लॉकडाउन के दौरान सबसे अधिक दिहाड़ी मज़दूरों ने की आत्महत्या
कोरोना महामारी और फिर सरकार द्वारा लगाए गए सनकभरे लॉकडाउन से सबसे अधिक मज़दूर प्रभावित हुए और अभी भी उनकी ज़िंदगी पटरी पर नहीं आ पाई है।
सरकार के तमाम दावों के बावजूद अब उसी एक रिपोर्ट से यह बात ज़ाहिर हुई है कि प्रकृतिक से अधिक मानवीय सृजित आपदा के कारण हताश होकर सबसे अधिक आत्महत्या करने वालों में दिहाड़ी मज़दूर थे।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के साल 2020 की ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुइसाइड’ रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2020 में आत्महत्या सबसे ज़्यादा दिहाड़ी मजदूरों ने की है।
इन आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले साल 1 लाख 53 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें से सबसे ज़्यादा करीब 37 हज़ार दिहाड़ी मजदूर थे। आत्महत्या के मामलो में सबसे ज़्यादा तमिलनाडु के मज़दूर थे। फिर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात के मजदूरों की संख्या है।
हालांकि इस रिपोर्ट में मजदूरों की आत्महत्या के पीछे कोरोना महामारी को वजह नहीं बताया गया है।
लेकिन मार्च के अंत में भारत में लगे पूर्ण लॉकडाउन के बाद मजदूरों के पलायन की तस्वीरें सबने देखी हैं कि कैसे लोग पैदन सैकड़ों किलोमीटर अपने घर को पैदल ही निकले और रास्ते में तमाम तकलीफ़ें सहीं।
उनके साथ उनका पूरा परिवार था, बच्चे, बूढ़े, बीमार, महिलाएं, गर्भवती और उनकी मदद की बजाय सरकार की ओर से लाठियां थीं।
कुछ राज्य सरकारों ने दूसरे राज्यों में काम कर रहे अपने लोगों के लिए ट्रेनों और बस का इंतजाम भी किया था। केंद्र सरकार ने ग़रीबों में मुफ़्त राशन बटवाने का एलान भी किया था। लेकिन मजदूरों के दुख, परेशानी और भुखमरी के आगे वो कोशिशें नाकाफ़ी थीं और कागज़ी या दिखावे वाली ज़्यादा थीं।
भारत में 2017 के बाद से साल दर साल आत्महत्या के मामलों में इज़ाफ़ा देखने को मिल रहा है। 2019 के मुकाबले 2020 में 10 फ़ीसदी मामले ज़्यादा सामने आए हैं।
आत्महत्या के मामले में स्कूली छात्रों के मामले भी ज़्यादा देखने को मिले हैं।
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