यूपी में भयंकर सूखा, धान की खेती को भारी नुकसान, योगी सरकार से मुआवज़े की मांग
UP के किसान बारिश की राह देखते-देखते थक गए हैं। उत्तरप्रदेश में बहुत सी जगहों पर मानसून ने अभी तक दस्कत भी नहीं दी है। बारिश न होने से लगभग 70 जिलों में किसान सूखे का शिकार हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के 75 में से 70 जिलों में औसत से कम बारिश के चलते खरीफ की फसल पर संकट मंडरा रहा है। बारिश न होने से किसान बेहद परेशान हैं और धान की रोपाई पहले की तुलना बहुत कम होने के आसार हैं।
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ट्यूबवेल व पंप का सहारा
वर्कर्स यूनिटी से बातचीत के दौरान UP बुलंदशहर, हुरथला गांव के रहने वाले सरकारी नौकरी से रिटायर्ड 63 वर्षीय किसान तेजवीर सिंह का कहना है कि “जब कभी-भी गांव में सूखा पड़ता है तो किसान जितना कमा नहीं पता उससे ज्यादा सिचाई में लगा देता है।”
“पिछले कई दिनों से रोज़ काले बदल आते हैं और चले जाते हैं जिसके कारण धान और गन्ने की सिचाई में ट्यूबवेल या पंप की मदद ली जा रही है। कुछ किसान नदियों में पंप लगा कर अपने खेतों की सिचाई कर रहे हैं। अगर इसी प्रकार सूखा पड़ता रहा तो किसानों के लिए एक बड़ी मुसीबत आ जायेगी।”
साथ ही उनका कहना है कि यदि समय-समय पर धान और गन्ने की फसल को पानी नहीं दिया जाता, तो धान की क्वालिटी ख़राब हो जाती है। जिसको कारण बाद में मंडी में धान का उचित मूल्य नहीं मिल पता है।
वहीं दिल्ली से महज 60 किमी दूर मेरठ रोड का मिलक गांव धान की फसल के लिए मशहूर है,बारिश न होने के कारण खेतों में धान की रोपाई ट्यूबवेल से की जा रही है।
इसी गांव के रहने वाले अमित अपने बीस बीघे के खेत को पाइप के जरिए पानी पहुंचा पा रहे हैं। हर तीसरे दिन धान की फसल को पानी देना होता है लिहाजा इनकी लागत दस हजार रुपये से ज्यादा बढ़ गई है।
बारिश न होने की वजह से धान के खेतों ट्यूबवेल के जरिए पानी दिया जा रहा है, लेकिन हर खेत को कब तक ट्यूबवेल से पानी देंगे।
बुंदेलखंड: सैकड़ों एकड़ खेतों में पड़ा सूखा
देखा जाये तो जिन राज्यों में ट्यूबवेल से खेती होती है वहां हालत कुछ ठीक है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड जैसे राज्य जहां खेतों की सचाई बारिश या नहरों पर आधारित है।
बारिश न होने के कारण यहां के सैकड़ों एकड़ खेत सूखे पड़े हैं। यहां खरीफ की फसल के तौर पर तिल, मूंग और चने की खेती होती है, लेकिन सूखे जैसे हालात पैदा हो जाने की वजह से फसलों को बचा पाना मुश्किल हो रहा है।
यहां के किसानों का कहना है कि मौसम की बेरुखी से हम खरीफ की फसल नहीं बो पा रहे हैं, और जिन किसानों ने फसल की बुआई कर भी दी है वो उसको बचा नहीं पा रहे हैं।
साथ ही बताया कि राज्य के गांव ऐसे हैं जहा बिजली आती नहीं है कि निजी ट्यूबवेल से पानी लगवा दें।
बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
आजतक में आई खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मानसून पर आईएमडी के बीते 30 साल के डाटा के आकलन के आधार पर काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते राज्य में करीब 25 फीसदी बारिश पहले ही कम हो चुकी है। ऐसे में किसानों के सामने आने वाले दिनों में खासी बड़ी चुनौती रहेगी।
संस्था के प्रोग्राम लीड अबिनाश मोहंती बताते हैं कि आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, बीते तीस सालों में पहले ही उप्र में करीब 30 फीसदी बारिश कम हो चुकी है। इसी ट्रेंड के तहत इस साल अब तक 50 फीसदी से कम बारिश हुई है. जो ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
गौरतलब है कि बारिश न होने से उत्तर प्रदेश के 70 जिलों में सूखे जैसे हालात हैं। खुद मौसम विभाग के बीते एक महीने के आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि राज्य के 48 जिलों में बहुत कम बारिश हुई है और 28 में कम बारिश हुई है। वहीं उत्तर प्रदेश में 57 फीसदी, झारखंड में 46 फीसदी और बिहार में 27 फीसदी कम बारिश हुई है।
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