क्या सुभाष हवाई हादसे के बाद भी जीवित थे?

क्या सुभाष हवाई हादसे के बाद भी जीवित थे?

पूरा देश इस साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जन्मशती मना रहा है। सरकार ने इस साल नेताजी की याद में कई कार्यक्रम करने की योजना बनाई है ताकि देश के इस महान नेता को सच्ची श्रृद्धांजलि दी जा सके। इसी मौके पर नेताजी पर एक नई किताब प्रकाशित हुई है सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा. हिंदी में ये अपने तरह की नेताजी पर प्रकाशित पहली किताब होगी।

रिपोर्ट्स कहती हैं कि 18 अगस्त 1945 को दोपहर ढाई बजे ताइवान में एक दुखद हवाई हादसे में नेताजी का निधन हो गया। हालांकि हादसे के समय, दिन, हकीकत और दस्तावेजों को लेकर तर्क-वितर्क, दावे और अविश्वास जारी हैं।

अलग-अलग देशों की आला खुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की।

कुछ स्वतंत्र जांच हुई, कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनी।तमाम किताबें लिखी गई। रहस्य ऐसा जो सुलझा भी लगता है और अनसुलझा भी।

हकीकत ये है कि 18 अगस्त 1945 के बाद सुभाष कभी सामने नहीं आए। बहुत से लोग 80 के दशक तक दावा करते रहे कि उन्होंने नेताजी को देखा है।

अयोध्या में रहने वाले गुमनामी बाबा को बेशक सुभाष मानने वालों की कमी नहीं लेकिन पहले जस्टिस मनोज मुखर्जी आयोग और फिर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विष्णु सहाय आयोग साफ कहा कि गुमनामी बाबा को सुभाष नहीं माना जा सकता।

दो और बाबाओं के सुभाष होने की चर्चाएं खूब फैली, उसमें शॉलमारी आश्रम के स्वामी शारदानंद और मध्य प्रदेश में ग्वालियर के करीब नागदा के स्वामी ज्योर्तिमय को नेताजी माना गया।

जब देश आजाद हो रहा था कि तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को भी लगता था कि नेताजी जिंदा हैं। ये माना गया कि वो सोवियत संघ पहुंच गए हैं, महफूज हैं।

आजादी के बाद जब नेहरू मंत्रिमंडल गठित होना था तो अक्सर ये सवाल नेहरू और सरदार पटेल से प्रेस कांफ्रेंस में पूछा जाता था कि अगर सुभाष लौट आए तो सरकार में उन्हें कौन सी जगह मिलेगी।

बहुत से लोगों को लगता था कि सुभाष ने सोवियत संघ से नेहरू को चिट्ठी लिखकर बताया है कि वो किस हाल में हैं।

ये भी माना गया कि ब्रिटेन सरकार के दबाव में सुभाष को सोवियत संघ से रिहाई में दिक्कत आ रही है।

नेहरू सरकार ने काफी दबाव के बाद 50 के दशक में पहला जांच आयोग शाहनवाज खान की अगुवाई में बनाया गया। उसने रिपोर्ट दी कि नेताजी का निधन तायहोकु में प्लेन क्रैश में ही हुआ।

फिर 70 के दशक में गठित जस्टिस जीडी खोसला आयोग इसी नतीजे पर पहुंचा। लेकिन 90 के दशक के आखिर में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बनाए गए तीसरे मुखर्जी आयोग ने इस निष्कर्ष को पलट दिया।

मुखर्जी आयोग ने कहा कि सुभाष का निधन उस दिन हवाई हादसे में नहीं हुआ। हालांकि तीनों आयोगों की कार्यवाहियों और निष्कर्षों में बडे़ झोल भी हैं।

1957 में सुभाष के बड़े भाई सुरेश बोस ने अपनी असहमति रिपोर्ट में दावा कि जापानी अधिकारियों ने गैर आधिकारिक तौर पर बताया कि सुभाष सुरक्षित सोवियत सीमा में पहुंचा दिए गए थे।
हालांकि इस सारी रिपोर्ट्स के बीच कई बड़े सवाल भी हैं

– जापान ने उनके निधन की खबर जारी करने में पांच से छह दिन क्यों लिए
– आखिर क्यों नेताजी के निधन से जुड़ा कोई भी रिकॉर्ड अस्पताल से लेकर शवदाह गृह और     हादसा वाले एयरपोर्ट पर नहीं है
– उनके शव की फोटोएं क्यों नहीं सही तरीके से खींचीं गईं
– क्या वो वाकई वार क्रिमिनल थे (उनका नाम ब्रिटेन ने युद्ध अपराधी की सूची में रखा था)
– सुभाष की उस घड़ी का रहस्य क्या है, जो उन्होंने आखिरी समय में पहनी हुई थी
– फ्रांसीसी जासूसी एजेंसी क्यों मानती है कि जापान ने ही बोस को कैद कर लिया

सुभाष चंद्र बोस पर प्रकाशित लेखक संजय श्रीवास्तव की नई किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा में उसी ओर देखने की कोशिश है। सुभाष पर उपजने वाले तमाम सवालों का जवाब खोजने के साथ तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट, बडे़ भाई सुरेश चंद्र बोस की अहसमति रिपोर्ट को विस्तार से पहली बार दिया गया है।
नेताजी की ये खासियत थी कि वो असंभव को संभव कर दिखाते थे। ये काम उन्होंने अपनी जिंदगीभर किया। उनका जीवन किसी तपस्वी की ही तरह था। कठोर स्थितियों में वो लगातार सादगी से रहे, जापान में वो वही खाना खाते थे, जो सैनिक खाते थे। अफगानिस्तान में उनके जमीन पर सोने की भी नौबत आई।

आध्यात्मिक तौर पर वो रहस्यपूर्ण और साधना साधक थे। उनके जीवन के कई रहस्य बिंदू थे। उन्होंने कोई एक दो साल नहीं बल्कि नौ सालों तक अपने और एमिली शेंकल से संबंधों को छिपाकर रखा।

ये सुभाष पर काफी तथ्यपरक और शोधपूर्ण तरीके से लिखी किताब है,जो सुभाष ही नहीं बल्कि उनके जीवन से जुड़े लोगों और सवालों पर नजर दौड़ाती है। किताब में हर पक्ष को संतुलित तौर पर देखने का प्रयास किया गया है।

सुभाष की अज्ञात यात्रा आज भी अज्ञात है। हालांकि इसका पटाक्षेप जापान की राजधानी तोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रखी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की डीएनए जांच से हो सकता है।

किताब – सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा
लेखक – संजय श्रीवास्तव
संवाद प्रकाशन, मेरठ
मूल्य 300 रुपए(पेपर बैक)
(अमेजन पर उपलब्ध)
पेज -288

 

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Abhinav Kumar

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