ये है सबसे पॉज़िटिव ख़बर, तनहाई में रखे गए मज़दूरों ने स्कूल की काया पलट कर दी
मजदूर समाज से जितना लेता है उससे कहीं ज़्यादा लौटाता है। मेहनतकश तबका बेहद आत्मसम्मानी, कृतज्ञ और ईमानदार होता है, जिसे मध्यवर्ग और उच्च मध्यवर्ग समझ नहीं सकता।
ये तस्वीर राजस्थान के सीकर में पलसाना की है जहां एक गांव के हाईस्कूल को मज़दूरों के लिए ट्रांजि़ट कैंप बनाया गया था, जिसमें 54 मज़दूर ठहरे हुए हैं।
यहां विभिन्न जगहों से आए प्रवासी मजदूरों को क्वॉरेंटाइन में रखा गया था और उन्होंने स्कूल की ही तस्वीर बदल दी।
दैनिक भास्कर की एक ख़बर के अनुसार, ट्रांज़िट कैंप का निरिक्षण करने आए ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव जगत सिंह पंवार ने इसे रोल मॉडल बताया।
क्वारंटाइन में रखे मजदूरों ने देखा कि लम्बे समय से स्कूल की पुताई और साफ सफाई नहीं हुई है। तब उन मजदूरों ने सरपंच के सामने पेंटिंग और साफ सफाई करने का प्रस्ताव रखा।
तुरंत ही पेंट, चूना, ब्रश इत्यादि का इंतजाम हुआ और उन मजदूरों ने अपने क्वॉरेंटाइन के दौरान पूरे स्कूल की सूरत बदल दी और बदले में फूटी कौड़ी तक नहीं ली।
सरपंच ने जवाब कुछ देना चाहा तो मजदूरों ने कहा एकस्वर में कहा – “हम यहां पर रह रहे हैं, हमारा फर्ज बनता है कि हम कुछ न कुछ इस स्कूल को दें।”
बता दें कि पलसाना कस्बे के शहीद सीताराम कुमावत और सेठ केएल ताम्बी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के 54 मजदूर ठहरे हुए हैं।
ये सभी लोग पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और इनकी पृथकवास अवधि भी पूरी हो गयी है।
केन्द्र में ठहरे मजदूरों ने बताया कि इस दौरान सरपंच और गांव के दानदाताओं ने उनके रहने के लिए बहुत ही बढ़िया व्यवस्था की थी।
वे इस व्यवस्था से इतना खुश थे कि बदले में गांव के लिए कुछ करना चाहते थे और इसी सोच में उन्होंने स्कूल के रंग रोगन का काम शुरू कर दिया।
हालांकि क्वारंटाइन अवधि ख़त्म होने के बाद भी उन्हें वापस घर जाने की कोई सूरत नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि सरकार इनके जाने का इंतज़ाम करने की बजाय लॉकडाउ को और कड़ा बना रही है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)