औरंगाबाद में रेलवे पटरी पर जा रहे मज़दूरों को ट्रेन ने रौंदा, 17 की मौके पर ही मौत
रेलवे पटरी पकड़ कर चलत चलते थककर सो गए मज़दूरों पर रेल गुजरने से 17 प्रवासी मज़दूरों की मौत हो गई।
ये घटना शुक्रवार की सुबह 5.15 बजे महाराष्ट्र में औरंगाबाद के कर्माड स्टेशन के पास घटी, जहां से मालगाड़ी गुजर रही थी।
बीबीसी के अनुसार, दक्षिण-मध्य रेलवे के चीफ़ पीआरओ ने 17 मज़दूरों के मारे जाने की पुष्टि की है और कहा कि पाँच अन्य मज़दूरों को औरंगाबाद के सिविल अस्पताल में भर्ती किया गया है।
बताया जाता है कि सभी मज़दूर औरंगाबाद के पास जालना की एक स्टील फैक्ट्री में काम करते थे। वो रात से ही रेलवे पटरी पर चल रहे थे।
हादसे की जगह चप्पलें इधर उधर दिखाई दे रही हैं। मज़दूर रास्ते के लिए सूखी रोटी और प्याज़ की पोटली लिए हुए थे जो रेलवे पटरी पर छिटकी दिख रही है।
ये लोग भुसावल की तरफ़ जा रहे थे, जहां से उन्हें ट्रेन मिलने की उम्मीद थी।
नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इस हादसे पर दुख जताया और कहा कि उनकी नज़र पूरे मामले पर बनी हुई है।
उधर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि मज़दूरों के साथ जो कुछ हो रहा है उस पर शर्म आनी चाहिए।
नरेंद्र मोदी के अचानक लॉकडाउन घोषित करने और उसे लगातार बढ़ाने की वजह से लाखों मज़दूर जहां तहां फंस गए हैं।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने ट्रेन की सुविधा भी बंद कर दी है जिसकी वजह से मज़दूर पैदल चलकर ही घर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
ये मज़दूर रेलवे पटरी के सहारे घर की ओर इसलिए निकले थे क्योंकि सड़क के रास्ते पुलिस उन्हें निकलने नहीं दे रही है।
ऐसे में अबतक दर्जनों मज़दूर पैदल और साइकिल चलाते चलाते या दुर्घटना के कारण रास्ते में ही जान गंवा बैठे।
गुरुवार को ही मध्यप्रदेश के उज्जैन में तीन मज़दूरों की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। एक तेज़ रफ़्तार ट्रक ने कुचल दिया।
इन मज़दूरों को सरकारी बस से राजस्थान के जैसलमेर से लाया गया था और वे अपनी गाड़ी से मोहनपुरा गांव जा रहे थे।
लॉकडाउऩ की सबसे भयावह ख़बर
वरिष्ठ पत्रकार सचिन श्रीवास्तव ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा है कि यह लॉक डाउन की सबसे भयावह खबरों में से एक है।
महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश आ रहे 19 मजदूरों में से 17 ट्रेन की पटरी पर हादसे का शिकार हो गए हैं। 2 गंभीर घायल हैं। वे मजदूर सैनिटाइज]र लिए हुए थे।
लेकिन कोरोना से नहीं सरकारों की संवेदनहीनता का शिकार हुए हैं। रेल ट्रैक पर बिखरी पड़ी रोटियां हकीकत बयान कर रही हैं।
मजदूरों को सरकार मार रही है।
45 दिन के लॉक डाउन के बाद भी मजदूरों की वापसी की तय योजना नहीं है तो सरकारों का असफल होना क्या कहलाता है?
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