यातना का कारखानाः वजीरपुर स्टील फैक्ट्रियों में काम करने वाला ऐसा कोई नहीं जिसका अंग भंग न हो

यातना का कारखानाः वजीरपुर स्टील फैक्ट्रियों में काम करने वाला ऐसा कोई नहीं जिसका अंग भंग न हो

By खुशबू सिंह

चमकदार बर्तनों में मुझे मेरा चेहरा नहीं, मज़दूरों की लाशें, कटी उंगलिया, ज़ख्मी हाथ, चोटिल सिर, और कंधे पर ज़िम्मेदारियों का बोझ लिए काम की चक्की में पिसते मज़दूर नज़र आते हैं।

यही सच्चाई दिल्ली की वजीरपुर स्टील फैक्ट्री की है। यहां पर काम करने वाला शायद ही कोई मज़दूर होगा जिसके शरीर पर चोट का निशान न हो।

आए दिन मज़दूर इस फैक्ट्री में घायल होते रहते हैं, किसी की उंगली कट जाती है तो किसी के सर पर चोट लग जाती है। इन जख्मों की भरपाई कंपनी मालिक कुछ पैसों से करते रहतें हैं और मज़दूरों को चोट लगने के सिलसिला चलता रहता है।

हम निकले थे मज़दूर ढाबा की कहानी जानने के लिए जिसे नवीन कुमार वजीरपुर में चला रहे हैं। इसी दौरान हमारी मुलाकात नासीर अहमद से हुई, जो वज़ीरपुर की स्टील फैक्ट्री में पिछले 8 साल से काम कर रहे हैं।

नासीर अहमद स्टील फैक्ट्री में काम करते हैं, इनकी जब भी छुट्टी होती हैं तो मज़दूर ढाबा में हाथ बँटाने के लिए चले आते हैं और बदले में एक टाईम का खाना पूरे परिवार के लिए मिल जाता हैं।

इनके बाएं हाथ की दो उंगलियां कटी हुई हैं। उंगलियां उसी स्टील फैक्ट्री में काम करने के दौरान ही कटी, नासीर पिछले आठ साल में 4 बार फैक्ट्री में घायल हो चुके हैं।

कमलेश का हाथ सड़ रहा है, हमारे पास पैसे नहीं हैं, हम आगे क्या करें?’- देश की राजधानी में मज़दूरों को अपंग बनाने वाले कारखानों की दास्तान

नासीर हमें बताते हैं कि- “फैक्ट्री में मजदूरों को चोट लगना आम बात है, जब भी किसी व्यक्ति को चोट लगती है तो उसका इलाज स्मार्टकार्ड द्वारा मुफ्त में हो जाता है। ये उन्हीं लोगों के पास है जो फैक्ट्री में पिछले 3 साल से काम कर रहे हैं।”

इनका दावा है कि जिन मज़दूरों के पास स्मार्टकार्ड नहीं है उन्हें कंपनी मालिक कुछ पैसे देकर चुप रहने को कहते हैं और कई बार तो मालिक झूठ बोलने का दबाव भी बनाते हैं।

नासीर आगे कहते हैं कि ‘जब मेरी उंगली कटी तो मैने सोचा इस काम को छोड़ दूंगा पर सिर पर बीवी, तीन बच्चों और अम्मी की जिम्मेदारी होने के नाते इस काम को नहीं छोड़ पाया।’

वो कहते हैं, “तकलीफ़ है तो क्या हुआ 8 घंटे का 11 हजार महीना कहां मिलेगा जैसा भी है परिवार का पेट पालने के लिए करना ही पड़ेगा, अगर ये काम नहीं करूगां तो 2 हज़ार रुपये कमरे का किराया है, कौन देगा? अब्बू ने दो शादियां की हैं उन्हें हम से कोई मतलब नहीं हैं, जो भी हो कटी उंगलियों के साथ मुझे यहीं काम करना पड़ेगा।”

20-20 साल से काम कर रहे वर्करों की एक झटके में छुट्टी

नासीर अहमद उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले हैं। और वो 13 साल की उम्र से दिल्ली में काम कर रहे हैं।

श्रम और रोजगार मंत्रालाय के आँकड़ो के अनुसार, पूरे भारत में 2014-2016 के बीच 3,562 मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में हुई हैं और 51 हजार से अधिक मज़दूर घायल हुए हैं।

यानी भारत में हर दिन तीन मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है और 47 लोग घायल होते हैं।

ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल के 2017 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 48,000 हजार मज़दूरों की मौत फैक्ट्री दुर्घटनाओं में होती है।

इसी तरह से वज़ीरपुर स्टील फैक्ट्रियों में कई नासीर हैं जिनकी कहानी से मुख्य धारा की मीडिया के लिए कोई ख़बर नहीं है।

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Workers Unity Team