मना करने पर भी ज़बरदस्ती मशीन पर काम कराया, महिला मज़दूर की दो अंगुलियां कटीं
उत्तराखंड के रुद्रपुर सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक कंपनी में एक महिला मज़दूर की अंगुली कट गई लेकिन कंपनी प्रबंधन ने ठीक से इलाज़ तक नहीं कराया और ना ही मुआवज़ा दिया।
स्थानीय अख़बरों में छपी ख़बर के अनुसार, 27 मई को गांगापुर रोड स्थित फैक्ट्री में प्रेस मशीन से महिला मज़दूर की दो अंगुलियां कट गईं।
फैक्ट्री प्रबंधन ने महिला मज़दूर पवित्रा को मुआवजे का भरोसा दिलाकर पास के ही छोलाछाप डॉक्टर के पास इलाज़ करवा दिया।
पवित्रा ने बताया कि उन्हें अभी तक कोई मुआवजा फैक्ट्री प्रबंधन ने नहीं दिया है। इस पूरी घटना के बारे में पवित्रा ने डीएम को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई है।
एक स्थानीय अख़बार ने पवित्रा ने पवित्रा के हवाले से कहा है कि 27 मई की दोपहर को जब वो कंपनी में मशीन पर काम कर रही थीं, तो मशीन ठीक से चल नहीं रही थी। इस बात की जानकारी पवित्रा ने अपने सुपरवाइजर को भी दी।
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सुपरवाइज़र की लापरवाही से हादसा
लेकिन सुपरवाइजर ने उनकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “मशीन ठीक है तुम काम पर ध्यान दो।”
उसके कुछ ही समय बाद पवित्रा का दायां हाथ प्रेस मशीन के नीचे दब गया जिसके कारण उनकी दो अंगुलियां कट गईं।
अंगुली कट जाने के बाद पवित्रा को कामचलाऊ इलाज़ कराकर घर भेज दिया गया।
पवित्रा की बड़ी बेटी शादी के लायक हो गई है। ऐसे में उनके हाथ से रोज़गार चला गया और मुआवज़ा भी नहीं मिला।
अख़बार को उन्होंने बताया, “बेटी की शादी के लिए पैसा जमा करना है। काम तो करना पड़ेगा पर कहीं रोज़गार नहीं मिल रहा है। इसीलिए मैंने प्रशासन से उचित मुआवज़ा और स्थाई नौकरी दिलाने की गुहार लगाई है। पर कोई मदद मिलती हुई नज़र नहीं आ रही।”
कुछ इसी तरह का हाल दिल्ली के वजीरपुर इंडस्ट्रियल इलाके में स्टील फैक्ट्रियों का है। आए दिन मज़दूर इस फैक्ट्री में घायल होते रहते हैं, किसी की उंगली कट जाती है तो किसी के सर पर चोट लग जाती है।
इन जख्मों की भरपाई कंपनी मालिक कुछ पैसों से कर देते हैं और मज़दूरों को चोट लगने का सिलसिला चलता रहता है।
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हर दिन मरते हैं तीन मज़दूर
श्रम और रोजगार मंत्रालाय के आँकड़ो के अनुसार, पूरे भारत में 2014-2016 के बीच 3,562 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में हुई हैं और 51 हजार से अधिक मज़दूर घायल हुए हैं।
यानी भारत में हर दिन तीन मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है और 47 लोग घायल होते हैं।
ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल के 2017 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 48,000 हजार मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है।
हमारे देश में न जाने कितनी ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जहां पर मज़दूरों के साथ इंसानों जैसा सलूक नहीं किया जाता है।
इसके बावजूद जितनी सरकारें आती हैं मालिकों के पक्ष में श्रम क़ानूनों को एक एक कर ख़त्म करने का काम करती हैं।
मौजूदा बीजेपी सरकार ने तो पिछली सारी सरकारों को पीछे छोड़ते हुए 40 श्रम क़ानून ख़त्म कर दिए जबकि इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को मज़दूरों का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करते हुए खुद को नंबर वन मज़दूर होने का दम भरते हैं।
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