थाईलैंड सरकार कपड़ा मजदूरों को कोरोना नियमों के बहाने कर रही गिरफ्तार, जानें क्या है मामला
मई में थाईलैंड सरकार ने हांगकांग की एक कपड़े की कंपनी को थाई फैक्ट्री के 1,250 कर्मचारियों को लगभग 66 करोड़ रुपए अवैतनिक मजदूरी का भुगतान करने का आदेश दिया था।
लेकिन टेक्सटाइल, गारमेंट एंड लेदर वर्कर्स फेडरेशन ऑफ थाईलैंड की अध्यक्ष, जामपाथोंग को खुशी से ज्यादा डर इस बात का था कि इस जीत से बाद अब मजदूर आंदोलन को काबू करने की कोशिश की जाएगी।
और हुआ भी वही। जामपाथोंग और चार छात्र मजदूर कार्यकर्ताओं पर बैंकॉक में गवर्नमेंट हाउस के बाहर किये गए पिछले साल के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान कोरोना महामारी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के आरोप में सरकार उनके खिलाफ ताजा मुकदमा चला रही है।
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हांगकांग की कंपनी Clover Group International द्वारा मार्च 2021 में दिवालिया घोषित होने के एक दिन के नोटिस के बाद बंद होने वाले Brilliant Alliance Thai Global से निकाले गए मजदूरों को लगभग 66 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
Victoria’s Secret, जो अपने प्रोडक्शन इसी फैक्ट्री को आउट्सोर्स करती थी, उसने मामले के सेटलमेंट के लिए हांगकांग स्थित कंपनी को कर्ज देने पर सहमति दिखाई।
Clover Group International ने शुरू में दरख्वास्त की थी कि भुगतान टुकड़ों में 10 साल की अवधि में किया जाए। इस रणनीति को मजदूरों ने सिरे से खारिज कर दिया था।
थाईलैंड, जो 2014 के सैन्य तख्तापलट के बाद से पूर्व सेना अधिकारी प्रयुथ चान-ओचा के शासन में है, हाल के सालों में मजदूर कार्यकर्ताओं और लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसने के साथ, असंतोष पर कड़ी लगाम लगाता रहा है।
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जामपाथोंग ने Al Jazeera को बताया, “ऐसा लगता है कि यह सरकार की तरफ से भेदभाव है, यह एक बहाने की तरह है जो उन्होंने हम पर इस्तेमाल करने की कोशिश की है,” उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वालों ने मास्क पहनने जैसी सावधानी बरती थी।
“मुझे लगता है कि हमने लंबे समय तक सब्र रखा। कई महीने ऐसे थे कि हम बाहर नहीं आए। यह इस बात का प्रमाण है कि सरकार समस्या का समाधान करने में विफल रही है। हमारे पास और कोई चारा नहीं था, इसलिए हमें सरकार से मिलने के लिए कार्यकर्ताओं को लाना पड़ा।”
टिप्पणी के लिए न्याय मंत्रालय से संपर्क करने के Al Jazeera के प्रयास असफल रहे।
दुनिया में चारों तरफ यही कहानी चली आ रही है। मजदूरों को नाम मात्र के हक मिले हुए हैं और जो संघर्ष में छोटी जीत भी मिलती है उसे खैरात या दान समझ कर पूंजीपति सरकारें दोगुनी शक्ति से दमन करते हैं। लेकिन मजदूरों को उनका हक नहीं मिल पाता है।
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