नहीं कर देते है?

2- इन जगहों पर इन बेघर लोगों के रहने का इंतजाम क्यों नहीं करते? जरूरत पड़ने पर सांसदों-विधायकों, नौकराशाहों और राष्ट्रपति-राज्यपाल के विशालकाय भवनों (दसियों से सैकड़ों कमरे वाले) में भी बेघरों को बसाया जाना चाहिए। क्यों नहीं बसा रहे हैं?

जब बेखरों के पास घर होगा तभी तो वे लॉक डाउन का पालन ठीक से कर पाएंगे और 9 मिनट घर में अंधेरा कर वालकनी में 9 मिनट उजाला करेंगे।

3- आखिर ये 6 करोड़ लोग भी तो उसी मां भारतीय के बेटे-बेटियां हैं, जिस मां भारतीय का आप अपने प्रवचन में बार-बार चर्चा कर रहे थे। प्रधानमंत्री जी ऐसा करने में समस्या क्या है?

4- पूंजीवाद के प्रबल समर्थक अभिजीत बनर्जी जैसे अर्थशास्त्री ने भी सुझाव दिया है कि फिलहाल निजी संपत्ति के अधिकार को स्थगित कर दिया जाए और निजी संपत्ति का इस्तेमाल कोरोना से लड़ने के लिए किया जाए।

5- प्रधानमंत्री जी कहीं आपको यह डर तो नहीं सता रहा है कि यदि एक बार इन मेहनतकश गरीबों को यह हक दे दिया गया तो वे इसे अपना अधिकार समझ बैठेंगे और आपकी बात पर विश्वास करते हुए सचमुच में माने लेंगे की सारे भारतीय एक हैं, तो भारत के सारे संसाधनों पर भी सभी भारतीयों का समान अधिकार है और होना चाहिए।

प्रधानमंत्री जी राज्य सरकारें आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं और मेहनतकश भूख से जूझ रहे हैं, करीब 80 करोड़ लोग गहरे आर्थिक संकट में हैं।

6- प्रधानमंत्री जी आपने अभी तक तक सिर्फ 1 लाख 70 हजार करोड़ रूपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। मैं फिर याद दिला रहा हूं कि आप ने अपने चंद कार्पोरेट मित्रों को पिछले बजट से तुरंत पहले 1 लाख 50 हजार करोड़ रुपये दिए थे।

प्रधानमंत्री जी 80 करोड़ लोगों के लिए सिर्फ 1 लाख 70 हजार करोड़ रूपए और चंद कार्पोरेट मित्रों के लिए एक झटके में ही 1 लाख 50 हजार करोड़ रूपए, कहां का न्याय और कहां की बराबरी? इस तथ्य को देखते हुए कोई कैसे आपकी यह बात मान सकता है कि 1 अरब 30 करोड़ भारतीय एक हैं।

7- याद दिला दूं कि आपने अपने कार्पोरेट मित्रों के करीब 6 से 8 लाख करोड़ रूपए को माफ ( एनपीए) कर दिया, लेकिन इतने संकटे के बावजूद भी आप ने अभी तक किसानों के सिर्फ 70 हजार करोड़ रूपए के कर्ज की माफी घोषणा नहीं की। कैसे माना जाए कि आपकी नजर में सभी भारतीय एक हैं।

प्रधानमंत्री जी, अस्पताल, डाक्टर, नर्स और सफाई कर्मी आवश्यक उपकरणों की कमी और सुरक्षा किट्स से जूझ रहे हैं और कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। राज्य सरकारें अन्य वजहों के अलावा पैसे की कमी के चलते ये इंतजाम नहीं कर पा रही हैं।

8- आप इसे देश की करीब 50 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा जमाएं 8-10 कार्पोरेट मित्रों पर वेल्थ टैक्स ( संपत्ति कर) क्यों नहीं लगा रहे हैं और इससे पैसे का इंतजाम क्यों नहीं कर रहे हैं? दुनिया के कई पूंजीवादी देशों में भी वेल्थ टैक्स लगा हुआ है।

9- प्रधानमंत्री जी पूरा देश एक है और सभी नागरिक समान है, तो धार्मिक स्थलों की नगदी (खरबों रूपया) को सरकार अपने हाथ में क्यों नहीं ले रही है, आखिर यह भी तो देश का ही धन है और यदि भगवानों का धन है, लोगों के काम आना चाहिए। सिर्फ इसी धन से कई महीनों तक कोरोना ले लड़ा जा सकता है। आखिर दिक्कत क्या है, प्रधानमंत्री जी?

इस तरह के अन्य बहुत सारे उपाय हैं, यदि आप करना चाहें।

10- प्रधानमंत्री जी यदि 1 अरब 30 करोड़ भारतीय एक हैं और उन्हें मिलकर कोरोना और उससे पैदा हुए आर्थिक संकट से लड़ना है। तो इसके साथ इस बात की घोषणा क्यों नहीं होना चाहिए कि देश के सारे संसाधनों पर सभी भारतीयों का समान हक है।

प्रधानमंत्री यदि आप यह सब नहीं करते हैं, तो सभी देशवासी मां भारतीय के सपूत हैं और उन्हें मिलकर देश के सामने उपस्थित संकट से लड़ना है, यह बात उसी तरह का आदर्श वाक्य- प्रवचन- हो जायेगा, जैसे हिंदू धर्मग्रंथ-संस्कृति एक तरफ वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती थी और दूसरी तरफ बहुसंख्य लोगों को शूद्र-अतिशूद्र कहकर इंसान क्या जानवर के बराबर का भी अधिकार नहीं देती थी और है।

उनकी छाया से ही घृणा करते थे और हैं। जैसे यह कहना कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, और व्यवहार में महिलों को दासी बनाकर रखना, इंसानी दर्जा भी न देना।

प्रधानमंत्री प्रवचन देना बंद कीजिए। संकट का समय है, तो ठोस कदम उठाइए और कुछ जिम्मेदारी खुद और कुछ जिम्मेदारी इस देश के धन्ना सेठों (अपने कार्पोरेट मित्रों) धार्मिक स्थानों पर भी डालिए।

जब यह बीमारी सारे भारतीयों पर खतरा है, तो सारा कष्ट मेहनतकश वर्ग ही क्यों उठाए। जब मेहनतकश सबसेे बड़ी त्रासदी से जूझ रहा है, वैसे वक्त में उन्हें दिया या मोमबत्ती जलाऩे सिर्फ सलाह मत दीजिए। उनका मज़ाक मत उड़ाइए।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)

Workers Unity Team