आरोग्य सेतु किसका हेतुः क्या मोदी सरकार विदेशी कंपनियों को बेच रही है सूचनाएं?
आरोग्य सेतु 10 करोड़ बार डाउनलोड हो चुका है। सरकार ने इसे सरकारी, निजी कर्मचारियों के साथ साथ रेल यात्रियों के लिए भी अनिवार्य कर दिया है।
जैसे जैसे लॉकडाउन खुलता जाएगा सरकार इसे सभी के लिए अनिवार्य कर देगी, लेकिन आप नहीं जानना चाहेंगे कि आपके स्वास्थ्य के नाम पर बनाया गया सेतु किसका हेतु कर रहा है।
जिन्होंने डाउनलोड किया है उनमें आप सबको मोबाइल फ़ोन पर अचानक से बहुत सारे ऑनलाइन मेडिसिन कंपनियों के विज्ञापन आ रहे होंगे। क्योंकि आरोग्य सेतु का डाटा इन विदेशी कंपनियों को भेजा जा रहा है।
संघ के स्वदेशी जागरण मंच ने इस बात पर घोर आपत्ति उठाई है कि 10 करोड़ नागरिकों का डाटा विदेशी ऑनलाइन फ़ार्मा कम्पनियों को क्यों दिया जा रहा है।
संघ ने नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया है और उनसे इस्तीफ़ा मांगा है।
उल्लेखनीय है कि एक विदेशी हैकर ने आरोग्य सेतु ऐप को हैक कर ये साबित करने का दावा किया कि ऐप जितनी सूचनाएं जुटाता है, वो सुरक्षित नहीं है।
इलियट एल्डर्सन ने कहा है कि आरोग्य सेतु ऐप एक जासूसी ऐप है जो नागरिकों की जानकारियां इकट्ठा करता है। उनके अनुसार, अगर ये ऐप अनइंस्टाल कर दिया जाए तो इसके मार्फ़त सूचनाएं इकट्ठा करना बंद हो जाएगा।
सरकार बाज़ारवादी शक्तियों के हाथों में खेल रही है वो इस बात का प्रमाण है कि रेल यात्रियों के आरोग्य सेतु को अनिवार्य कर दिया गया है।
लेकिन इस देश में केवल आधी आबादी यानी क़रीब 55% स्मार्ट फ़ोन वाले लोग हैं, बाकी 45 % लोगों के पास छोटा फ़ोन है जिसमें एप नहीं चल सकते।
इन 45 फ़ीसदी लोगों में भी 30 फीसदी लोगों के पास केवल 1,000 रु की क़ीमत वाले बेसिक फ़ोन हैं।
क्या सरकार बेसिक औऱ फ़ीचर फोन वालों को स्मार्ट फ़ोन पर लाना चाह रही है और इस तरह स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों के हाथ में खेल रही है?
इंटरनेट फ्रीडम के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जब आरटीआई लगाकर सरकार से आरोग्यत सेतु एप का सोर्स कोड माँगा गया तो सरकार ने गोपनीयता का बहाना बना कर इनकार कर दिया।
इससे पहले गृह मंत्रालय ने तो ये तक बोल दिया कि ‘हमें तो पता ही नहीं कि यह आरटीआई किसके अधिकार में आता है।’
बार बार पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार सोर्स कोड देने से इसलिए डर रही है क्योंकि वो जानती है अगर सोर्स कोड मिल गया तो उनकी सारी पोल खुल जाएगी।
सरकार से सवाल है कि क्या बेसिक फ़ोन वाला ग़रीब मज़दूर किसान रेल यात्रा नहीं कर पायेगा? जिस मज़दूर के पास आटा खरीदने का पैसा नहीं है वो डाटा कैसे खरीद पायेगा?
भारतीय लोगों का हेल्थ डाटा विदेशी ऑनलाइन कंपनियों को क्यों दिया जा रहा है? सरकार लोकल को वोकल कर रही है लेकिन डाटा ग्लोबल क्यों कर रही है?
हर किसी के लिए हजारों करोड़ के पैकेज आ गये। ट्वीटर पर आत्मनिर्भरता वाले ट्वीट की बाढ़ आ गयी है मगर शहरों से अपने घरों को लौटते मजदूरों के लिए एक बस ना आ सकी।
एक ट्रेन ना आ सकी। आरोग्य सेतु से केवल राहु केतु जैसी विदेशी कम्पनियों का हेतु हो रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये लेख उनके फ़ेसबुक पोस्ट से साभार प्रकाशित है।)
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