गोवा में आदिवासियों की बड़ी जीत, सरकार को पीछे हटने पर किया मज़बूर
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गोवा के शेल-मेलावली गांव के आदिवासियों को एक बड़ी जीत मिली है। गांव वाले पिछले कई महीनों से अपनी भूमि पर आईआईटी कैम्पस बनाए जाने का विरोध कर रहे थे।
अब आदिवासियों के विरोध के दबाव में गोवा सरकार ने घोषणा की है कि सत्तारी तालुका के शेल- मेलावली गांव में प्रस्तावित आईआईटी परिसर राज्य के किसी दूसरे हिस्से में बनाया जाएगा।
प्रस्तावित आईआईटी परियोजना का स्थानीय आदिवासी आबादी ने भारी विरोध किया था उनका कहना था कि वह आईआईटी परिसर के लिए अपनी उपजाऊ जमीन नहीं देंगे।
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने गोवा के स्वास्थ्य मंत्री और वालपोई विधायक विश्वजीत राणे की मौजूदगी में 2 दिन पहले अपने सरकारी आवास पर सत्तारी तालुका के सरपंचों और जिला पंचायत सदस्यों के साथ बैठक की थी।
इसके बाद आईआईटी परिसर को शिफ्ट किए जाने की घोषणा करते हुए सावंत ने यह बात मानी कि स्थानीय आदिवासियों के लगातार विरोध के चलते ऐसा किया जा रहा है।
उन्होंने कहा हम लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हैं यही वजह है कि हमने परियोजना को सत्तारी से शिफ्ट करने का फैसला किया है।
ज्ञात हो कि पिछले हफ्ते शेल-मेलावली गांव के पास के जंगल में गांव वालों और पुलिस के बीच झड़प में दोनों तरफ से लोग घायल हुए थे, जिसके बाद कई गांव वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे।
लेकिन अब इन मामलों को भी वापस लिये जाने की चर्चा चल रही है।
विरोध का कारण
असल में शेल-मेलावली और उसके आसपास की उपजाऊ भूमि पर लंबे समय से यहां का आदिवासी समाज काजू की खेती करता आ रहा हैं।
लेकिन जुलाई 2020 में गोवा कैबिनेट ने आईआईटी के गोवा परिसर के लिए इस वन भूमि के 10 लाख वर्ग मीटर आवंटित करने और गांव वालों को दूसरी जगह बसाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
उसके बाद से ही गांव वालों ने अपने समुदाय के कहीं और प्रवासित किए जाने के फैसले का पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया।
शेल-मेलावली गांव के आदिवासीयों का कहना हैं कि वे कई पीढियों से इस इलाके में काजू की खेती करते आ रहे हैं।
करीब 350 घरों वाले इस गांव के लोगों का गुजर-बसर इसी काजू की खेती के भरोसे चल रहा हैं ऐसे में अगर उन्हें किसी नई जगह शिफ्ट किया जाता है तो उस जगह को इतना उपजाऊ बनाने में लगभग 35 से 40 साल लगेंगे।
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