बस्तर में आदिवासी इलाकों पर ड्रोन से हवाई हमले, सरकार का इनकार, पत्रकारों ने दिखाए सबूत
By संदीप राउज़ी
छत्तीसगढ़ बस्तर संभाग में आदिवासी इलाकों में सीआरपीएफ़ ड्रोन (Drone Attack) से हवाई बमबारी कर रही है।
ये गंभीर आरोप लगाया है सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरजू टेकाम ने और इसकी पुष्टि की है रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला ने।
हालांकि सरकार ने इन खबरों का पुरजोर खंडन किया है लेकिन स्थानीय लोगों और पत्रकारों ने हमलों से हुए नुकसान का सबूत सामने रखा है। जो तस्वीरें आई हैं उसमें बम गिरने की जगह गड्ढे और पेड़ों पर बने निशान साफ़ देखे जा सकते हैं।
बीते साल बस्तर (Bastar) में सीआरपीएफ़ गोलीकांड की बरसी पर सुकमा ज़िले में सिलंगेर (Silanger) पहुंचे सुरजू टेकाम ने कहा है कि बीते साल भर में आदिवासी इलाके पर हवाई हमले हो रहे हैं।
वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में टेकाम ने दावा किया कि पिछले साल मार्च में बीजापुर ज़िले के एक गांव पर ड्रोन से 12 रॉकेट दागे गए।
स्थानीय मीडिया में छपी ख़बरों के अलावा इस बात की तस्दीक रायपुर के जाने माने प्रतिष्ठित पत्रकार कमल शुक्ला ने खुद की।
उन्होंने वर्कर्स युनिटी को बताया कि रायपुर के कई पत्रकारों के साथ वे खुद हवाई हमले वाली जगह पर गए थे।
- सिलंगेर आंदोलन के एक साल: पूरे बस्तर से जुटे हजारों आदिवासी, सीआरपीएफ कैंप के सामने विशाल प्रदर्शन
- दसियों हजार आदिवासियों के प्रदर्शन की ख़बर मीडिया से गायब क्यों?
इज़राइल से खरीदे गए ड्रोन
उन्होंने कहा कि ‘ये बहुत दुखद है और एक लोकतांत्रिक सरकार में जनता के ऊपर बम गिराना बेहद गंभीर है।’
वो कहते हैं, “पिछले साल मार्च में इज़राइल से खरीदे गए मिलीटरी ड्रोन से आदिवासी इलाके में हवाई हमले किए गए थे। ये मुझे माओवादियों ने बताया।”
वो हैरानी जताते हैं कि ‘ये ड्रोन सीआरपीएफ़ कैंपों से ऑपरेट किया जाता है और इसकी भनक छत्तीसगढ़ सरकार को भी नहीं होती, ये सीधे केंद्र सरकार के निर्देश पर होता है।’
कमल शुक्ला बताते हैं, “पहली बार बीते मार्च में जब हवाई बमबारी हुई तो माओवादियों के कैंप को निशाना बनाया गया। उस परिधि में तीन गांव भी थे।”
“लेकिन अभी जो ड्रोन हमले किए गए हैं उसमें पामेड़ के आस पास के गांवों को निशाना बनाया गया। अगर ऐसे ही चलता रहा तो बस्तर के आदिवासियों को जानमाल के भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।”
वो कहते है कि ‘ऐसा लगता है कि सरकार को पूरे बस्तर की आदिवासी जनता शत्रु नज़र आ रही है। सरकार को बस्तर चाहिए, बस्तर की ज़मीन चाहिए, खदाने चहिए लेकिन आदिवासी नहीं।’
ड्रोन हमले की कड़ी निंदा
सुरजू टेकाम ने आदिवासी क्षेत्र में ड्रोन से हवाई हमला करने की घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे चिंतनीय बताया है।
उन्होंने कहा कि “सरकार चाहे जितना दावा करे कि वो आदिवासियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, ये दावा बेबुनियाद ही नहीं बल्कि उल्टा भी है।”
टेकाम ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी सरकार पांचवीं आनुसूचि में आने वाले आदिवासी इलाकों का सैन्यीकरण नहीं कर सकती है।
उनके अनुसार, ‘ड्रोन हमलों को लेकर सरकार से लेकर मीडिया तक छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि मानवाधिकार संगठन भी इस बारे में कोई आवाज़ नहीं उठा रहे हैं।’
उन्होंने सरकार, मीडिया और मानवाधिकार संगठनों की मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया।
उन्होंने दावा किया कि उस समय बीजापुर ज़िले के सुदूर गांव में ड्रोन से 12 रॉकेट दागे गए जिनमें सिर्फ दो फटे और इस साल मार्च में बस्तर के सुकमा ज़िले के सुदूर इलाकों में 50 रॉकेट दागे गए।
ये पूछने पर कि सरकार किनको निशाना बनाकर रॉकेट दाग रही है, तो सुरजू टेकाम का कहना था कि गांवों में रॉकेट दाग रहे हैं और जो मरेंगे उन्हें वे नक्सली घोषित कर देंगे।
वो कहते हैं, “सिर्फ मौत होनी चाहिए, आदिवासी चाहे कैसे भी मरे उन्हें नक्सली बताने में सरकार को समय नहीं लगता।”
सिलंगेर आंदोलन की पृष्ठभूमि
सुरजू टेकाम ने अपील की है कि बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और मीडिया सरकार पर दबाव डालें कि वो आदिवासी क्षेत्र में हवाई हमले करने की गुस्ताखी न करे।
सुरजू टेकाम 17 मई को सुकमा ज़िले के सिलंगेर आंदोलन की वर्षगांठ पर होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे।
उल्लेखनीय है कि बीते साल 11-12 मई को बीजापुर और सुकमा ज़िले की सीमा पर रातों रात सीआरपीएफ़ कैंप लगाए जाने के विरोध प्रदर्शन के दौरान 17 मई को हुई गोलीबारी में चार आदिवासियों की मौत हो गई थी।
मरने वालों में एक गर्भवती महिला थी, जो घायल होने के एक हफ़्ते बाद ज़िंदगी की जंग हार गई।
तबसे सीआरपीएफ़ कैंप से एक किलोमीटर दूर निर्माणाधीन सड़क पर ही आदिवासी दिन रात पर धरने पर बैठे हुए हैं लेकिन सरकार की ओर से अभी तक कोई आश्वासन नहीं मिला है।
आदिवासी अधिकारों के लिए छत्तीसगढ़ में काम करने वाली बेला भाटिया ने इसे ऐतिहासिक आंदोलन बताया है जिसमें आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में जनआंदोलन की नई ईबारत लिखने की क्षमता है।
कमल शुक्ला भी कहते हैं कि ये आंदोलन बस्तर में सरकार और माओवादियों पर भी बहुत असरकारी प्रभाव डालेगा।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)