मज़दूरों के जीवित बचे रहने की संभावना कम, अब बस उनकी लाशें मिल जाएं: उत्तराखंड हादसा
By राहुल कोटियाल
सचिन चौधरी लगातार आठ घंटे अपने भाई को तलाशते रहे। वे कभी पुलिस अधिकारियों से मदद मांगने गए, कभी उस कंपनी के लोगों को तलाशने की कोशिश करते रहे, जिस कंपनी के काम से उनका भाई उत्तराखंड के रैणी गांव आया था। और कभी स्थानीय लोगों को अपने भाई की तस्वीर दिखा-दिखा कर उसके बारे में पूछते रहे, लेकिन यह सब करने के बाद भी उन्हें अपने भाई की कोई जानकारी हाथ नहीं लगी।
सचिन का भाई विक्की चौधरी हरिद्वार में नेशनल इलेक्ट्रिकल्स नाम की एक कंपनी में काम करता था। तीन दिन पहले ही उसकी कंपनी ने दो लोगों के साथ उसे उत्तराखंड के रैणी गांव में स्थित ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट में मेंटेनेंस के काम के लिए भेजा था। रविवार की सुबह जब रैणी में ऋषिगंगा तबाही लेकर आई, उस वक्त ये सभी लोग ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। उसके बाद से इनमें से किसी की कोई सूचना नहीं है।
सचिन कहते हैं, ‘पुलिस वाले कोई जानकारी नहीं दे रहे। कंपनी वाले भी लापता हुए लोगों की कोई सूची नहीं दे रहे जिसमें मैं अपने भाई का नाम तलाश सकूं। लोग बता रहे हैं कि यहां नीचे वो कंपनी हुआ करती थी, जहां मेरा भाई काम करने आया था, लेकिन यहां तो सिर्फ मलबे का ढेर है। कंपनी का कोई निशान तक नहीं बचा है।’ भाई की उम्र कितनी है? यह पूछने पर सचिन फूट-फूट कर रोने लगते हैं और कहते हैं, ‘वो सिर्फ 25 साल का था। अभी तो उसकी शादी भी नहीं हुई थी।’
सचिन ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं जो अपने परिजनों को तलाशते हुए रैणी गांव के आसपास बेतहाशा रोते हुए घूम रहे हैं। यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से आए ऐसे दर्जनों लोग मौजूद हैं, जिनमें से किसी को अपने बेटे की तलाश है तो किसी को अपने पिता की।
हिमाचल के शिमला जिले से आए विकास और उनके साथी भी अपने-अपने परिजनों की तलाश में यहां पहुंचे हैं।
वे कहते हैं, ‘सरकार ने जो हेल्पलाइन नंबर जारी किए थे, पहले हमने उन पर कॉल किया। वो या तो व्यस्त आते रहे या कोई जवाब नहीं मिला। फिर किसी तरह SDRF का नम्बर लगा, लेकिन उन्होंने भी सिर्फ इतना ही कहा कि हम बचाव कार्य में लगे हैं और कोई ठोस जानकारी देना अभी संभव नहीं है। जब कोई सूचना नहीं मिली तो हम सब खुद ही उन्हें खोजने यहां आ गए।’
ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट को इन दिनों कुंदन ग्रुप नाम की एक कंपनी चला रही थी। इसी कंपनी का हिमाचल में भी एक प्रोजेक्ट है।
कुछ दिन पहले ही कंपनी को ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के गेट से पानी के रिसाव की शिकायत मिली। इसे ठीक करने के लिए कंपनी ने अपनी हिमाचल यूनिट के कई कर्मचारियों को रैणी बुलाया था।
ये सभी लोग रविवार को आई आपदा के दौरान प्रोजेक्ट साइट पर मौजूद थे। सिर्फ चार-पांच दिनों के लिए रैणी आए इन लोगों ने कभी नहीं सोचा था कि वो वापस नहीं लौट पाएंगे।
विकास कहते हैं, ‘हमारे लोग बहुत शॉर्ट नोटिस पर हिमाचल से यहां चले आए थे क्योंकि कंपनी को नुकसान हो रहा था, लेकिन अब इतना बड़ा हादसा हो गया तो कंपनी की तरफ से ये भी नहीं बताया जा रहा कि कितने लोग गायब हैं और उनके नाम क्या हैं।’ अपने लोगों को तलाश करते तमाम दूसरे परिजन भी यही आरोप कंपनी पर लगा रहे हैं।
लेकिन, स्थानीय पुलिस अधिकारी मनोहर सिंह भंडारी कहते हैं, ‘कंपनी की तरफ से कौन जवाब देगा? जितने लोग कंपनी में थे, उनमें से कोई भी जवाब देने के लिए बचा ही नहीं है। वो कोई सूची भी इसलिए जारी नहीं कर पा रहे क्योंकि उनके सारे रिकॉर्ड, सारे कागज, सब कुछ खत्म हो चुका है। उस जगह पर इतना मलबा है कि कोई बता भी नहीं सकता कि कंपनी, उसका ऑफिस और वो डैम आखिर कहां हुआ करते थे।’
आधिकारिक बयानों के अनुसार रैणी गांव के पास से लगभग चालीस लोगों के लापता होने की खबर है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती कहते हैं, ‘लापता हुए या मारे गए लोगों की असल संख्या का पता लगना बेहद मुश्किल है। पहले कहा जा रहा था कि यहां से करीब तीस लोग लापता हैं। अब यह आंकड़ा बढ़कर 40 हो गया है।
असल आंकड़ा शायद इससे कहीं ज्यादा हो। स्थानीय लोगों की तो फिर भी सूची तैयार हो रही है क्योंकि वो यहीं के थे और प्रोजेक्ट में काम करते थे तो उनके लापता होने की खबर सबको है, लेकिन काम के लिए बाहर से आए लोगों की कोई सही सूची बन पाएगी, ये बेहद मुश्किल लगता है।’
रैणी स्थित ऋषिगंगा प्रोजेक्ट से लापता लोगों की संख्या की पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन तपोवन स्थित प्रोजेक्ट से 123 लोगों के लापता होने का आंकड़ा प्रशासन ने जारी किया है।
इसके साथ ही कुल 26 शवों और 5 मानव अंगों के बरामद होने की सूचना भी स्थानीय पुलिस ने जारी की है। इन शवों में ही अब अपने लापता हुए परिजनों को खोजने की बेहद क्रूर प्रक्रिया से उन लोगों को गुजरना पड़ रहा है जो उनके जीवित होने की आस लेकर यहां पहुंचे हैं।
हिमाचल से आए विकास कहते हैं, ‘आज पूरे दिन एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं बचाया जा सका, सिर्फ शव ही निकाले गए हैं। अब आखिरी विकल्प यही बचा है कि जो लाशें बरामद हो रही हैं हम जा-जाकर उनकी पहचान करें।
यहां की भयावह स्थिति देखने के बाद लगने लगा है कि इस प्रोजेक्ट में शामिल लोगों के जीवित होने की कोई उम्मीद भी बाकी नहीं रह गई है।’ रुंधे गले से वो कहते हैं, ‘अब कम से कम बॉडी रिकवर हो जाए ताकि हम लोग अंतिम संस्कार ठीक से कर सकें।’
(दैनिक भास्कर की खबर से साभार)
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