लॉकडाउन के महीनेभर बाद भी क्यों जारी है प्रवासी मजदूरों की ‘घर वापसी’
By आशीष सक्सेना
सरकार के दर्जनों आश्वासन, मदद के दावे और रोज की समीक्षाएं, समाजसेवियों का रोजाना भोजन राशन वितरण भी प्रवासी मजदूरों को भरोसा नहीं दिला पा रहा है। आखिर क्यों? अब पैदल की जगह साइकिल और रिक्शा से जाने वाले मजदूर हाईवे पर नजर आ रहे हैं।
ये मजदूर बता रहे हैं कि अब न कर्ज पर राशन मिल पा रहा है और न किराया चुकाए बगैर रहना मुमकिन है। राशन और भोजन मिलने का आलम कहने को तो बहुत है, लेकिन उसे पाने के हालात और गुणवत्ता बहुत खराब हैं।
ऐसे में यही रास्ता बचा है कि किसी तरह घर तक पहुंच जाएं और जैसे तैसे गुजारा कर लें, यहां तो कंधा देने वाले भी नहीं मिलेंगे।
मजदूरों को इस लाचारी में फेंकने का हाल स्वान की रिपोर्ट में भी आ चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों को सरकार से राशन नहीं मिला है उनका प्रतिशत 8 अप्रैल को 99 प्रतिशत था, जो 13 अप्रैल को महज तीन प्रतिशत घटकर 96 प्रतिशत हो गया।
लॉकडाउन में 2 सप्ताह, केवल 1 प्रतिशत फंसे श्रमिकों को सरकार से राशन मिला था। 3 सप्ताह के लॉकडाउन में केवल 4 प्रतिशत को ही सरकार से राशन मिला।
तीसरे सप्ताह में ऐसे लोगों की संख्या 14 प्रतिशत बढ़ गई, जिसमें कहा गया कि उनके पास सिर्फ 1 दिन का राशन बचा है। इसका मतलब ये भी है कि जिस दर से सरकार राशन मुहैया करा रही थी, उसके मुकाबले पांच गुना तेजी लोग भूखे होते चले गए।
राशन वितरण और भूख से बेहाल लोगों के आंकड़े भी मेल नहीं खा रहे, जैसे राशन जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं पा रहा हो। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में 78 मिलियन टन अनाज मजदूरों के लिए कितने काम आ सका, कोई नहीं जानता फिलहाल।
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