वो कौन सी चीज है जो सभी मेहनतकशों को एक सूत्र में बांधती है? – नज़रिया

वो कौन सी चीज है जो सभी मेहनतकशों को एक सूत्र में बांधती है? – नज़रिया

By चुक चर्चिल

सभी मेहनतकश लोगों में कौन सी चीज समान है, भले ही उनके तथाकथित नस्ल या चमड़ी के रंग अलग-अलग हों?

जवाब है, एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के दबदबे के नीचे उनका एक अनिश्चित वजूद! जहाँ सारी सत्ता राष्ट्र के (और दुनिया के) मुट्ठीभर लोगों – बड़े बैंकर और कॉर्पोरेट मालिक वर्ग के हाथों में केंद्रित है।

यह एक प्रतिशत बड़े पूंजीपति हैं, जिन्होंने दुनिया के मज़दूर वर्ग की मेहनत से पैदा हुई दौलत का बहुत बड़ा हिस्सा हड़प रखा है।

यहां तक कि हमारे शासक खुद अपने ही वॉल स्ट्रीट जर्नल और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे तमाम नामी अख़बारों में भी पूरी दुनिया में साफ तौर पर दिखने वाली इस सच्चाई को नकारने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

यही एक प्रतिशत पूरी दुनिया पर राज करता है!!

लगातार विफलताओं के बावजूद, कैसे इन्होंने इतने लंबे समय तक अपनी ताक़त को संजोये रखा है, जबकि इन विफलताओं ने लाखों लोगों की ज़िंदगी, आज़ादी और ज़िंदा रहने के साधनों से उन्हें महरूम कर रखा है?

इसका उत्तर यह है कि उन्होंने मीडिया के मालिकाने पर कब्जा करके बड़े पैमाने पर मीडिया को और दो प्रमुख राजनीतिक दलों पर लगाम लगा दी है।

मज़दूर वर्ग की विचारधारा

साथ ही ट्रेड यूनियनों से शुरू करते हुए, न सिर्फ मज़दूर वर्ग के किसी भी स्वतंत्र केंद्र को, बल्कि लगातार हमलों के ज़रिये उन वैकल्पिक राजनीतिक विचारों और रणनीतियों जोकि मज़िदूरों को एकजुट करती हैं जैसे- समाजवाद, साम्यवाद, यहां तक कि लोकतंत्र की एक समझ भी जिसमें आर्थिक के साथ-साथ आर्थिक विकास भी शामिल है, उन सबको कमजोर करने और नष्ट करने के लिए दिन-रात काम किया।

इसके अलावा, ऐतिहासिक रूप से, हमारे शासकों ने मजदूरों के बीच बंटवारे को बढ़ावा दिया है।

लब्बोलुआब यह कि पूंजी के शासन के तहत, मज़दूर और उनके परिवार न तो रोज़गार पैदा करते हैं और न ही उन्हें छीनतेे हैं। पूँजीपति मालिक ही ऐसा करते हैं।

फिर भी वे अपनी व्यवस्था के फ़ेल होने की कोई भी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते हैं, जिनकी वजह से लाखों लोग बिना रोज़गार के, बिना घर के, बिना इलाज और देखभाल के, यहां तक कि बिना ढंग के भोजन के छोड़ दिये जाते हैं!

और जब भी मजदूरों ने इसके ख़िलाफ़ संगठित होने की कोशिश की, तो वे पुलिस और कभी-कभी मिलिट्री हिंसा से उनका मुकाबला करते हैं।

आप आज भी शिकागो पुलिस द्वारा रिपब्लिक स्टील के हड़ताली मजदूरों (जिनमें सभी गोरे थे) पर पीछे से गोली चलाये जाने वाली फिल्म देख सकते हैं जब वेे महामंदी के दिनों में हड़ताल के दौरान पुलिसिया हिंसा से भागने की कोशिश कर रहे थे।

मज़दूरों को बांटने की कोशिश में सत्ताधारी

और हमारे इतिहास में इस तरह के कई-कई उदाहरण मौजूद हैं। अपनी स्थापना के बाद से से पुलिस वास्तव में “ग़ैरबराबरी का प्रबंधन करने और यथास्थिति को बनाए रखने का एक हथियार रही है।

एलेक्स एस विटाले ने पुलिस के इतिहास पर अपनी महत्वपूर्ण किताब, “द एंड ऑफ पोलिसिंग” में इस नज़रिए को विकसित किया है। (यह किताब वर्सो प्रकाशन से मुफ्त में उपलब्ध है।)

हमारे शासक बहुत ही चालाक और कुटिल रहे हैं। औपनिवेशिक काल में मज़दूरों को एकजुट होने और मालिक वर्ग की आर्थिक और राज्य शक्ति के ख़िलाफ़ उन्हें अपनी संख्या का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए वे सभी तरह के हथकंडे अपनाते थे।

नस्लवाद, जो कि अमेरिका के मूल निवासियों के विनाश को और अफ़्रीकी मूल के लोगों की गुलामी को सही ठहराने के लिए उनको किसी तरह “हीन” साबित करने और इसलिए उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने और कभी-कभी नरसंहार और हमेशा अति-शोषक के योग्य चिह्नित करने की कोशिश करना, सदियों से हमारे अमीर शासक वर्ग का लगातार उपयोगी हथियार बना रहा।

वे इस देश के कुछ कम जागरूक गोरे मजदूरों के दिमाग में इस नस्लवाद को भरने में बहुत हद तक सफल हुए हैं, लेकिन हो सकता है कि अमेरिका में चल रहे “ब्लैक लाइव्स मैटर” आंदोलन के साथ वे अपने अंत की ओर बढ़ें।

rico workers

पूंजीवादी व्यवस्था का हिसाब कौन लेगा?

शर्त यही है कि यह आंदोलन हर संभव रूप-रंग वाले सभी मजदूरों को एक साथ लाने की जरूरत पर ध्यान केंद्रित कर पाये।

हम सभी के सामने लड़ने के लिए कुछ मुद्दे हैं। यदि हम दूसरों के अधिकारों के लिए नहीं खड़े होते हैं तो हम अपने खुद के अधिकारों को बचाने की उम्मीद नहीं कर सकते।

हमें इस पूंजीवादी व्यवस्था का लेखाजोखा लेना होगा! इसने भारी संख्या में जनता को अपने जीवन पर नियंत्रण के बाहर छोड़ दिया है और खुद एक विकट डंवाडोल भविष्य का सामना कर रहा है।

हम सभी को वाज़िब मज़दूरी वाले परमानेंट रोज़गार की ज़रूरत है जो रोटी और मकान के लिए पर्याप्त हो। एक मानव अधिकार के रूप में सभी के लिए दवा इलाज़ की गारंटी होना जरूरी है।

बिना किसी रुकावट के, एक शैक्षिक प्रणाली तक हम सभी की पहुंच होनी चाहिए जो हमें सिखाये कि हमें एकजुट रहने के लिए क्या जानना चाहिए, जिसमें हमारे इतिहास का एक सही मूल्यांकन शामिल हो।

इसके बजाय, अब हमारे पास एक ऐसी व्यवस्ता है, जिसमें लोगों को अपनी जीविका चलाने के लिए कई मोर्चों पर अपनी ज़िंदगी के लिए एक ख़ौफ़ के साथ काम करना पड़ता है, जोकि कोरोना महामारी की बदइंतज़ामी से शुरू होता है, जिसके चलते एक लाख लोगों की जान चली गयी, जिनमें सबसे अधिक संख्या मज़दूरों की है।

trump modi

पुलिसिया हिंसा यानी राज्य की हिंसा

इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के उन बड़े मालिकों (मिलिट्री इंडस्ट्रियल कांप्लेक्स) द्वारा छेड़े गए अंतहीन युद्धों में मरने वाले लोगों को भी शामिल कर लें, जिनको वे अपने साम्राज्य को बचाए रखने और अपनी तिजोरी भरने के लिए मार डालते हैं।

ये युद्ध किसानों और मज़दूर वर्ग के लोगों को सबसे ज़्यादा संख्या में मार डालते हैं, जिनमें अमेरिकी सैनिक भी शामिल हैं, जिनको दुनिया भर के उन अनगिनत नागरिकों से लड़ने के लिए भेजा जाता है, जिनमें हमेशा ही गरीब लोग होते हैं– महिलाएं, बच्चे और बूढ़े लोग जो बमबारी के समय भाग भी नहीं सकते।

इन साम्राज्यवादी युद्धों का अंत होना ज़रूरी है। सबसे बड़ी बात यह कि हमारे काले भाई और बहनों के ख़िलाफ़ पुलिसिया हिंसा को ख़त्म करने की जरूरत है। और हर जगह मज़दूरों के ख़िलाफ़ शासक वर्ग की हिंसा को ख़त्म करना ज़रूरी है।

हमें एक ऐसे समाज की ज़रूरत है, जो सबकी देखभाल, सहयोग और मानवीय ज़रूरतों के लिए उत्पादन पर आधारित हो और उसे इस तरह से चलाया जाये जिससे इंसानी वज़ूद को बढ़ावा मिले और हम सब को जीवन देने वाली यह धरती भी बची रहे

(चुक चर्चिल इतिहास के सेवानिवृत्त व्याख्याता हैं। उन्होंने कैल स्टेट चिको और ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाया। वे “थ्रू द नीडल आई: एलीट रूल एंड द इल्यूसंस ऑफ फ्रीडम” के लेखक हैं। काउंटरपंच से साभार। अंग्रेज़ी में इस लेख को यहां पढ़ सकते हैं। अनुवाद- दिगम्बर।)

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