‘सरकार अपने लक्ष्य जब पूरे कर लेगी, महामारी खत्म हो जाएगी’

‘सरकार अपने लक्ष्य जब पूरे कर लेगी, महामारी खत्म हो जाएगी’

(कोविड ड्यूटी कर रहे वरिष्ठ चिकित्सक से आशीष आनंद की बातचीत के अंश)

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के वरिष्ठ चिकित्सक से फोन पर बातचीत हुई। सरकार के रुख के कारण उन्होंने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर खुलकर बात की। वे दिल्ली के भी कई बड़े अस्पतालों में सेवाएं दे चुके हैं, अब सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में अहम जिम्मेदारी पर हैं।

इन दिनों उनकी सेवाएं कोविड मरीजों से भरे अस्पताल में ली जा रही हैं। जब बात हुई तो वे तीसरे टर्म की कोविड स्पेशल ड्यूटी पर चल रहे थे।

बातचीत के वक्त बहुत बेचैन थे। उन्होंने बताया, आज सुबह ही मैंने एक 24 साल के लडक़े की मौत होने के बाद कागजात बनाए। वह लडक़ा काफी अरसे से किडनी डायलिसिस पर था। कुछ दिन पहले वह डायलिसिस के लिए एक अस्पताल गया तो वहां उसकी कोविड जांच कर दी गई, जो पॉजिटिव आई।

इसके बाद उसे हमारे अस्पताल में भेज दिया गया। हमारे यहां कोविड का इलाज हो रहा है, कोई अन्य इलाज नहीं है। आखिरकार उसकी के्रटिनिन 24 प्रतिशत तक हो गई, जो एक प्रतिशत से कम होना चाहिए। जहर बन गया और मर गया।

ऐसे ही एक महिला कैंसर पेंशेंट थीं, कीमो थेरेपी ले रही थीं। एक दिन वे कीमो लेने गईं कि उनकी कोविड जांच हो गई और वो पॉजिटिव आ गईं। हमारे अस्पताल में भेज दिया गया। जब आईं थीं, पेट सामान्य था। धीरे-धीरे उनके पेट में पानी भर गया।

हमने अस्पताल प्रबंधन से बात की कि कुछ पानी निकाल दिया जाए, लेकिन हाथ लगाने को भी मना कर दिया गया। दो दिन पहले ट्रू नैट से जांच में निगेटिव आने पर डिस्चार्ज किया गया, शायद वो भी नहीं रही हों अब तक।

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विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग दो
विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग तीन
विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग चार
विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग पांच
विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग छह
विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- अंतिम भाग

corona virus in india hospitals and doctors

डाक्टर ने कहा, मेरी ड्यूटी में एक हजार से ज्यादा पेशेंट आ चुके हैं कोविड के, जिनकी देखरेख और इलाज में मैं भी शामिल रहा हूं। उनमें से लगभग 40 मर गए डेढ़ महीने में। शायद ही कोई ऐसा मरने वाला था, जिसको कोविड के अलावा कोई और बीमारी न रही हो।

सभी चिकित्सक समझ रहे हैं कि क्या हो रहा है। कोरोना एक वायरस है, ये हकीकत है। हम उसे ही सबमें तलाश रहे हैं, वही मिल रहा है। इसके अलावा कितने वायरस और बैक्टीरिया हैं, ये तलाश नहीं हो रही है। उनकी भी नहीं, जो उसी गले में मौजूद होते हैं, जहां कोरोना होता है।

निमोनिया से ग्रस्त मरीज की निमोनिया की जांच नहीं हो रही, न इलाज हो रहा, सिर्फ कोरोना खोजा और कोरोना का इलाज कर रहे हैं। ऐसे में रोगी दूसरे रोग से तड़पता है और हम कोई दवा नहीं दे सकते।

हमारे पास गिनी चुनी एंटी बायोटिक दवाएं हैं, उन्हीं का इस्तेमाल होता है सरकारी अस्पतालों में। पीपीई किट अपने आप में चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ को इतना परेशान कर देती है कि वह अपनी क्षमता का आधा भी नहीं कर पाता। मरीज के चेहरे और आंखों से बहुत कुछ अंदाजा लगता है, जो किट के साथ संभव नहीं हो पाता।

ऐसे में मौत को कोरोना संक्रमण कैसे कहा जाए, ये तो बिना इलाज कैद करके हत्याओं जैसा मामला है। फाल्स पॉजिटिव होने की संभावनाएं बड़े पैमाने पर हैं। ऐसे में किसी बिना लक्षण वाले स्वस्थ व्यक्ति को पॉजिटिव मानकर कोविड मरीजों के बीच रखने से उसका वास्तविक मरीज बन जाना तय है। उसको कोई और बीमारी रही तो उसकी मौत की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती हैं।

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कोरोना के बहाने ‘तीसरा महायुद्ध’- अंतिम भाग

corona virus genetic structure

इस बात को समझा ही नहीं जा रहा है कि किसी के कोरोना पॉजिटिव होने का मतलब रोगी होना नहीं होता। ठीक वैसे ही, जैसे बहुत बड़ी संख्या में लोग टीबी संक्रमित हैं, लेकिन सब रोगी तो नहीं हैं। केस की संख्या और रोगियों की संख्या एक ही बात नहीं है।

पूरे शरीर की जांच में ऐसे बहुत से वायरस और बैक्टीरिया मिल सकते हैं, जिनको पहचाना जा चुका है। बहुत से ऐसे वायरस भी हैं, जिनको पहचाना जाना बाकी है। वे पहचान लिए जाएंगे तो उनके मिलने पर भी नए प्रकार के पॉजिटिव केस होंगे। व्यवहारिक तौर पर भी लोग देख सकते हैं कि उनके मुहल्ले, कॉलोनी या गांव में कितने लोग कोरोना से मर रहे हैं?

क्या पहले इतनी ही संख्या में मौतें नहीं होती थीं। आखिर किस श्मशान और कब्रिस्तान में कोरोना से मरने वाले मरीजों के अंतिम संस्कार के लिए कतारें लगी पड़ी हैं, कहीं नहीं। क्या राहत इंदौरी की मौत, बेजान दारूवाला की मौत कोरोना के कारण मानी जानी चाहिए। इंदौरी तीसरे हार्ट अटैक में नहीं रहे, बेजान दारूवाल नब्बे साल के थे।

इसी तरह के अधिकांश केस मिलेंगे। कुछ ऐसे केस भी मिल सकते हैं, जिनकी मौत का कारण पता नहीं चला, न पता लगाने की जांच और पोस्टमार्टम हुए। उनके बारे में सिर्फ इतना ही पता है कि कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आई थी। ऐसे में उनको भी कोरोना की मौत के रजिस्टर में दर्ज करने का कोई तुक नहीं है।

corona in noida

हर साल सैकड़ों मामले रहस्यमयी बुखार के आते हैं, जिनमें मौत भी होती रही हैं, वे अब नहीं हैं। कोई रिकॉर्ड नहीं मांगा जा रहा है और न दिया जा रहा है। न अब मलेरिया केस हैं, न डेंगू, न जापानी इंसेफेलाइटिस, न ही कुछ और।

ऐसे में क्या किया जा सकता है? डॉक्टर ने कहा, अगर आम स्वास्थ्य बंदोबस्त नहीं है तो कोविड जांच अभियान चलाने व्यर्थ है। इससे बेहतर तो ये है कि जांच अभियान पूरी तरह बंद कर दिया जाए। इतने दिनों के अनुभव से मैं समझ सकता हूं कि क्या हो रहा है, इस काम में लगे सभी चिकित्सक जानते हैं।

सरकार अगर डॉ.कफील की तरह क्रिमिनल चार्ज न लगाए तो मैं बिना पीपीई किट के केवल मास्क में कोविड मरीजों का इलाज करने को तैयार हूं। बिना मास्क के इलाज की शर्त रखी जाए, तो भी तैयार हूं।

आखिर मास्क भी कितना कारगर है, ये भी समझना चाहिए। जिस मास्क में आप आराम से सांस ले सकते हैं, उसका कोई मतलब नहीं है। एन-95 मास्क आप लगातार लगाए रहते हैं तो आपका सांस का रोगी बन जाने की संभावना प्रबल है।

जिस तरह की अवैज्ञानिक विधियों और मनमानी से नियम कायदे सरकार ने लागू कर दिए हैं, उनका लक्ष्य कुछ और हो सकता है, कोरोना या कोविड-19 से निपटने में इनका कोई योगदान नहीं है।

बिना तर्क के कोई भी नियम लागू हो रहे हैं। इसी तरह एक दिन सरकार जांच और इलाज बंद कर देगी, तब भी कोई तर्क नहीं होगा। ऐसा तब ही होगा, जब सरकार के लक्ष्य पूरे हो जाएंगे। ये लक्ष्य क्या हैं? वही, जिनसे आमजन को तकलीफ है।

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ashish saxena