बिहार विधान सभा के चुनावी मुद्दों में प्रवासी मजदूरों की आवाज़ कहां हैं? वर्कर्स यूनिटी का कवरेज अभियान
वर्कर्स यूनिटी पिछले दो सालों से देश की मेहनतकश आबादी की समस्याओं पर ज़मीनी रिपोर्टिंग करता रहा है और बिहार चुनाव को प्रवासी मज़दूरों के नज़र से देखने की कोशिश के तहत एक कवरेज अभियान शुरू कर रहा है।
अगले 10 दिनों तक प्रवासी मज़दूरों से संबंधित रिपोर्टिंग, रिपोर्ताज़, फ़ेसबुक लाईव, इंटरव्यू, वीडियो डाक्युमेंटेशन, लोगों को आपबीती, महिला समस्या, बिहार में हाल के दिनों में हुए ज़मीनी संघर्ष को सामने लाने की कोशिश की जाएगी।
अगामी बिहार चुनाव में कई मुद्दों पर लगातार बहस और चर्चा हो रही है, पर लॉकडाउन और महामारी के बीच प्रवासी मजदूरों का पलायन, लाचारी एवम् भूखमरी की जो रिपोर्ट्स आ रही थी, फिर से इस बात की चर्चा इस चुनावी समर से सिरे से गायब है।
नरेगा मजदूर, विनिर्माण क्षेत्र के मजदूर सहित ग्रामीण एवम् खेतिहर मजदूरों के जीवन एवम् उनके रोजाना के मसले क्यों राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे से गायब है?
जबकि अभी कुछ ही महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निरंकुश लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी मज़दूर पैदल, रिक्शा, साइकिल से अपने गृह राज्य बिहार जाने पर मज़बूर हुए।
लेकिन दक्षिण भारत में फंसे बिहार के मज़दूरों को पैदल भी जाना नसीब नहीं हुआ। वे गुहार लगाते रहे कि नीतीश सरकार उन्हें स्पेशल ट्रेन से लाने की योजना बनाए, लेकिन नीतीश कुमार ने लगातार मना किया और परोक्ष रूप से प्रवासी मज़दूरों को कोरोना फैलाने वाला बताया।
नरेंद्र मोदी अक्सर चुनावी सभाओं में कहते हैं कि राज्य और केंद्र दोनों में बीजेपी के आने से विकास की गति दोगुनी हो जाएगी, डबल इंजन की सरकार अच्छे दिन लेकर आएगी, लेकिन बिहार राज्य में बीजेपी और जेडीयू की मिलीभगत सरकार है। फिर भी केंद्र सरकार की इजाज़त के बावजूद बिहार के प्रवासी मज़दूरों को राज्य में लाने के लिए स्पेशल ट्रेनों की मंज़ूरी सबसे अंत में दी गई।
अभी बिहार के चुनाव में फिर से बीजेपी वही खेल खेल रही है। पहले सुशांत रिया को लेकर तीन महीने तक प्रवासी मज़दूरों को लेकेर अपनी नाकामी के मुद्दे को दबाने की कोशिश की और जैसे जैसे चुनाव क़रीब आ रहा है, कश्मीर, पाकिस्तान का राग शुरू हो गया है।
इस काम में कारपोरेट मीडिया पूरी तरह मोदी सरकार के साथ पार्टीज़न के रूप में लग गई है और कुछ महीनों तक प्रवासी मज़दूरों के लिए जार जार रोने वाले चैनलों पर अब ऐसा लग रहा है कि प्रवासी मज़दूरों का मु्द्दा जैसे कभी रहा ही न हो।
हालांकि कुछ निष्पक्ष वेबसाइट, मीडिया संस्थान, चैनल अभी भी बिहार की मेहनतकश आबादी पर ग्राउंड रिपोर्ट कर रहे हैं और नब्ज़ को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं कि कमा कर बिहार का खजाना भरने वाले महेतकशों का मूड क्या है।
वर्कर्स यूनिटी का बिहार चुनाव कवरेज अभियान भी इसी का हिस्सा है। तो जुड़े रहें वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक पेज, यूट्यूब, ट्विटर और इंस्टाग्राम से और वर्कर्स यूनिटी टीम के साथ समझें बिहार के मजदूरों की समस्याओं एवं उनके संघर्षों की कहानी।
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