भारी बारिश के बीच खोरी गांव पर चला बुलडोजर, 300 घर ज़मींदोज़, नेताओं पर पुलिस की दबिश
बुधवार को दिल्ली एनसीआर में भारी बारिश के बीच खोरी गांव में तोड़फोड़ की कार्यवाही शुरू कर दी। हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित खोरी गांव में क़रीब 10,000 घर हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को तोड़ने का आदेश दिया था।
लोग रविवार से ही इस बात की आशंका ज़ाहिर कर रहे थे कि तोड़फोड़ की कार्यवाही कभी भी शुरू हो सकती है। जब बुधवार को लोग सुबह उठे तो भारी पुलिस फ़ोर्स के साथ प्रशासन 10 बुलडोज़र से तोड़फोड़ की कार्यवाही के लिए तैयार खड़ा था।
मौसम में अचानक आए बदलाव के कारण दोपहर से बारिश शुरू हो गई लेकिन तबतक नगर निगम के बुलडोजरों ने करीब 300 घरों को तोड़ डाला था। इसके बाद प्रशासन ने कार्यवाही स्थगित कर दी।
लोग बारिश में भी अपने ज़मीदोज़ घरों के मलबे से सामान तलाशते नज़र आए। कार्यवाही के दौरान भारी पुलिस फोर्स तैनात की गई थी और लोगों की भीड़ इकट्ठी होने से तनाव बढ़ गया था।
अपने ज़मींदोज़ घर पर उदास बैठी ममता देवी ने बताया कि उनके पति बृजेश कुमार एक ऑटो ड्राइवर हैं। वे लोग 11 साल से खोरी में रह रहे हैं। उनकी 9 साल की बेटी लक्ष्मी कक्षा 4 और 6 साल का बेटा समक्ष कक्षा 2 में पढ़ता है।
ममता को अब समझ नहीं आ रहा कि बारिश और महामारी के बीच वे अपने परिवार को लेकर कहां जाएं।
वो पूछती हैं, “इन मासूमों को लेकर इस महामारी और बारिश में कहां जाएं? अबतक हम सरकार की कार्रवाई और भूख से जंग लड़ रहे थे, अब तो बच्चों के साथ रोड पर आ गए हैं।”
घरेलू कामगार राजमणि खोरी गांव में पिछले 12 सालों से रह रही हैं। उसके दो बच्चे हैं, बड़ा बेटा आशु 16 साल का है और 11वीं कक्षा में पढ़ता है। जबकि छोटा बेटा अंशु 13 साल का है नौवीं कक्षा में पढ़ता है।
आज उनका घर फरीदाबाद नगर निगम द्वारा बुलडोजर से तोड़ दिया है, जहां परिवार करोना महामारी के चलते जीविकोपार्जन के लिए लड़ाई लड़ रहा है वहीं दूसरी ओर नगर निगम की कार्रवाई की वजह से रोड पर आ गया है।
राजमणि कहती हैं, “सरकार तिल तिल मरने को मजबूर ना करे, हमें सीधे गोली मार दे।”
खोरी निवासी ब्रज रानी 65 साल की हैं, वो पिछले 9 साल से खोरी गांव में रह रही हैं। उनके पति बृजलाल सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे। कोरोना महामारी के चलते उनकी नौकरी चली गई।
उनका कहना है कि ऐसी मुश्किल घड़ी में जब कोरोना की वजह से ना तो नौकरी है और ना ही घर में राशन, नगर निगम ने छत भी छीन ली। बिना पुनर्वास के अब वह परिवार को लेकर कहां जाएं।
वो कहती हैं, “हरियाणा सरकार ने उनसे रोटी कपड़ा और मकान सब छीन लिया। अब जीने का कोई रास्ता नहीं बचा है। सरकार ने सर्वे नही किया इसलिए नाम भी कहीं दर्ज नहीं होगा। जब पुनर्वास मिलेगा तो सरकार यह कह देगी कि ये परिवार यहां नहीं रहता था।”
इस बस्ती में अधिकांश मज़दूर परिवार रहते हैं जो दूसरे प्रदेशों से सालों पहले आकर बस गए थे। कोर्ट के आदेश के बाद 30 जून को एक पंचायत में मज़दूर आवास संघर्ष समिति बनाई गई।
तब सीएम खट्टर ने समिति से बातचीत करने और पुनर्वास से संबंधित कार्यवाही करने का खुद आश्वासन दिया था। अभी एक दिन पहले 13 जुलाई को फरीदाबाद प्रशासन के द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस भी बुलाई गई जिसमें नगर निगम आयुक्त गरिमा मित्तल ने पुनर्वास का आश्वासन दिया था।
लेकिन 24 घंटे के अंदर बस्ती पर बुलडोजर चलाने की कार्यवाही शुरू कर दी गई। मज़दूर आवास संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि ‘इससे प्रशासन के झूठे वादों की पोल खुल गई और साफ पता चल गया है कि सरकार की नायत में खोट है।
समिति ने कहा है कि प्रशासन के द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस केवल बुद्धिजीवियों एवं जन संगठनों का मुंह बंद करने की लिए बुलाई गई थी किंतु लगभग 150 से अधिक जन संगठनों ने हरियाणा सरकार के द्वारा बिना पुनर्वास के तोड़फोड़ का कड़ा विरोध दर्ज़ किया है।
उधर समिति के लोगों पर पुलिस ने दबिश बढ़ा दी है। समिति ने एक बयान जारी कर कहा है कि पुलिस ने मजदूर आवास संघर्ष समिति के सदस्यों को धर दबोच ने के लिए कवायद शुरू कर दी है। पुलिस फोन करके समिति के सदस्यों को पकड़ना चाहती है।
बयान के अनुसार, सूरजकुंड पुलिस एवं क्राइम ब्रांच पुलिस ने शमशेर एवं इकरार को अवैध हिरासत में ले लिया है और परिवार को एक थाने से दूसरे स्थान दौड़ाती रही लेकिन ये नहीं बता रही है कि वे कहां हैं। समिति के सदस्य इकरार अहमद 12 जुलाई को जमानत पर रिहा किए गए हैं।
इकरार को पुलिस ने 9 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया था इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था। समिति का कहना है कि ज़मानत मिल जाने के बाद भी पुलिस की यह कार्यवाही गैरक़ानूनी है।
समिति ने अपने बयान में कहा है कि जिन मजदूरों ने हरियाणा को विकसित करने के लिए अपना खून और पसीना लगाया है आज उन्हीं परिवारों को बुलडोजर उजाड़ने का काम कर रहे हैं।
मजदूर आवाज संघर्ष समिति के सदस्य निर्मल गोराना ने कहा, “नगर निगम ने पुनर्वास की बात की जिसे वह खुद लागू नहीं कर पाई और आज खोरी में तोडफोड़ पर उतर आई।नगर निगम को कोर्ट में जवाब देना पड़ेगा कि आखिर पॉलिसी में निहित प्रक्रिया को फॉलो क्यों नहीं किया गया? मानवता का ग्राउंड देकर पुनर्वास की बात करने वाली उपायुक्त नगर निगम को तनिक भी दया तक नहीं आई की पहले लोगो को ट्रांसिट कैंप में ले जाए फिर आगे की कार्यवाही करे।”
उन्होंने मांग की है कि ‘सरकार तत्काल ट्रांसिट कैंप में लोगों को आश्रय दे, जब तक की पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो जाती। यह प्रक्रिया गलत है कि लोग खुद नगर निगम कार्यालय जाएं और वहां जाकर पुनर्वास के लिए आवेदन प्रस्तुत करें। जिन लोगों का घर टूट गया है, जिनके बच्चे बिलख रहे हैं, जिनका घर का सारा सामान बिखरा पड़ा है भला वो यह सब छोड़ कर कैसे आवेदन कर सकता है? यह जमीनी स्तर पर असंभव है।’
उन्होंने कहा कि अभी भी समय है सरकार संयुक्त सर्वे करे वरना इसका नुकसान प्रशासन होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें ही जवाब देना है।
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