मारुति आंदोलन के 10 सालः बिल्ला लगाने पर बेलसोनिका के डिस्पैच मज़दूरों को मारुति गेट पर रोका
मारुति आंदोलन के दस साल पूरा होने पर बिल्ला लगा कर काम करने से मारुति कंपनी ने बेलसोनिका मज़दूरों को रोक दिया।
मारुति कांड को 18 जुलाई 2012 को 10 साल पूरे हो गए हैं। मारुति सुजुकी मज़दूर संघ (MSMS) ने इस मौके पर राजीव चौक से शाम चार बजे एक रैली का आह्वान किया है। साथ ही MSMS की सभी यूनियनों को बिल्ला पहनकर काम करने का फैसला लिया था।
लेकिन आज सुबह जैसे ही बिल्ला पहने बेलसोनिका के डिस्पैच मज़दूर मारुति कंपनी के गेट पर पहुंचे उन्हें रोक दिया गया। हालांकि एक घंटे बाद उन्हें बिल्ला पहने कंपनी के अंदर जाने दिया गया।
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एक मजदूर जेल में
बेलसोनिका यूनियन के प्रधान मोहिंदर कपूर का कहना है, “अभी भी हमारा एक साथी जेल में बंद है और इस पूंजीवादी व्यवस्था का शिकार है। उसकी रिहाई के लिए आज पूरे MSMS की यूनियनों ने जो निर्णय लिया था हम उसे ही लागू कर रहे थे।”
MSMS में मारुति मानेसर कार प्लांट, पॉवरट्रेन, गुड़गांव मारुति प्लांट, सुजुकी बाइक, बेलसोनिका और एफ़एमआई की यूनियनें शामिल हैं।
इन सभी यूनियनों ने एक फैसला लिया था कि सभी मज़दूर अपने शर्ट पर बाईं तरफ़ ‘मारुति मज़दूरों को इंसाफ़ दो’ लिखा बिल्ला लगाकर प्लांट में कार्य करेंगे।
बेलसोनिका यूनियन महासचिव अजीत सिंह ने बताया कि उसके तहत जैसे ही बेलसोनिका के मज़दूर कार्य करने लगे और बेलसोनिका के जो मजदूर डिस्पैच लेकर जाते हैं, वो डिस्पैच लेकर मारुति कंपनी पहुंचे उन्हें गेट के अंदर आने से रोक दिया गया।
उन्होंने कहा कि लगभग एक घंटा सुबह 7:43 से 8:35 तक इन ड्राइवरों को डिस्पैच ले जाने से रोके रखा गया। जब इन ड्राइवरों ने इन सिक्योरिटी गार्ड से पता किया कि तो उनका कहना था कि ’10 वर्ष वाला बिल्ला लगाकर मारुति कंपनी के अंदर नहीं जा सकते हमारे पास ऊपर से सख्त निर्देश हैं।’
अजीत सिंह ने कहा कि इस बिल्ले में साफ तौर पर लिखा हुआ है कि “मारुति के बेगुनाह मजदूरों को न्याय दो!” न्यायपूर्ण संघर्ष के 10 साल बाद भी रिहाई व न्याय की मांग उठाना प्रबंधन व शासन – प्रशासन को रास नहीं आ रहा है।
मारुति आंदोलन
ग़ौरतलब है कि मारुति मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने जून 2011 में यूनियन बनाने की मांग पर संघर्ष शुरू किया था। यूनियन की बुनियादी मांग के पीछे सम्मानजनक काम की शर्तें हासिल करने के कई पहलु छिपे थे।
मज़दूरों के जुझारू संघर्ष ने इस आन्दोलन को हरियाणा ही नहीं पूरे देश में मज़दूर शक्ति और एकता का प्रतीक बना दिया।
जुलाई 2012 में कंपनी में मज़दूरों और कंपनी बाउंसरों के टकराव और एक मैनेजर की मौत के बाद 546 स्थायी और 1800 ठेका मज़दूरों को बिना जांच काम से निकाल दिया गया और सभी यूनियन नेताओं सहित 213 लोगों पर संगीन धाराओं में एफ़आईआर दर्ज कर दी गई।
इतनी बड़ी संख्या में नेतृत्वकारी वर्करों के जेल में जाने के बावजूद मारुति का आंदोलन चलता रहा और इसके लिए बाहर मौजूद मज़दूर नेताओं की ‘प्रोविजनल कमेटी’ बनाई गई।
साल 2012 में गिरफ्तार किए गए 147 मजदूरों को जहां 2017 में, 5 साल जेल काटने के बाद, गुड़गांव सेशन कोर्ट द्वारा बाइज्ज़त बरी किया गया वहीं उसी केस में 12 सदस्यीय यूनियन बॉडी के सभी सदस्यों और एक मज़दूर जियालाल को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
लेबर एक्टिविस्ट नयन कहते हैं कि ‘मारुती मज़दूरों पर किया गया बर्बर हमला, सत्ता द्वारा सभी मजदूरों को सबक सिखाने के लिए किया गया था, ताकि अन्याय और शोषण के खिलाफ कोई और सिर ना उठा पाए। कांग्रेस से लेकर भाजपा, पुलिस से लेकर न्याय व्यवस्था, सभी कंपनी राज के सामने नकमस्तक रहे।’
केस नहीं टिकेगा
टीयूसीआई के महासचिव और वरिष्ठ वकील संजय सिंघवी का कहना है कि ये मुकदमा ऊपरी अदालों में बहुत देर तक नहीं टिकेगा क्योंकि ये अभी तय ही नहीं हुआ कि मैनेजर की मौत कैसे हुई है और उसमें इन मज़दूरों का क्या हाथ है।’
हालांकि मारुति मज़दूरों के संघर्ष के कारण आखिरकार कंपनी को यूनियन की मान्यता देनी पड़ी। यूनियन को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश भी हुई लेकिन अंततः स्वतंत्र यूनियन के गठन और कंपनी की ओर से इसे मान्यता मिलने में कामयाबी हासिल हुई।
इस दौरान मजदूरों ने जेल, फैक्ट्री और समाज में एकताबद्ध तरीके से संघर्ष जारी रखा। उम्र कैद झेल रहे मज़दूर नेताओं और उनके परिवारों ने अपना हौसला नहीं खोया। 2021 में इनमें से दो का निधन हो गया।
पवन एक दुर्घटना में और जियालाल कैंसर के शिकार हो कर जान गवां बैठे।
बर्खास्त स्थायी मजदूरों का बड़ा हिस्सा – 360 मज़दूर – आज भी लेबर कोर्ट में संघर्ष कर रहा है। कंपनी के अंदर कार्यरत मज़दूरों और यूनियन की ओर से उम्रकैद भुगत रहे मज़दूर नेताओं के परिजनों को लगातार आर्थिक और अन्य मदद मुहैया कराई जाती रही।
आजीवन कारावास झेल रहे 13 मज़दूर नेताओं में अब सिर्फ एक की जेल से रिहाई होनी बाकी है।
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