मारुति वर्कर्स यूनियन बनाने के संघर्ष के दस साल पूरे: क्या खोया-क्या पाया
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By योगेश कुमार
सोमवार को मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन मानेसर, रजिस्ट्रेशन नंबर 1923 का यूनियन दिवस है। 4 जून 2011 को शुरू हुआ संघर्ष तीन स्ट्राइकओं से गुजरते हुए आखिर 1 मार्च 2012 को यूनियन का झंडा मारुति सुजुकी मानेसर के गेट नंबर 2 पर लगाया गया।
इस बार मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन मानेसर का दसवां यूनियन दिवस था। मारुति सुजुकी मानेसर के मजदूरों का संघर्ष एक अंतरराष्ट्रीय संघर्ष के तौर पर जाना जाता है और इस संघर्ष में देश और दुनिया के अंदर संघर्ष के नए तरीके इंवॉल्व किए और एक जुझारू संघर्ष की मिसाल पेश की।
4 जून 2011 को शुरू हुआ संघर्ष किसको पता था कि इतने जुझारू और मजदूरों को दिशा देने वाले संघर्ष में तब्दील हो जाएगा।
जो पहली स्ट्राइक कंपनी के अंदर हुई वह लगभग 13 दिन की थी जिसमें मजदूरों ने 13 दिन कंपनी को अपने कब्जे में रखा था और संघर्ष का नया तरीका ईजाद किया था इस संघर्ष के तरीके को दुनिया भर में सराहा गया और नए तरह की परिस्थितियों में कैसे संघर्ष किया जाए इसका हल निकाला गया ।
16 जून 2011 को समझौता हुआ और मजदूरों को आंशिक जीत हासिल हुई लेकिन मैनेजमेंट का इरादा मजदूरों के संघर्ष को कुचलने का था उन्होंने जो समझौता हुआ था उसको लागू नहीं किया और मजदूरों से गुड कंडक्ट बांड पर साइन करवाए जाने लगे।
और इसके बाद सस्पेंशन का दौर शुरू हुआ और मैनेजमेंट की हरकतों से परेशान आकर मजदूरों को दोबारा 29 अगस्त को हड़ताल पर जाना पड़ा और यह संघर्ष 1 महीने चला और 30 सितंबर को समझौता हुआ जिसमें 44 मजदूरों को छोड़कर अंदर जाने की बात थी लेकिन मैनेजमेंट ने इस समझौते को भी 7 अक्टूबर को तोड़ दिया और उसने कॉन्ट्रैक्ट और ट्रेनिंग मजदूरों को काम पर लेने से मना कर दिया।
इसके बाद तीसरी स्ट्राइक शुरू होती है और यह 30 अक्टूबर तक चलती हैं इस दौरान तमाम उतार-चढ़ाव आए और जो नेतृत्व था उसने एक समझौते के तहत 30 नेतृत्वकारी मजदूरों ने काम छोड़ दिया और अन्य सभी मजदूरों को काम पर वापस लेने का समझौता हुआ।
समझौता परस्त ट्रेड यूनियनों के झूठे आश्वासन से तंग आकर और सरकार व मैनेजमेंट की गुंडागर्दी से तंग आकर 30 नेतृत्वकारी साथियों ने छोड़ी थी लेकिन मैनेजमेंट और सरकार ने प्रचारित किया कि तुम्हारे नेताओं को हमने खरीद लिया।
इससे पता चलता है की संघर्ष में मजदूर वर्ग को सिर्फ कुछ नेताओं पर डिपेंड न होकर कम से कम तीन-चार लेयर्स की नेतृत्व की होनी चाहिए ताकि किसी भी परिस्थिति के अंदर आम नया नेतृत्व खड़ा कर सकें और हमें समझौता परस ट्रेड यूनियनों की बजाए अपने संघर्ष को ज्यादा महत्व देना चाहिए।
इसके बाद 30 मजदूरों को हिसाब मिला जिसमें ज्यादातर मजदूरों को 16-16 लाख मिले।
सोनू गुर्जर और शिव कुमार के बारे में बताया गया कि उन्होंने ज्यादा पैसे में समझौता किया है लेकिन हम कह सकते हैं की इन नेतृत्व कारी मजदूरों आगे के संघर्ष की हिम्मत जुटाने की बजाए खुद हिसाब ले लिया।
ट्रेड यूनियन के नेता लगातार कह रहे थे कि कुछ नेता अपनी नौकरी को त्याग कर या कुछ सेनापति अपना बलिदान देकर अपनी सेना को बचा लेते हैं बचा लेना चाहिए तो इसी तर्ज पर उन्होंने हिसाब लिया और अन्य सभी मजदूरों को काम पर वापस लेने के समझौते के तहत समझौता किया।
इतने बड़े और इतने लंबे संघर्ष के बाद हर मजदूर के दिमाग में यूनियन घर कर गई थी और अब मैनेजमेंट को भी लगने लगा की मजदूर अब यूनियन बनाने से पीछे नहीं हटेंगे चाहे आप उसके कितने भी नेताओं को खरीद लो या उनको डरा धमका कर घर भेज दो।
मैनेजमेंट ने बाहर के संगठनों से बात नहीं करने की शर्त पर मजदूरों की यूनियन रजिस्टर कराने की बात कही और जो दूसरा नेतृत्व उभर कर आया और मैनेजमेंट के सहयोग से फरवरी के अंदर यूनियन का रजिस्ट्रेशन हुआ।
इस मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन 1923 जॉइन का रजिस्ट्रेशन नंबर है और इसका झंडा मारुति सुजुकी गेट नंबर दो जो कंपनी का मुख्य गेट है पर लगाया गया और बड़ी धूमधाम से मजदूरों ने अपना यूनियन डे मनाया।
मजदूरों के दिमाग में एक बात घर करती जा रही थी कि सन् 2000 में मारुति से ठेकेदारी प्रथा की शुरुआत हुई थी और अब मारुति के अंदर सबसे पहले हम ठेकेदारी प्रथा खत्म करवाएंगे।
यूनियन और मजदूर यह बात कह रहे थे लेकिन वह इसकी गंभीरता को नहीं समझ पा रहे थे।
उन्होंने जो डिमांड नोटिस डाला उसमें इस बात को मुख्य मांग रखा गया और लगातार प्रयास करने के बाद भी समझौते नहीं हुए और मजदूरों के अंदर लगातार गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
इसी का फायदा उठाते हुए 18 जुलाई 2012 को मैनेजमेंट ने साजिश के तहत एक दंगा कंपनी के अंदर करवाया उसकी शुरुआत जियालाल नाम के एक वर्कर्स और एक सुपरवाइजर के बीच झड़प से हुई। इस दंगे में कुछ बाहरी तत्वों का भी रोल था जो मारुति के मजदूरों के ड्रेस में थे और इस आपसी झगड़े- तोड़फोड़ में एचआर हेड अश्वनी दे की दम घुटने से मौत हो गई और इसका सारा इल्जाम मजदूरों के मत्थे मढ़ दिया गया।
मजदूर और मजदूरों के संघर्ष को बदनाम किया गया उनको हत्यारा बताया गया लेकिन किसी ने पलट कर यह नहीं कहा की आखिर इसका कारण क्या है क्यों एक छोटी सी से वैधानिक मांग के कारण जापानी मैनेजमेंट और मालिका इस हद तक पहुंच जाते हैं लेकिन वह एक संवैधानिक अधिकार देने के लिए सहमत नहीं होते हैं।
सबने देखा की तीन बड़ी स्ट्राइक 1 साल के अंदर मारुति सुजुकी,मानेसर में हुई और उसके बाद यूनियन अस्तित्व में आई। और सबने यह भी देखा कि यूनियन को खत्म करने के लिए कैसे मैनेजमेंट ने एक षड्यंत्र के तहत 18 जुलाई 2012 का दंगा करवाया।
इसके बाद एक डेढ़ महीने कंपनी बंद रही और उसके बाद जो तमाम ट्रेनिंग और ठेका वर्कर थे उनको कंपनी से निकाल दिया गया।
546 स्थाई मजदूरों को सस्पेंशन और टर्मिनेशन किया गया और अन्य मजदूरों के साथ जो लगभग 400 के करीब थे उनको लेकर गुड़गांव प्लांट स्टार्ट की गई और जब 2 साल बीते कंपनी के अंदर चुनाव करवाने के लिए एक एप्लीकेशन श्रम विभाग में लगाई गई।
उसके बाद 2014 में यूनियन दोबारा से अस्तित्व में आई और अब लगातार कंपनी के अंदर यूनियन बनी हुई है।
मजदूरों की तनख्वाह काफी बढ़ गई है पर स्थाई और ठेका मजदूरों की संख्या कंपनी ने बहुत कम कर दी है और अब एक नई तरह का मजदूर जिसको टीडब्ल्यू वर्कर बोला जाता है इजाद किया।
उनसे सात-सात महीने काम करवाया जाता है और पहले 7 महीने करा कर उनको घर भेज दिया जाता है उसके बाद फिर साल या 6 महीने के बाद TW 2 के तौर पर बुलाया जाता है।
आज मारुति सुजुकी मानेसर में अप्रेंटिस नीम और आईटीआई के तहत बहुत ज्यादा मात्रा में अस्थाई वर्कर भर्ती किए जाते हैं और उनसे एक सामान्य मजदूर की तरह काम कराया जाता है कंपनी के अंदर अभी ना के बराबर मजदूर स्थाई रखे जाते हैं।
अब अस्थाई और स्थाई मजदूरों के बीच सैलरी और जीवन परिस्थितियों में जमीन आसमान का फर्क हो गया है।
इन परिस्थितियों में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन जब अपना 10वां यूनियन दिवस मना रहा है ,देश के अंदर चार लेबर कोड लागू होने जा रहे हैं।
इलाके की सबसे मजबूत और बड़ी ट्रेड यूनियन पर हमला बोला जा चुका है। होंडा में 400 के करीब मजदूर वीआरएस ले चुके हैं और 2019 के अंदर होंडा के तमाम अस्थाई मजदूर निकाले जा चुके हैं इन परिस्थितियों में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन को अपने इतिहास से प्रेरणा लेते हुए संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा।
यही आज के यूनियन डे की सार्थकता होगी और यही समय की जरूरत भी है।
आज मारुति के 13 साथी आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं जिनमें से एक साथी पवन दहिया की करंट लगने से मौत हो चुकी है।
आज मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के सामने अपने 12 साथियों को जेल से बाहर निकालने व 4 लेबर कोड के खिलाफ संघर्ष की चुनौती है,हम उम्मीद करते हैं की मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के मजदूर इन चुनौतियों को समझते हुए इनके खिलाफ संघर्ष करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
(लेखक श्रमिक कार्यकर्ता हैं और इसमें व्यक्त नज़रिया उनका निजी है।)
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