विकास दुबे की खार जनता से, ‘गुंडागर्दी’ पर उतरी यूपी पुलिस
By आशीष सक्सेना
राजनीतिक दलों और अफसरों की सरपरस्ती में पले गैंगस्टर विकास दुबे के गैंग ने आठ पुलिसकर्मियों को कुछ ही पलों में मौत की नींद सुला दिया। अब पुलिस उसको गिरफ्तार करने और गुंडों को सबक सिखाने की जगह आम जनता से खार निकाल रही है। सड़कों पर दहशत फैलाकर किसी भी समय खुलेआम गुंडागर्दी करके वसूली की जा रही है।
कोरोना वायरस की महामारी में जिस पुलिस का सम्मान करके योद्धा बताकर सम्मान करने की अपील की जा रही है और तथाकथित समाजसेवी फूल-मालाओं से लाद रहे हैं, उसने आम लोगों को इन दिनों जीना मुहाल कर सम्मान को ठुकराने की जैसे जिद पकड़ ली है।
बुधवार का वाकया है। उत्तरप्रदेश के बरेली शहर में शाम लगभग पांच बजे किला थाने की पुलिस ने बीच सड़क पर आने जाने वाले वाहनों को रोकना शुरू कर दिया। सभी कागजात दुरुस्त होने पर भी सीधे सौ रुपये लेना शुरू कर दिए। एक रसीद भी थमाते जा रहे थे कि आपने महामारी अधिनियम का उल्लंघन किया है। कोई सवाल-जवाब का मौका नहीं। मुंह खोलते ही गालीगलौच। इस बीच एक सिपाही ने दूसरे से पूछा, कितने? दूसरे ने जवाब दिया, 75 करने हैं।
इसका मतलब क्या हुआ? पुलिस के जाल में फंसने वालों को तो यही अंदाजा लगा कि 75 लोगों से 100-100 रुपये लेने के टारगेट की बात हो रही है।
इस बारे में शहर के कुछ पत्रकारों ने बताया कि अफसरों ने गन प्वांट पर वाहन चेकिंग करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही दबिश में जाने पर पूरा साजोसामान लेकर पुलिस दल को जाने की भी हिदायत दी है। कुछ ने ये भी कहा कि रोज 50 चालान का टारगेट मिला है एक थाने से।
दबिश का तो समझ में आता है, लेकिन गन प्वांट पर वाहन चेकिंग का क्या मतलब है, वह भी आम लोगों से।
ये अजीब बात है। दिन में बाजार की गहमागहमी पर कोई रोकटोक नहीं और आधी रात को जांच। बारिश का मौसम है और कोरोना महामारी के रोज आने वाले केस की संख्या से लोग पहले ही डरे हुए हंै, आधी रात को कोई बेवजह क्यों निकलेगा सड़क पर!
उस वक्त न कोई चाय की दुकान खुली होती है और न पान का खोखा। फिर भी पुलिस आधी रात को वाहन चेकिंग को जहां-तहां घेराबंदी कर रही है। सिर्फ इसलिए कि कोई अनावश्यक सड़क पर न निकले।
टोटल लॉकडाउन के दौरान भी पुलिस ने जरूरतमंद लोगों को सड़क पर दिखते ही बेरहमी का नजारा दिखाया था, इसकी कुछ अखबारों ने सुर्खियां भी बनाईं। अब अनलॉक है और लोगों को खुद ही हिफाजत के साथ निकलना है, तब भी यही आलम है।
इस वक्त भी रात को इमरजेंसी में ही कोई बाहर निकल रहा है, लेकिन उस समय पुलिस को वह कानून-व्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो रहा है। रोडवेज बस से कहीं जाना हो तो बस पकडऩा मुश्किल, अस्पताल जाना हो तो पहले पुलिस की फटकार।
बुधवार को बरेली में चेकिंग के फंसे जयराज ने कहा कि कोई वाहन संबंधी कागज की कमी है भी तो इस समय ठीक कराना क्या आसान है! प्रदूषण जांच केंद्र बंद हैं, मैकेनिक रोस्टर के हिसाब से कुछ आ रहे हैं। आरटीओ दफ्तर कहने को खुला है, लेकिन वहां तक पहुंचना ही सभी के लिए आसान नहीं है।
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सौ रुपये देकर लौट रहे अशोक गंगवार ने कहा, महंगाई, महामारी, दुश्वारी से जूझ रही आम जनता को पुलिस की इस हरकत ने परेशान कर दिया है। महामारी अधिनियम की रसीद दिखाकर नसीम ने कहा, कोई विकास दुबे क्या आधी रात को खटारा बाइक पर पत्नी या किसी परिजन के साथ सुनसान में बिना पुलिस को मिल सकता है, जो ऐसा किया जा रहा है।
पीडि़त अनिल प्रजापति ने कहा, अगर सच में विकास दुबे जैसा कोई हुआ तो क्या पुलिस उसके साथ ऐसी अभद्रता और वसूली कर भी पाएगी। पुलिस को कोराना योद्धा की तरह मददगार बनने की जगह ‘हफ्ता वसूली’ जैसे काम में लगाने से किसी दिन गंभीर स्थिति भी बन सकती है।
पूरे प्रदेश में अगर इसी तरह हो रहा है तो रोजाना की वसूली का आंकड़ा सौ रुपये के हिसाब से भी लाखों में हो जाता है। फिलहाल प्रदेश में 1427 पुलिस थाने हैं और 1400 थानों की और जरूरत बताई जा रही है। इस साल 120 नए थाने खोलने की योजना रही है।
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