मजदूरों की बदहाली पर खडी  फैशन  इंडस्ट्री की चमचमाती दुनिया, कोविड-19 में चौपट हुई इंडस्ट्री की सबसे बुरी मार मज़दूरों पर

मजदूरों की बदहाली पर खडी  फैशन  इंडस्ट्री की चमचमाती दुनिया, कोविड-19 में चौपट हुई इंडस्ट्री की सबसे बुरी मार मज़दूरों पर

 

2019 में फैशन इंडस्ट्री ने दुनिया भर में ढाई ट्रिलियन डालर यानी करीब 182 खरब रूपये का कारोबार किया था, जिससे यह वैश्विक स्तर पर बडी इंडस्ट्रीज में शामिल हो गई थी, हालांकि

2020 में कोविड-19 ने इस इंडस्ट्री पर बहुत बुरा असर डाला।

पिछले साल जनवरी से ही चीन से फैशन इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल का निर्यात कम होने लगा था।

बाद में पुरी दुनिया में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद कई बिलियन डालर के ऑर्डर कैंसिल हुए तो छोटे दुकानदार घर बैठ गए और रीटेलर्स को अपने स्टोर्स बंद करने पडे।

हजारों फैशन इंडस्ट्रीज बर्बाद हो गई, उनमें से कुछ अस्थायी तो कुछ स्थायी तौर पर बंद हो गईं।
भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में फैशन इंडस्ट्री से जुडे लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं।

जानकार मानते हैं कि कोविड-19 के प्रकोप ने अन्य क्षेत्रों की तरह फैशन इंडस्ट्री में भी सबसे ज्यादा प्रभावित मजूदर वर्ग को ही किया। यह वर्ग अपने साथ हुई ज्यादतियों को बारे में किसी को बता भी नहीं सकता था।

लेबर बिहाइंड द लेबल (LBL) के डॉमिनिक मुलर के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री में जिन देशों में उत्पादन किया जाता है, वहां बुनियादी तौर पर मज़दूरों का उत्पीड़न होता है और उन्हें कम वेतन दिया जाता है।

इसमें ऐसा तंत्र बना दिया गया है, जिससे टॉप पर काम करने वालों के हितों को बचाए रखा जा सके और नीचे के वर्करों को बुनियादी सहूलियतें भी उपलब्ध न कराई जाएं।

1970 के दशक के बाद वैश्विक स्तर पर कपड़ा उत्पादन का काम पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका से दक्षिणी दुनिया की ओर शिफ्ट हुआ। इनमें भारत, चीन, इंडोनेशिया जैसे देश भी शामिल थे।
इससे यह हुआ कि गारमेंट वर्कर, जिन्हें पहले बडे ब्रांड सीधे नौकरी देते थे, अब दूर देशों में सप्लाई चेन की कंपनियों के मजदूर बन गए।

जिससे बड़े ब्रांडों पर निचले स्तर के मज़दूरों को उचित वेतन, अन्य लाभ और काम का माहौल देने का कानूनी तौर पर कोई दबाव नहीं रहा।

कम वेतन के साथ शोषण झेलते हुए इस इंडस्ट्री के मजदूर सालों से नारकीय जीवन जी रहे हैं। इमरजेंसी के लिए कुछ बचा पाना उनके लिए संभव ही नहीं था, इसीलिए कोरोना काल उनके लिए आफत की तरह था।

बांगलादेश सेंटर फॉर वर्कर्स सॉलिडारिटी की कार्यकारी निदेषक कल्पोना अक्तर के मुताबिक, उपभोक्ताओं को इस इंडस्ट्री के दिग्गजों के अपने मजदूरों के साथ पिछले साल महामारी के दौर में किए गए बर्ताव को भूलना नहीं चाहिए।

जब इंडस्ट्री को मजदूरों के साथ खडा होना चाहिए थो, दिग्गज ब्रांडों ने उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया।

वर्कर राइट कंसोर्टियम (WRC) के नौ देशों के चार सौ से ज्यादा गारमेंट वर्करों पर हाल ही में हुए शोध में पता चला कि इस इंडस्ट्री में काम करने वाले जिन मजदूरों की कोरोना काल में नौकरी बची रही, उनकी सैलरी भी 21 फीसदी कम हो गई। पिछले साल मार्च, अप्रैल में जो सैलरी 187 डालर प्रति माह थी, वह अगस्त 2020 में 147 डालर प्रति माह रह गई।

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Abhinav Kumar

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